पिछले कारोबारी साल के आखिरी तिमाही के नतीजे उत्साहजनक होने की उम्मीद नहीं है, लेकिन बहुत चौंकाने वाले होंगे ऐसा भी नहीं कहा जा सकता।
क्रेडिट सुइस की रिपोर्ट के मुताबिक कंपनियों को मौजूगा माहौल के सच को स्वीकार करते हुए अपने नतीजों का ऐलान करना चाहिए, भले ही वो कमजोर हों। इससे थोडे समय के लिए जरूर बाजार के मूड में कुछ निराशा छाएगी और बाजार कुछ और कमजोर भी पड़ सकता है लेकिन ये बाजार को आगे स्थिर और संतुलित तरीके से बढ़ने में मदद भी करेगा।
हालांकि कंपनियां शायद यह मानने को तैयार नहीं हैं कि अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही है। उन्हें उम्मीद है कि बाजार आगे पीछ लेकिन जल्दी ही सुधरेगा। कई मझोले आकार की कंपनियां जिनका मैनेजमेंट बहुत परिपक्व नहीं है, उन पर इस मंदी की सबसे ज्यादा मार पड़ने की संभावना है। ऐसे में बाजार में आने वाली बेवजह की तेजी बाजार के सेंटिमेंट को और कमजोर करेगी।
क्रेडिट ग्रोथ की धीमी रफ्तार, बढ़ती महंगाई दर, तेल की आसमान छूती कीमतें और तेज होती ब्याज दरों की वजह से तेजी की वापसी में वक्त लग सकता है। ऐसे बाजार में निवेशक बहुत ही आशंकित हैं और छोटी सी भी बुरी खबर उसे और ज्यादा नवर्स कर देती है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो आने वाली कुछ तिमाहियों में निराशाजनक नतीजों की कोई जगह नहीं बन रही है।
इसके अलावा कंपनियों को अर्थव्यवस्था की सच्चाइयों को भी समझना और स्वीकार करना होगा, उसी में उनकी भलाई भी है, जिससे कि उनकी वित्तीय और दूसरी योजनाएं ठीक तरह से लागू हो सकें।
फिलहाल अर्निंग्स यानी नतीजों के आने वाले अनुमान काफी उत्साहजनक हैं। आईबीईएस कंसेन्सस के अनुमानों के मुताबिक साल 2008-10 के दौरान सेंसेक्स में 20 फीसदी की कंपाउंडेड ग्रोथ आ सकती है। हालांकि इन अनुमानों में जोखिम भी छिपा है क्योकि अंतरराष्ट्रीय बाजारों की ग्रोथ की वैसी उम्मीद नहीं है।
अगर हम मान भी लें कि भारतीय उद्योग घरेलू बाजार पर ही आधारित हैं तो भी जो कंपनियां एक्सपोर्ट पर निर्भर करती हैं उन्हे नुकसान उठाना पड़ सकता है। अभी तो घरेलू बाजार ही इस तरह के खतरों से जूझ रहा है क्योकि ब्याज की दरों में फिलहाल किसी कटौती की गुंजाइश नहीं दिखती।
इन उद्योगों की बिक्री पर पड़ने वाले दबावों और बढ़ती महंगाई से उन्हे उनके खर्चों पर भी भारी दबाव होगा, साथ ही उन्हे बाजार के कंपटीशन की वजह से लागत में हुए इजाफे का भार ग्राहकों पर भी नहीं डाल सकेंगे। इससे उनके मार्जिन पर खासा असर पडेग़ा। सेंसेक्स की ग्रोथ की बात करें (तेल क्षेत्र को छोड़कर)तो यह करीब 15-16 फीसदी के बीच रहने का अनुमान है। मार्च 2007 में 30 फीसदी की ग्रोथ देखी गई थी।
इसके अलावा आखिरी तिमाही में ऑटो जैसे सेक्टर मंदी की चपेट में ही रहे हैं और उनके वॉल्यूम काफी कमजोर रहे जबकि कमोडिटी की तेजी ने मैन्युफैक्चरर्स को परेशान किया है। यही नहीं इस तिमाही में कुछ चौंकाने वाले नतीजे भी आए हैं।
पावर उपकरण बनाने वाली कंपनी बीएचईएल ने इस तिमाही में कमजोर प्रदर्शन किया और उसके लाभ में गिरावट देखी गई, जबकि एनटीपीसी के खर्चों में इस दौरान भारी इजाफा देखा गया है। कुल मिला कर कहें तो मार्च 2008 के नतीजे काफी अहम होंगे क्योकि यही नतीजे आने वाले समय में बाजार की दिशा तय करेंगे।