महंगाई और मंदी की वजह से ठंडे पड़े बाजार ने तमाम कंपनियों को नई तरह की मुश्किल में डाल दिया है।
मंदी की इस आहट को समझने में जो कंपनियां नाकाम रही थीं, उन्होंने अपने संयंत्रों में विनिर्माण का काम बदस्तूर जारी रखा और अब आलम यह है कि उनके गोदाम तैयार माल से अटे पड़े हैं और खरीदार पास फटक तक नहीं रहे हैं।
इस बार ज्यादा भंडार
सालाना 1 करोड़ रुपये से ज्यादा कारोबार वाली 1,074 कंपनियों के बारे में इकट्ठा किए गए आंकड़ों के मुताबिक पिछला वित्त वर्ष खत्म होते-होते इन कंपनियों के पास तकरीबन 18,950 करोड़ रुपये का बना-बनाया माल तैयार पड़ा था, जो उससे पिछले वित्त वर्ष यानी 2006-07 के मुकाबले 70 फीसद ज्यादा था। 2006-07 में इन गोदामों में केवल 11,164 करोड़ रुपये का तैयार माल मौजूद था।
घट गया मुनाफा
इस समस्या से सीमेंट, इस्पात से लेकर दैनिक उपभोक्ता सामान (एफएमसीजी) पेट्रोलियम उत्पाद, चीनी और ऑटोमोबाइल उद्योग भी जूझ रहा है। अब इन कंपनियों के भंडारों की मुनाफे में 15 फीसदी हिस्सेदारी हैं जबकि, पिछले साल तक यह 1 फीसद थी।
कंपनियों और उद्योग सूत्रों के मुताबिक इसकी मुख्य वजह है महंगाई दर का बढ़ना। उत्पादों की कीमतों में इजाफा होने से उत्पादों की मांग में कमी आई है। चीनी कंपनियों से उलट भारतीय कंपनियां अपने घरेलू बाजार को ज्यादा तवज्जो देती हैं। घरेलू बाजार में मांग कम होने का असर इन कंपनियों के भंडारों पर साफ दिखाई दे रहा है।
इस्पात कीमतों में हो रही बढ़ोतरी से परेशान होकर कई कंपनियों ने इस्पात का इसतेमाल कम कर दिया है। इस्पात की बढ़ती कीमतों को रोकने के लिए केंद्र सरकार को इस्पात कंपनियों से बातचीत करनी पड़ी।
इस्पात पर बड़ी चोट
वित्त वर्ष 2007-08 में इस्पात की कीमतों में लगभग 50 फीसदी का इजाफा हुआ है। इसके कारण इस्पात कंपनियों के भंडारों में मौजूद सामान भी तीन गुना बढ़ गया है। वित्त वर्ष 2006-07 के दौरान इस्पात कंपनियों के भंडारों में मौजूद सामान की कीमत 716 करोड़ रुपये थी जबकि, वित्त वर्ष 2007-08 के दौरान भंडारों में लगभग 2,565 क रोड़ रुपये का माल जमा है।
स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल) और जिंदल स्टेनलैस जैसी बड़ी इस्पात कंपनियों के भंडारों में तेजी से इजाफा हुआ है। सीमेंट उद्योग भी इसी तरह की समस्याओं से जूझ रहा है। बाजार में छाई मंदी के कारण पावर और निर्माण क्षेत्र की कंपनियों ने भी उपकरणों की खरीददारी बंद कर दी है।
एफएमसीजी बेनूर
गेहूं और खाद्य तेल की कीमतों में बढ़ोतरी होने के बाद से पिछले साल सभी खाद्य कंपनियों ने अपने उत्पादों की कीमतों में भी जबरदस्त इजाफा किया था। इस वजह से हिंदुस्तान यूनीलीवर, नेस्ले, मैरिको और गोदरेज जैसी कंपनियों के गोदामों में मौजूद भंडार भी तेजी से बढ़ा है।
हालांकि इससे कंपनी पर भंडारण कीमत का अतिरिक्त बोझ पड़ता है। लेकिन कंपनियों के बहीखातों में भंडारण लागत कंपनी के मुनाफे और नुकसान में दिखाया जाता है। भंडार में मौजूद सामान की कीमत को कंपनी अपनी लागत में से कम करती है यानी यह उसके मुनाफे में आता है। इसके उलट जब कंपनी के गोदामों में मौजूद सारा माल खत्म हो जाता है तो उसके मुनाफे में गिरावट आती है।