इस्पात के लंबे उत्पाद बनाने वाली सरकारी कंपनी राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (आरआईएनएल) सरकार के स्वामित्व वाली खनन कंपनी राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) के साथ विलय की दिशा में बढ़ गई है।
देश के कुल लौह अयस्क उत्पादन में एनएमडीसी का लगभग 15 फीसद योगदान है। आरआईएनएल के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक पी के बिश्नोई ने बताया कि दोनों ही कंपनियां इस्पात मंत्रालय के अधीन हैं। इसलिए विलय का प्रस्ताव भी मंत्रालय के पास भेज दिया गया है।
उन्होंने कहा कि कुछ अनौपचारिक बातें अभी चल रही हैं। इस प्रस्ताव पर एनएमडीसी के साथ भी चर्चा की गई है, लेकिन बताया जा रहा हैकि इस प्रस्ताव को कंपनी से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली है। अलबत्ता एनएमडीसी के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक राणा सोम ऐसे किसी भी प्रस्ताव के बारे में जानकारी होने से इनकार करते हैं। उन्होंने कहा, ‘मुझे इस तरह के किसी भी घटनाक्रम के बारे में कुछ पता नहीं है।’
लेकिन बिश्नोई ने आरआईएनएल के प्रदर्शन और भावी योजनाओं के बारे में बताते समय विलय के बारे में काफी कुछ कहा। उन्होंने कहा कि आरआईएनएल के पास अपनी कोई भी खान नहीं है। एनएमडीसी भी इस्पात उत्पादन में आने की सोच रही है। इसलिए यह विलय दोनों कंपनियों के लिए बहुत अच्छा साबित होगा। वैसे भी आरआईएनएल की अयस्क की जरूरत बहुत समय से एनएमडीसी ही पूरी कर रही है।
आरआईएनएल ने विलय के बाद बनने वाली कंपनी का खाका भी खींच लिया है। उसके मुताबिक यदि विलय हो जाता है, तो 2020 तक नई कंपनी की लौह अयस्क उत्पादन क्षमता 4-5 करोड़ टन तक पहुंचा दी जाएगी और इस्पात उत्पादन क्षमता भी 2-2.5 करोड़ टन सालाना हो जाएगी।
फिलहाल एनएमडीसी अपनी खानों से सालाना 3 करोड़ टन लौह अयस्क का उत्पादन कर रही है।एनएमडीसी के साथ विलय से इतर भी आरआईएनएल की विस्तार योजनाएं हैं। कंपनी अगले 10 साल में अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाकर 1.6 करोड़ टन सालाना करने का लक्ष्य निर्धारित कर चुकी है।
आरआईएनएल इससे पहले भारतीय इस्पात प्राधिकरण लिमिटेड सेल के साथ भी विलय की पींगें बढ़ा चुकी है। लेकिन राजनीतिक गतिरोध की वजह से मामला आगे नहीं बढ़ सका था।