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अब छोटे शहरों को बीपीओ केंद्र बनने की राह पर

Last Updated- December 05, 2022 | 10:02 PM IST

भारतीय बीपीओ उद्योग अगले पांच वर्षों में 5 गुणा वृध्दि की दहलीज पर होगा।


फिलहाल 88,000 करोड़ रुपये वाला यह उद्योग जगत अगले पांच वर्षों में छोटे शहरों के दम पर 200,000 करोड़ रुपये में तब्दील हो जाएगा। अभी तक बेंगलुरु, मुंबई और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र जैसे पहले दर्जे के शहरों में ही बीपीओ के लिए प्रतिभा की जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं, तो ऐसे में जाहिर है कि कंपनियां छोटे शहरों की ओर रुख करेंगी।


प्रमुख कंसलटिंग कंपनी एवरेस्ट ग्रुप के अनुसार आने वाले समय में उद्योग को अहमदाबाद, नागपुर, जयपुर, चंडीगढ़, नासिक और अन्य शहरों की ओर बीपीओ कंपनियों को तेजी से रुख करना होगा, ताकि 2012 तक प्रतिभा की 50-60 प्रतिशत जरूरतें पूरी की जा सकें।


कंपनी के अनुसार देश की बहुत सी राज्य सरकारें विश्व मानचित्र में जगह बनाने के लिए अपने दूसरे और तीसरे दर्जों के शहरों को बीपीओ केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना बना रही हैं। जैसे कि गुजरात सरकार की अहमदाबाद-गांधीनगर को वित्तीय सेवा बीपीओ केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना।


एवरेस्ट ग्रुप के कंट्री हैड (भारत), गौरव गुप्ता का कहना है, ‘जैसे-जैसे सेवा प्रदाता स्थापित पहले दर्जे के शहरों से छोटे शहरों का रुख कर रहे हैं, वे वहां उपलब्ध प्रतिभा की ओर आकृषित हो रहे हैं और इन स्थानों के बुनियादी ढांचागत विकास में मददगार साबित होंगे।’


एवरेस्ट ग्रुप ने भारत के कई दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों का भविष्य में बीपीओ केंद्र बनने की क्षमता पर वर्गीकरण किया है। उनके हिसाब से सात पहले दर्जे के शहर बेंगलुरु, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, मुंबई, पुणे, चेन्नई, हैदराबाद और कोलकाता- बहु क्षेत्रीय केन्द्र की श्रेणी में आते हैं, जो विभिन्न उद्योगों और क्षेत्रों को सेवाएं देते हैं।


एवरेस्ट रिसर्च इंस्टीटयूट, ग्लोबल सर्विसेज प्रैक्टिस हैड, निखिल राजपाल के मुताबिक, ‘इन कम-लागत वाले शहरों की ओर रुख किए जाने से संचालन लागत में 15-30 प्रतिशत कमी आने की संभावना है। इसके परिणामस्वरूप, हमें उम्मीद है कि इन छोटे शहरों की ओर रुख करने वाले बीपीओ सेवा प्रदाताओं की संख्या में वृध्दि आएगी।’ उन्होंने कहा कि इन शहरों को बीपीओ केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए राजरू सरकारों और बीपीओ उद्योग दोनों को मिल-जुल कर काम करने की जरूरत है।


राजपाल ने आगे कहा कि शहर-आधारित विश्लेषण करते समय हमने पाया कि ऐसे क्षेत्र उभर रहे हैं, जहां वित्तीय सेवाओं, उत्पादन, फार्मास्युटिकल्स या फिर प्रौद्योगिकी और दूरसंचार के क्षेत्र के रूप में विशेष केंद्र बनने की खासी क्षमताएं मौजूद हैं। अहमदाबाद एक ऐसा क्षेत्र है जिसे बीपीओ केंद्र के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण माना जा सकता है, जहां वित्त और लेखा, वित्तीय सेवाओं और फार्मास्युटिकल में काफी संभावनाएं हैं।


एवरेस्ट ग्रुप ने इन छोटे शहरों का आकलन वहां मौजूदा क्षमताओं और विशेषताओं के अनुरूप किए जाने वाले कार्यों के आधार पर किया है। जैसे कि जयपुर में हर साल लगभग 29 हजार स्नातक निकलते हैं, लेकिन उनमें से वॉयस वर्क के लिए रोजगार लायक महज 1600 से 1800 लोग ही होंगे।


जबकि चंडीगढ़ और विशाखापट्टनम में हर साल जयपुर से कम क्रमश: 25 हजार और 20 हजार छात्र ही स्नातक होते हैं, लेकिन उनमें से क्रमश: 4,500 और 2000 लोग वॉयस आधारित सेवाओं में रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। गौरव गुप्ता का कहना है छोटे शहरों में बीपीओ उद्योग को सफल संचालन के लिए सरकार की मदद से बुनियादी ढांचे जैसे कि हवाई एवं सड़क संपर्क, दूरसंचार, परिवहन और आवास के साथ ही ‘ईकोसिस्टम’ और स्वास्थ्य एवं मनोरंजन संबंधी सेवाओं की भी जरूरत होगी।


उनके अनुसार स्थानीय उद्योग और बीपीओ उद्योग में गठबंधन और बेहतरीन व्यवहारों का विनिमय देशभर में ‘डोमेन-इंटेंसिव बीपीओ हब’ की लहर ला सकता है, जिससे छोटे शहरों में भी बीपीओ केंद्र की होड़ लग सकती है।


वित्त और लेखा
अहमदाबाद,  नागपुर,  जयपुर,  इंदौर,  नासिक


वित्तीय सेवाएं
अहमदाबाद,  जयपुर,  नागपुर,  वडोदरा,  चंडीगढ़


फार्मास्युटिकल्स
अहमदाबाद,  वडोदरा,  औरंगाबाद,  नासिक,  लुधियाना


लॉजिस्टि्क्स
नागपुर,  विशाखापट्टनम,  अहमदाबाद,  कोयंबटूर,  मुंद्रा


बहु क्षेत्रीय केंद्र
बेंगलुरु,  राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र,  मुंबई,  पुणे,  चेन्नई,  हैदराबाद,  कोलकाता

First Published - April 18, 2008 | 1:12 AM IST

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