पूरी शिद्दत से जिंदगी का लुत्फ उठाने वाले मालविंदर मोहन सिंह ने फार्मास्यूटिकल्स कंपनी रैनबैक्सी लैबोरेटरीज लिमिटेड में अपनी हिस्सेदारी जापानी कंपनी डायची सांक्यो को बेच दी।
अपने करीबी लोगों के बीच मालव के नाम से मशहूर सिंह का सपना 2012 तक रैनबैक्सी को 5 अरब डॉलर की कंपनी बनाना था। उनके हंसमुख और खुशमिजाज व्यक्तित्व का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके ऑफिस में निचले स्तर से लेकर ऊंचे ओहदे पर बैठे सभी लोग उनसे एक सी सहजता के साथ बात कर सकते हैं।
सिंह जितने अनुशासन और कड़ी मेहनत के साथ काम करते हैं, जिंदगी को मजे में जीने में भी वह इतना ही यकीन रखते हैं। यही वजह है कि उनके दफ्तर में कर्मचारियों के लिए अक्सर पार्टी और कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता था। हालांकि, यह जानने के बाद भी उनके बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि वह आलीशान जिंदगी जीने में विश्वास रखते हैं।
उन्होंने भले ही अपने पिता की कंपनी का बोझ अपने कंधों पर उठाया हो, पर यह उन्हें विरासत के तौर पर नहीं मिला था। उनके पिता परविंदर सिंह का 1999 में ही निधन हो गया था। वे आसानी से पिता का पद संभाल सकते थे, पर उन्होंने साफ कर दिया कि वह नीचे से ऊपर पहुंचना चाहेंगे। यही वजह है कि 1998 में रैनबैक्सी का हिस्सा बनने के बाद भी उन्होंने जनवरी, 2006 में कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी का पदभार संभाला था।
दिल्ली विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र में स्नातक और अमेरिका के डयूक विश्वविद्यालय के फ्युकुआ स्कूल ऑफ बिजनेस से एमबीए की डिग्री लेने वाले सिंह को उनके पिता काफी पहले से ही कंपनी के लिए तैयार करना चाहते थे। यही वजह थी कि जब भी उनके कॉलेज में गर्मी की छुट्टियां होती थीं तो उन्हें कंपनी के मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के साथ चिकित्सकों के पास भेजा जाता था।
उन्हें चिलचिलाती धूप में भी स्कूटर से ही जाना पड़ता था। सिंह को उनके पिता ने कारोबार की बारीकियां समझने के लिए ही एक लाख रुपये दिये थे ताकि वह एक स्टॉक प्रोफाइल तैयार कर सकें। उन्होंने 2006 में कंपनी के शीर्ष अधिकारी का भार संभाला था और ठीक इससे एक साल पहले 2005 में रैनबैक्सी अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही थी।
उस दौरान कंपनी का मुनाफा 62 फीसदी गिर चुका था और कंपनी के शेयरों के भाव भी करीब आधे हो चुके थे। ऐसे में सिंह ने उभरते बाजारों की ओर रुख करना शुरु किया। यही वजह है कि सिंह कहते थे कि, ‘अगर कोई कंपनी उभरते बाजारों को दरकिनार करते हुए चलती है तो उसके लिए अपने कारोबार को फलता फूलता देखना संभव ही नहीं है।’
यह उनकी कारोबारी रणनीति का ही नतीजा है कि अब कंपनी की अमेरिका के बाजारों पर निर्भरता महज 25 से 30 फीसदी ही रह गई है और उसके कुल राजस्व का 55 फीसदी हिस्सा उभरते बाजारों से प्राप्त होता है। अभी हाल ही में सिंह को ब्रिटेन की एक पत्रिका ने वैश्विक औषधि उद्योग की दुनिया में अपने योगदान के लिए 40 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया है। भारत के कुल पांच लोगों को इस सूची में स्थान दिया गया है जिसमें सिंह विश्व स्तर पर 21वें पायदान के साथ सबसे ऊपर हैं।