भारत की सबसे बड़ी निजी क्षेत्र की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) जून, 2008 में समाप्त हुई तिमाही के लिए शुध्द मुनाफे में 22 फीसदी का इजाफा घोषित कर सकती है।
विश्लेषकों के एक सर्वेक्षण के अनुसार इस इजाफे के साथ तिमाही के दौरान कंपनी का शुध्द लाभ 4 हजार करोड़ रुपये हो जाएगा, जिसके पीछे उच्च रिफाइनिंग मार्जिन की अहम भूमिका है। जून 2007 में की तिमाही में आरआईएल का शुध्द मुनाफा 3,264 करोड़ रुपये था।
जून, 2007 की तिमाही में कंपनी की बिक्री 28,056 करोड़ रुपये थी और इस तिमाही में कंपनी को बिक्री के 52 फीसदी इजाफे के साथ 43 हजार करोड़ रुपये होने की उम्मीद है। तिमाही के दौरान आरआईएल का सकल रिफाइनिंग मार्जिन सिंगापुर के बेंचमार्क सकल रिफाइनिंग मार्जिन लगभग 280 रुपये प्रति बैरल के मुकाबले लगभग 620 रुपये प्रति बैरल रहा। विश्लेषकों का कहना है कि आरआईएल लगातार जबरदस्त रिफाइनिंग मार्जिन दर्ज करा रही हो, लेकिन पेट्रोकेमिकल सेगमेंट में विकास नहीं है।
खंडेलवाल सिक्योरिटीज के शोध विश्लेषक विनय नायर का कहना है, ‘रिफाइनरी की बेहद पेचीदा स्थिति के बावजूद आरआईएल सिंगापुर के बैंचमार्क सकल रिफाइनिंग मार्जिन लगभग 200 से 280 रुपये प्रति बैरल के मुकाबले पिछले तीन वर्षों से बेहद अच्छा प्रदर्शन कर रही है। हालांकि पेट्रोकेमिकल सेगमेंट का विकास अंतिम उत्पाद (पॉलिमर और पॉलिएस्टर) की कीमतों और कच्चे माल (कच्चा तेल और नेप्था) की कीमतों में कम होते अंतर की वजह से गिर रहा है।’
कच्चे तेल और नेप्था की कीमतें इस तिमाही के दौरान लगभग 20 प्रतिशत बढ़ी हैं, जबकि पॉलिमर और पॉलिएस्टर की कीमतें लगभग सिर्फ 9 प्रतिशत ही बढ़ी हैं। पेट्रोकेमिकल आरआईएल के कारोबार का लगभग 31 फीसदी हिस्सा है। देश की सबसे बड़ी तेल निर्माता कंपनी ऑयल ऐंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन (ओएनजीसी) को इस वित्त वर्ष की जून की तिमाही में अधिक शुध्द लाभ दर्ज करने की उम्मीद है। तेल की अधिक कीमतें कंपनी के लिए फायदेमंद साबित हो सकती हैं।
विश्लेषकों के अनुसार कंपनी ने अप्रैल-जून, 2008 में कच्चा तेल 19 प्रतिशत इजाफे के साथ लगभग 2,400 रुपये प्रति बैरल बेचा है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कंपनी ने डिस्काउंट पर कच्चा तेल लगभग 2012.60 रुपये पर बेचा था। कंपनी के उच्च अधिकारियों का कहना है कि तेल की अधिक कीमतें तिमाही के दौरान अधिक छूट को बराबर कर देंगी। विश्लेषकों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस तिमाही के दौरान छूट लगभग 11 हजार करोड़ रुपये की होगी जो पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में 4,370 करोड़ रुपये थी।
ओएनजीसी की ओर से अधिक सब्सिडी का भुगतान करने के बोझ से कंपनी का 2008 की आखिरी तिमाही में शुध्द लाभ साल दर साल के आधार पर पहली बार 10 वर्षों में घटा था। हो सकता है कि मार्केटिंग कंपनियां इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (बीपीसीएल) और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (एचपीसीएल) अपने मार्जिनों पर अप्रैल से शुरू कच्चे तेल की कीमतों के लगभग 22 प्रतिशत बढ़ने और डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत घटने पर दबाव महसूस करें।
इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, ‘जब तक सरकार हमें 2,500 करोड़ रुपये से अधिक के बॉन्ड और तेल निर्माताओं को समान छूट नहीं देती, हम अपने मुनाफे के स्तर को बरकरार नहीं रख सकेंगे।’ ओएनजीसी और ऑयल इंडिया जैसी तेल निर्माता कंपनियों से मिले 2,440 करोड़ रुपये की छूट के साथ आईओसी का 2007-08 की पहली तिमाही में शुध्द मुनाफा 1,465 करोड़ रुपये था।
कंपनी को 2007-08 में डॉलर के मुकाबले रुपये की मजबूती के कारण 1,134.47 करोड़ रुपये का लाभ भी मिला था। रिफाइनरीज आईओसी, बीपीसीएल और एचपीसीएल डॉलरों में कच्चा तेल खरीदते हैं। 2007-08 में डॉलर के मुकाबले रुपये में मजबूती के चलते कंपनियां समान मात्रा में कच्चे तेल को खरीदने के लिए कम पैसे चुकाने पड़ रहे थे।