विमान ईंधन की लगातार बढ़ती कीमतों से परेशान सस्ती दर पर विमान सेवा मुहैया कराने वाली विमानन कंपनियां और ज्यादा नुकसान झेलने के बजाय इस क्षेत्र से छुटकारा पाना चाहती हैं।
विमानन उद्योग के सूत्रों के मुताबिक इसका फायदा उठाकर जेट एयरवेज और किंगफिशर एयरलाइन्स विलय और अधिग्रहणों का दूसरा दौर शुरू कर सकती हैं। विमानन सलाहकार और सेंटर फॉर एशिया-पेसिफिक (सीएपीए) भारतीय उप-महाद्वीप और पश्चिमी एशिया के मुख्य कार्यकारी कपिल कौल ने बताया, ‘इस बात की पूरी आशंका है कि इस साल के अंत तक कई खिलाड़ी इस क्षेत्र से बाहर हो जाएं।
सस्ती दर पर विमान सेवा मुहैया कराने वाली विमानन कंपनियों को काफी नुकसान हुआ है। अगर किंगफिशर और जेट जैसे बड़े खिलाड़ियों को मौका मिला तो ये छोटी विमानन कंपनियों का अधिग्रहण कर सकते हैं।’ सीएपीए ने पहले भी इस वित्त वर्ष में विमानन कंपनियों को लगभग 2,800 करोड़ रुपये का नुकसान होने की संभावना व्यक्त की थी। हाल ही में विमान ईंधन की कीमतें बढ़ने के बाद कंपनी के मुताबिक यह आंकड़ा भी बढ सकता है।
भारतीय विमानन उद्योग ने इससे पहले भी कई बड़े विलय और अधिग्रहण देखे हैं। जेट एयरवेज ने राष्ट्रीय विमानन कंपनी इंडियन एयरलाइन्स और एयर इंडिया का अधिग्रहण किया था। इसके अलावा किंगफिशर ने भी सहारा और डेक्कन का अधिग्रहण किया था। सीएपीए के मुताबिक अधिग्रहण के अलावा विमानन कंपनियां विलयों पर भी ध्यान दे रही हैं।
कौल ने बताया, ‘विमानन उद्योग में आए संकट के इस दौर से निपटने के लिए कई विमानन कंपनियां साथ में काम करने के लिए भी तैयार हो सकती हैं। अब हमें विमानन कंपनियों के बीच बेहतर रणनीतिक साझेदारी देखने को मिलेगी। प्रतिस्पर्धा के प्रति अब इन कंपनियों का रवैया भी बदल सकता है।’
सीएपीए के मुताबिक उद्योग का ध्यान अब अरसे से चली आ रही लंबी दूरी या छोटी दूरी की उड़ानों से हटकर गंभीर मुद्दों की तरफ जाएगा। इनमें भी प्रशिक्षित व पेशेवर कर्मचारियों की कमी, महंगी दरों पर विमानों का लीज पर मिलना कुछ ऐसे ही मुद्दे हैं जिन्होंने इस उद्योग को सबसे जयादा परेशान किया है।
पिछले चार-पांच साल में लगातार बढ़ती मांग के कारण उद्योग इन मुद्दों पर ध्यान नहीं दे पा रहा था। लेकिन इस संकट के कारण अब इस मुद्दे पर ध्यान देना जरूरी हो गया है। सीएपीए के मुताबिक विमान ईंधन की कीमत बढ़ने से दुनिया भर की विमानन कंपनियों को नुकसान हुआ है। भारतीय कंपनियों को कुछ ज्यादा ही नुकसान हुआ है।
साल 2008 में होने वाला नुकसान इतना ज्यादा हो सकता है कि इससे अभी तक सरकार द्वारा किये गये प्रबंधों पर पानी फिर जाए।कौल ने कहा, ‘अगले एक साल में हमें इस उद्योग के व्यावसायिक और परिचालन संबंधी अनिश्चितताएं देखने को मिलेंगी।’