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टाटा की ताकत में होगा जबर्दस्त इजाफा

Last Updated- December 05, 2022 | 5:10 PM IST

टाटा मोटर्स को इस समझौते से महज जगुआर और लैंड रोवर ब्रांड ही नहीं मिल रहे हैं, और भी बहुत कुछ उसके हाथ आ रहा है।


सौदे पर दस्तखत होते ही ब्रिटेन में फैले जगुआर-लैंड रोवर के तमाम संयंत्र भी टाटा के नाम हो रहे हैं। इससे टाटा की विनिर्माण और अनुसंधान विकास (आरऐंडडी) क्षमता में जबर्दस्त इजाफा होना बिल्कुल तय हो गया है।


जगुआर के 4 विनिर्माण और आरऐंडडी संयंत्र ब्रिटेन में हैं। उनसे 8,300 लोगों को रोजगार मिल रहा है। इनमें कॉवेंट्री का ब्राउंस लेन संयंत्र भी शामिल है, जो कंपनी का सबसे पुराना और सबसे मशहूर संयंत्र है। यहां वाहनों के कई हिस्से तो बनते ही हैं, जगुआर के ऐतिहासिक सफर का भी यह गवाह है। यहां 2004 में कारों का निर्माण बंद कर दिया गया था। अब यहां केवल 300 कर्मचारी हैं और कंपनी का यह सबसे छोटा कारखाना हो गया है।


कॉवेंट्री के ही एक अन्य हिस्से में व्हिटले संयंत्र है। यहां तकरीबन 2,000 कर्मचारी हैं। व्हिटले में भावी मॉडलों के डिजायन आदि पर अनुसंधान किया जाता है। जगुआर विनिर्माण का काम हेलवुड और कैसल ब्रॉमविच संयंत्रों में करती है। दोनों कारखानों में तीन-तीन हजार कर्मचारी काम करते हैं। वहां पुर्जों की असेंबलिंग करने, रंगरोगन करने, फिनिशिंग देने और अंतिम तौर पर असेंबलिंग करने के लिए अलग-अलग विभाग बने हुए हैं।


जगुआर की ‘एक्स टाइप’ और लैंड रोवर की ‘फ्रीलैंडर’ यहीं तैयारी होती हैं। जगुआर के बाकी सभी मॉडल कैसल ब्रॉमविच में तैयार होते हैं। हेलवुड जगुआर का सबसे नया कारखाना है, जो 1963 में बनाया गया था।


लैंड रोवर का विनिर्माण आज भी सोलिहल संयंत्र में हो रहा है। हालांकि फोर्ड ने 2004 में यह संयंत्र बंद करने की धमकी दी थी, लेकिन इसमें काम बदस्तूर जारी है। चाहे रेंज रोवर हो या डिस्कवरी या फिर डिफेंडर, सिलहुल लैंड रोवर का सबसे पुराना और वफादार साथी रहा है। गेडन में लैंड रोवर का मुख्यालय और आरऐंडडी संयंत्र है। तुर्की और ब्राजील में भी इस ब्रांड के विनिर्माण संयंत्र हैं।


टाटा मोटर्स के लिए सब कुछ खुशगवार भी नहीं है। इन संयंत्रों के साथ कंपनी को कुछ चुनौतियां भी तोहफे में मिल रही हैं। मसलन, कंपनी को इन संयंत्रों में विनिर्माण की तकनीकों को नया बनाना पड़ेगा। खास तौर पर लैंड रोवर के कारखानों में तो कई मॉडल अब भी हाथों से ही असेंबल किए जा रहे हैं। जाहिर है, टाटा को खर्च भी करना पड़ेगा।


लेकिन एक पहलू है, जिसकी वजह से कंपनी खर्च करने में कोताही नहीं बरतेगी। यह पहलू है, लैंड रोवर का मोटा मुनाफा। जगुआर भी अब मुनाफे की राह पर ही चल रही है। दोनों कंपनियां नए मॉडल भी पेश करने जा रही हैं… यानी टाटा की सचमुच चांदी होने जा रही है।

First Published - March 27, 2008 | 2:21 AM IST

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