दुनिया भर में तेल की कीमतों में उबाल आ रहा है, लेकिन इसकी रिटेल बिक्री करने वाली भारतीय कंपनियां आज भी सब्सिडी के साथ तेल बेच रही हैं।
सब्सिडी के इस बढ़ते बोझ तले कंपनियों का दम निकला जा रहा है और उन्हें रोजाना लगभग 440 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है।ये कंपनियां पेट्रोल, डीजल, रर्सोई गैस और केरोसिन को सब्सिडी यानी छूट वाले दामों पर बेच रही हैं।?इसकी वजह से पिछले 15 दिन में ही इनका घाटा तकरीबन 7.3 फीसदी बढ़ चुका है।
इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (आईओसी), भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल)और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) को 31 मार्च को खत्म पखवाड़े में 410 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ा है। कंपनियों के मुताबिक यह घाटा वर्ाकई अब सिर के ऊपर से गुजरने लगा है।
डीजल, एलपीजी, और केरोसिन की बिक्री में होने वाला नुकसान 4 प्रतिशत से बढ़कर 20 प्रतिशत हो गया है। सबसे बड़ी विपणन कंपनी आईओसी को केरोसिन की बिक्री से सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है। मार्च के पहले 15 दिनों में जहां कंपनी को प्रति लीटर 20.95 रुपये का नुकसान हो रहा था, वहीं महीने के आखिरी 15 दिनों में यह नुकसान बढ़कर 25.25 रुपये हो गया है।
आईओसी को पेट्रोल की बिक्री पर लगभग 17 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से नुकसान उठाना पड़ रहा है। जबकि 15 मार्च तक यह आंकड़ा 14.65 रुपये प्रति लीटर था। कंपनी को प्रत्येक एलपीजी सिलेंडर की बिक्री पर अब 316 रुपये का नुकसान हो रहा है जबकि 15 मार्च तक यह आंकड़ा 303.65 रुपये था।
डीजल और पेट्रोल की बिक्री में होने वाले नुकसान हर 15 दिन में आंका जाता है। वहीं एलपीजी और केरोसीन के लिए गणना हर महीने के पहले दिन को की जाती है। कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल और डीजल के दाम लगातार बढ़ने के कारण ऐसा हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीजल और पेट्रोल क ा दाम 4000 रुपये प्रति बैरल हो गया है। डीजल और पेट्रोल के दाम सीमित रखने के कारण ही लागत की वसूली नहीं हो पा रही है।
न्यूयॉर्क में कच्चे तेल के दाम मार्च की शुरुआत में अभी तक के सबसे ऊंचे स्तर यानी 4,400 रुपये प्रति बैरल थी। अभी यह कीमत 4,080 रुपये प्रति बैरल है।तेल कंपनियां अपनी रिफाइनरियों से कारोबारी जरुरतों के हिसाब से पेट्रोलियम उत्पाद खरीदती हैं। यें सभी उत्पाद वैश्विक कीमतों के अनुसार ही खरीदे जाते हैं। हालांकि तेल विपणन कंपनियों पर सरकार की तरफ से पेट्रोल, केरोसिन, एलपीजी और डीजल को सब्सिडाइज्ड कीमतों पर बेचने के लिए कोई दबाव नहीं है।
पेट्रोल उत्पादों की लागत वसूल न कर पाने के कारण तेल विपणन कंपनियों की कार्यपूंजी पर बहुत ज्यादा असर पड़ रहा है। इस कारण इन कंपनियों को ज्यादा ऋण लेना पड़ रहा है। इस कर्ज का बोझ भी उन पर कुछ कम नहीं है। इंडियन ऑयल तो कर्ज के बोझ से कुछ ज्यादा ही दबी है। साल 2007-08 के दौरान इंडियन ऑयल ने 31,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का ऋण लिया था, जबकि साल 2006-07 के दौरान कंपनी ने 27,000 करोड़ रुपये का ऋण लिया था।