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Co-living का नया युग: 5 साल में 5 गुना बढ़ेगा बाजार, मांग पहुंचेगी 91 लाख बेड तक; हर युवा ढूंढ रहा सस्ता-सुलभ घर

साल 2030 तक इन्वेंट्री 10 लाख बेड तक पहुंचने की संभावना, बाजार का आकार भी 200 अरब रुपये होने का अनुमान

Last Updated- May 08, 2025 | 9:16 PM IST
Co-living
प्रतीकात्मक तस्वीर | फोटो क्रेडिट: Freepik

देश में को-लिविंग खंड में मकानों की मांग लगातार बढ़ रही है। गांवों-कस्बों से बड़े पैमाने पर बड़े शहरों की ओर पलायन के कारण यह बाजार उभर रहा है। कोलियर्स इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार इस सेगमेंट में साल 2030 तक इन्वेंट्री दस लाख बेड तक पहुंच सकती है, जो अभी करीब 3 लाख है। कोविड महामारी के दौरान इस क्षेत्र में अस्थायी रूप से गिरावट दर्ज की गई थी।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इस क्षेत्र का पुनरुद्धार तेजी से हो रहे शहरीकरण और बड़े पैमाने पर शहरों की ओर पलायन के कारण है। खासकर छात्रों और वैसे युवा पेशेवरों के बीच जो आसान, किफायती और बगैर किसी परेशानी वाले आवास विकल्पों की तलाश में हैं।’ आर्थिक या अन्य कारणों से कई लोग जब एक ही जगह पर एक साथ रहते हैं तो उसे को-लिविंग कहा जाता है। आमतौर पर ऐसे लोगों के कमरे तो अलग-अलग होते हैं, लेकिन वे रसोई, लिविंग रूम और अन्य सामान्य क्षेत्रों का साझा उपयोग करते हैं। मकानों की कीमतों और कमरों के किराए में वृद्धि के कारण शहरों में युवा पेशेवरों के बीच यह काफी लोकप्रिय हो रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा समय में 66 लाख को-लिविंग बेड की मांग है और साल 2030 तक इसके बढ़कर 91 लाख पहुंचने की संभावना है। इस तरह पांच साल की अवधि में इस बाजार का आकार भी मौजूदा 40 अरब रुपये से पांच गुना बढ़कर 200 अरब रुपये तक पहुंच तक सकता है।

इस बारे में कोलियर्स इंडिया के मुख्य कार्य अधिकारी बादल याग्निक ने कहा कि तेजी से बढ़ते शहरीकरण और छात्रों एवं युवा पेशेवरों के शहरों की ओर पलायन से मकानों खासकर को-लिविंग स्पेस की मांग काफी तेजी से बढ़ सकती है। उन्होंने कहा, ‘भविष्य में लगातार तरक्की की संभावनाओं के कारण को-लिविंग क्षेत्र में निवेशकों की भागीदारी बढ़ने एवं ऑपरेटरों के विस्तार में महत्त्वपूर्ण वृद्धि होने की संभावना है।’

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2030 तक करीब 10 लाख बेड पहुंचने की संभावना

साल 2030 तक इन्वेंट्री के करीब 10 लाख बेड पहुंचने के साथ ही को-लिविंग की पैठ की दर मौजूदा 5 फीसदी से बढ़कर इस दशक के अंत तक 10 फीसदी से ज्यादा होने की उम्मीद है। महानगरों में बड़े ऑपरेटरों की स्थिति काफी मजबूत है, लेकिन रिपोर्ट से पता चलता है कि इंदौर, कोयम्बत्तूर, चंडीगढ़, जयपुर, विशाखापत्तनम और देहरादून जैसे शहरों में भी धीरे-धीरे को-लिविंग का प्रसार हो रहा है।

को-लिविंग क्षेत्र के समक्ष बड़ी चुनौती छात्र आवास में मांग और आपूर्ति के अंतर को पूरा करना है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘को-लिविंग की सुविधाएं छात्रों और बाहर से आए कामकाजी पेशेवरों दोनों को ध्यान में रखकर विकसित की जाती हैं, लेकिन छात्र आवास अधिक सूक्ष्म है और इस क्षेत्र की जरूरी उप-श्रेणी है।’

देश में उच्च शिक्षा की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों का बड़ा हिस्सा बाहर से आने वाले विद्यार्थियों का है। उन्हें अपने शिक्षण संस्थानों के पास ही रहने की सुविधाओं की जरूरत होती है। छात्रावास सुविधाएं उपलब्ध कराने वाले ऑपरेटरों के लिए बाजार में उतरने का यह बड़ा मौका होता है और वे आवास सुविधाओं की आपूर्ति में आने वाली बाधाओं को कम से कम कर सकते हैं और छात्रों की जरूरतों को भी पूरा करने में मददगार साबित हो सकते हैं।

वित्त वर्ष 2021-22 में उच्च शिक्षा पर देश भर में कराए गए सर्वेक्षण के अनुसार, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से मिलने वाली छात्रावास सुविधाओं से करीब 40 लाख विद्यार्थियों की जरूरत पूरी होती है। देश में छात्रावास की अनुमानित मांग 1.2 करोड़ है यानी इससे करीब 33 फीसदी विद्यार्थी लाभान्वित होते हैं।

First Published - May 8, 2025 | 9:12 PM IST

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