दवा बनाने वाली दिग्गज भारतीय कंपनी रैनबैक्सी लैबोरेट्रीज लिमिटेड ने जापानी हाथों में जाने से पहले अपने पेटेंट संबंधी विवादों को निपटाने का काम तेज कर दिया है।
कंपनी ने विश्व की सबसे बड़ी दवा कंपनी फाइजर इंक के साथ भी पेटेंट के सभी झगड़े सुलझा लिए हैं। इनमें एटोरवैस्टैटिन (लिपिटॉर) के पेटेंट का विवाद भी शामिल है।लिपिटॉर कॉलेस्ट्रॉल कम करने वाली दुनिया की सबसे मशहूर दवा है और सबसे ज्यादा चिकित्सक इसी के इस्तेमाल की सलाह देते हैं।
दुनिया भर में सालाना इसकी 1270 करोड़ डॉलर से भी ज्यादा की बिक्री होती है। रैनबैक्सी ने आज बम्बई शेयर बाजार को बताया कि इस सिलसिले में फाइजर के साथ उसका समझौता हो गया है। इस समझौते में केवल रैनबैक्सी और उसकी सहयोगी कंपनियों का ही जिक्र है। इसमें फाइजर के साथ विवाद खत्म होने का प्रावधान है और दूसरी जेनरिक दवा निर्माता कंपनियों के साथ लिपिटॉर के पेटेंट पर कंपनी कानूनी लड़ाई कर सकती है।
लिपिटॉर के पेटेंट को चुनौती देने वाली रैनबैक्सी पहली जेनरिक दवा निर्माता कंपनी थी, इसलिए उसे अमेरिका में पहले 180 दिन तक अकेले इस दवा की बिक्री के अधिकार भी मिल गए हैं। कंपनी को 30 नवंबर 2011 से अमेरिका में एटोरवैस्टैटिन-एम्लोडाइपीन बाईसाइलेट का मिश्रण बेचने का लाइसेंस मिल जाएगा।
रैनबैक्सी के मुख्य कार्यकारी और प्रबंध निदेशक मालविंदर मोहन सिंह ने कहा, ‘रैनबैक्सी और फाइजर के बीच तमाम विवादों को इस समझौते के जरिये सुलझा लिया गया है और इसमें पेटेंट के झगड़े भी शामिल हैं। इससे रैनबैक्सी के जेनरिक एटोरवैस्टैटिन को अमेरिका में 180 दिन की मियाद के भीतर उतारने और दूसरे देशों में भी उतारने का रास्ता साफ हो जाता है। इससे मरीजों को यह दवा आसानी से और किफायती दामों पर मिल जाएगी।’
रैनबैक्सी के लिए यह समझौता ज्यादा फायदे वाला है क्योंकि इसमें उसे 7 अन्य देशों में भी अलग-अलग समय पर एटोरवैस्टैटिन उतारने का लाइसेंस मिल जाएगा। इन देशों में कनाडा, बेल्जियम, नीदरलैंड, जर्मनी, स्वीडन, इटली और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। इस दवा की बिक्री मलेशिया, ब्रुनेई, पेरू और वियतनाम में करने के बारे में दोनों कंपनियों के बीच चल रहा झगड़ा भी खत्म हो गया है। रैनबैक्सी अमेरिका में फाइजर के पेटेंट की वैधता को अब चुनौती भी नहीं देगी।