अमेरिकी मंदी और रुपये की मजबूती से देश की जानी-मानी सॉफ्टवेयर कंपनी विप्रो भी नहीं बच सकी।
कंपनी के चौथी तिमाही के नतीजे इस बात की तस्दीक भी करते हैं। पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 31 मार्च 2008 को समाप्त हुई चौथी तिमाही में कंपनी ने 3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की और कंपनी को 880 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ। वित्त वर्ष 2007-08 की चौथी तिमाही में कंपनी का राजस्व 32 फीसदी बढ़कर 5,700 करोड़ रुपये हो गया।
सालाना नतीजा की बात करें, तो कंपनी का शुद्ध लाभ 12 फीसदी बढ़कर 3,282 करोड़ रुपये हो गया, जबकि कंपनी का राजस्व 33 फीसदी बढ़कर 19,957 करोड़ रुपये हो गया। कंपनी के वैश्विक सूचना प्रौद्योगिकी कारोबार की सालाना विकास दर 23 फीसदी रही और इसने कंपनी के लिए 13,641 करोड़ रुपये अर्जित किये। जबकि इसकी पीबीआईटी शाखा ने 9 फीसदी की दर से बढ़कर 2,940 करोड़ रुपये का योगदान किया।
रुपये की बढ़ती कीमत और दो बड़े अधिग्रहणों ने इसके मुनाफे को प्रभावित किया है। कंपनी ने चालू वित्त वर्ष में तकरीबन 4,000 करोड़ रुपये के दो बड़े अधिग्रहण किये हैं। इसके तहत लगभग 2800 करोड़ रुपये में कंपनी ने अमेरिका की बुनियादी सुविधाओं के प्रबंधन से जुड़ी कंपनी इनफोक्रॉसिंग का अधिग्रहण भी किया है। इसके अलावा कंपनी ने लगभग 1000 करोड़ रुपये में सिंगापुर की कंज्यूमर केयर कंपनी उन्जा का अधिग्रहण किया है।
विप्रो के वैश्विक सूचना प्रौद्योगिकी शाखा, विप्रो टेक्नोलोजीज ने कंपनी के राजस्व को बढ़ाने में खास भूमिका अदा की है। पिछले साल की तुलना में इस साल की चौथी तिमाही में कंपनी के राजस्व में 26 फीसदी की बढाेतरी हुई है और यह बढ़कर 3,833 करोड़ रुपये हो गया।