डॉ. ब्रायन डब्ल्यू टेम्पेस्ट 2004-06 के दौरान रैनबैक्सी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक रहे।
इस समय वह रैनबैक्सी लैबोरेटरीज के निदेशक मंडल के गैर-कार्यकारी निदेशक हैं। उन्होंने लंदन से रैनबैक्सी और दायची सांक्यो के बीच हुए करार पर तिनेश भसीन से बातचीत की। भारतीय दवा निर्माता कंपनी में टेम्पेस्ट ने कंपनी ने 13 वर्ष बिताए।
क्या मालविंदर मोहन सिंह के लिए रैनबैक्सी को बेचना जरूरी था?
मालविंदर सिंह को इस सौदे के लिए मैंने ही उत्साह दिया था। अगर आप इस सौदे को भारतीय कंपनी के नजरिये से देखेंगे तो आपको लगेगा कि एक कंपनी के विकास के लिए उसका स्वामित्व होना अधिक जरूरी है, लेकिन फार्मास्युटिकल के क्षेत्र में वैश्विक परिस्थितियां इससे अलग हैं। आप देखेंगे कि बड़ी-बड़ी अंतरराष्ट्रीय फार्मास्युटिकल कंपनियों में मुख्य कार्यकारी अधिकारियों के पास जिस कंपनी को वे संभालते हैं, कंपनी में हिस्सेदारी नहीं होती, वे काफी पेशेवर होते हैं।
आपने मालविंदर सिंह को तब कंपनी बेचने के लिए उत्साहित क्यों किया, जब कंपनी बढ़िया स्थिति में है?
रैनबैक्सी पहले से ही सबसे बड़ी घरेलू फार्मास्युटिकल कंपनी है और यह वैश्विक कंपनी के रूप में कंपनी को सामने लाने के प्रयास हैं और यह कंपनी को विकास के अगले स्तर तक ले जाएगा।
इस सौदे से दायची सांक्यो को कैसे फायदा पहुंचेगा?
सरकारी नियमों के कारण जापानी कंपनियों पर फार्मा क्षेत्र में जेनरिक कारोबार पर ध्यान देने का दबाव है। यही कारण है कि बड़ी संख्या में जापानी कंपनियां भारतीय कंपनियों को साझेदार बनाने पर विचार कर रही हैं।
इस करार से भारतीय फार्मास्युटिकल क्षेत्र पर क्या असर पड़ेंगे?
बहुत सी वैश्विक कंपनियां भारत में सस्ते और कुशल श्रम का फायदा उठाना चाहती हैं। अंतरराष्ट्रीय कंपनियां विदेशों मंट उत्पादन की लागत की कीमतों में तेजी के भारतीय कंपनियों के साथ गठजोड़ के बारे में सोच रही हैं।