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सार्वजनिक वित्त, निजी क्षेत्र पर भारी पड़ेगी अमेरिकी हलचल

Last Updated- December 12, 2022 | 6:38 AM IST

विदेशी मुद्रा भंडार और चालू खाता घाटे जैसे देश के वृहद आर्थिक चर वर्ष 2013 के मुकाबले बेहतर हैं। उस समय अर्थव्यवस्था टेपर टैन्ट्रम से प्रभावित हुई थी। लेकिन देश की सरकारी वित्तीय स्थिति आठ साल पहले के मुकाबले बुरी स्थिति में है।
इसी तरह पारिवारिक क्षेत्र और कॉरपोरेट क्षेत्र पर भी आठ साल पहले की तुलना में अधिक कर्ज है। इस साल मार्च के अंत में भारत का सार्वजनिक कर्ज देश के नॉमिनल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 89.3 फीसदी था। यह अब तक का सर्वोच्च स्तर है। इस तरह भारत उभरते बाजारों में अर्जेन्टीना और ब्राजील के बाद तीसरा सबसे ज्यादा ऋणग्रस्त देेश है। हाल के वर्षों में भारत के सार्वजनिक कर्ज में लगातार बढ़ोतरी से ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि हाल के वर्षों में ब्याज दरों में गिरावट के बावजूद कर्ज राजस्व का बड़ा हिस्सा सार्वजनिक कर्ज का ब्याज चुकाने में ही चला जाता है। भारत सरकार की उधारी लागत वर्ष 2013 से करीब 220 आधार अंक कम हुई है।
हाल के बजट में ब्याज भुगतान का केंद्र के वित्त वर्ष 2021 के कर राजस्व में आधी से ज्यादा (51.5 फीसदी) हिस्सेदारी होगी। यह अनुपात वित्त वर्ष 2022 में बढ़कर 52.4 फीसदी पर पहुंचने के आसार हैं। इसकी तुलना में कर राजस्व में ब्याज भुगतान का हिस्सा वित्त वर्ष 2013 में 42.2 फीसदी था। इससे भारत पर वैश्विक ब्याज दरों में बढ़ोतरी और अमेरिका में बॉन्ड प्रतिफल बढऩे तथा डॉलर में मजबूती के बाद वित्तीय बाजारों में जोखिम से बचने के रूप में असर पड़ सकता है।
केयर रेटिंग्स में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘अमेरिका में बॉन्ड प्रतिफल एवं ब्याज दरों में बढ़ोतरी होने पर भारत में ब्याज दरों में बढ़ोतरी होने के आसार हैं। इस असर की वास्तविक मात्रा भारत की नीतिगत प्रतिक्रिया पर निर्भर करेगी, लेकिन ब्याज दर उसी समान दिशा में जाएंगी।’
बॉन्ड प्रतिफल में बढ़ोतरी से सरकारी समेत पूरी अर्थव्यवस्था में उधारी बढ़ेगी। केेंद्र ने वित्त वर्ष 2022 में करीब 12 लाख करोड़ रुपये उधार लेने की योजना बनाई है। उधारी की ज्यादा लागत से कर्ज अदायगी की लागत में भी इजाफा होगा। इससे सरकार को कर बढ़ाने या सार्वजनिक खर्च घटाने को मजबूर होना पड़ेगा। इससे आने वाले समय में आर्थिक वृद्धि की रफ्तार पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
सबनवीस ने कहा, ‘भारत का सार्वजनिक कर्ज काफी अधिक है। इसमें ऐसे समय थोड़ा जोखिम है, जब ब्याज दरें ऊपर की ओर जा रही हैं।’ 10 वर्षीय अमेरिकी सरकार के बॉन्डों का प्रतिफल जुलाई, 2020 में रिकॉर्ड निचले स्तरों से करीब 120 आधार अंक ऊपर है। अब अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल पिछले साल जुलाई में 0.53 फीसदी से बढ़कर 1.73 फीसदी पर पहुंच गया है। इसी अवधि में भारत में बॉन्ड प्रतिफल करीब 35 आधार अंक बढ़ा है, जो 5.84 फीसदी से बढ़कर 6.19  फीसदी हो गया।
यूबीएस सिक्योरिटीज इंडिया के तन्वी गुप्ता जैन और सुनील तिरुमलाई ने हाल में भारतीय अर्थव्यवस्था पर अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘बदलते फंडामेंटल के मद्देनजर इस साल किसी नीतिगत सामान्यता से बॉन्ड प्रतिफल एवं रुपया-डॉलर विनिमय दर समेत बाजार दरें समायोजित होंगी। हमने वित्त वर्ष 2022 में 10 साल के बॉन्ड का प्रतिफल 6.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया है, जिसमें 25 से 50 आधार अंक की बढ़ोतरी का जोखिम है।’
बॉन्डों के ऊंचे प्रतिफल से कॉरपोरेट क्षेत्र और परिवार क्षेत्र के लिए उधारी लागत बढ़ सकती है। महामारी के बाद ब्याज दरों में भारी गिरावट से कॉरपोरेट क्षेत्र को फायदा मिला है क्योंकि इससे उनके वित्त पर ब्याज का बोझ कम हुआ है। इसी तरह बैंकों के ब्याज दरों में कटौती से भी लोगों के आवास ऋणों और अन्य व्यक्तिगत ऋणों पर ईएमआई घटी है। अगर भारत में बॉन्ड प्रतिफल अमेरिका में ब्याज दरों की दिशा में बढ़ता है तो इस लाभ का अहम हिस्सा जा सकता है।
क्या है टैपर टैन्ट्रम
मई 2013 में अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने घोषणा की कि वह अपनी व्यापक बॉन्ड खरीद घटाएगा, जो वैश्विक वित्तीय संकट के समय से चल रही थी। इससे वैश्विक शेयरों एवं शेयरों में अचानक भारी बिकवाली हुई। इससे भारत समेत उन बहुत से उभरते बाजारों में पूंजी की निकासी और मुद्रा का अवमूल्यन हुआ, जिनमें बड़ी मात्रा में विदेशी पूंजी आई थी। इस घटनाक्रम को टैपर टैन्ट्रम कहा जाता है।

First Published - March 24, 2021 | 11:45 PM IST

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