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बासमती चावल का निर्यात 12 प्रतिशत घटा

Last Updated- December 11, 2022 | 8:02 PM IST

वित्त वर्ष 2022 में भारत से कृषि उत्पादों का निर्यात बढक़र 50 अरब डॉलर रहने के उत्साह के बीच बासमती चावल का निर्यात कम हुआ है। कृषि उत्पादों के निर्यात में लंबे समय से चावल निर्यात की अग्रणी भूमिका रही है। वित्त वर्ष 22 में लगातार तीसरे साल मूल्य के हिसाब से बासमती चावल का निर्यात पहले के साल की तुलना में कम हुआ है। 
2021-22 में भारत ने 3.53 अरब डॉलर के बासमती चावल का निर्यात किया है, जो 2019-20 के बाद सबसे कम है। ऐसे में यह देखना अहम होगा कि गिरावट की क्या वजह है और भारत से होने वाले कृषि निर्यात में इसकी क्या भूमिका है। 

भारत अभी भी बासमती चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है। इसके लंबे दाने, खाने में मुलायम होने और विशेष गुणवत्ता की वजह से पिछले कुछ दशक में यह भारत का सबसे स्वीकार्य और प्रमुख खाद्य बन गया है। लेकिन निर्यात में लगातार गिरावट पर गहराई से नजर रखे जाने की जरूरत है। 
विशेषज्ञों ने कहा कि इसकी कई वजहें हैं, जिसके कारण ईरान जैसे कुछ परंपरागत बाजारों में नुकसान हुआ है। यूरोपीय संघ में फंगीसाइड्स की समस्या आई है। साथ ही चावल की प्रतिस्पर्धी किस्मों से बेहतर मुनाफा होने के कारण रकबा कम हुआ है। यह कुछ प्रमुख वजहें हैं, जिससे प्रदर्शन में गिरावट आई है। 

एपीडा के चेयरमैन एम अगामुथु ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘बासमची चावल के घरेलू मांग में भी बढ़ोतरी हुई है। कुछ इलाकों में एमएसपी बढ़ी है, ऐसे में बासमती की जगह गैर बासमती चावल ने ले लिया है। यह भी निर्यात में गिरावट की वजह है।’ 
व्यापार नीति के विश्लेषक और ‘बासमती राइस- द नैचुरल हिस्ट्री जियोग्राफिकल इंडिकेशंस’ पुस्तक के लेखक एस चंद्रशेखरन ने पिछले साल प्रस्तुत एक शोधपत्र में लिखा था कि ब्रिटिश भारत के दस्तावेजों से पता चलता है कि बासमती चावल व सामान्य चावल के बीच मूल्य में अंतर 1940 मेंं 569 प्रतिशत था।  1995-96 से 2020-2021 के बीच सरकार द्वारा धान की बेहतरीन किस्म के घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य और बासमती चावल के बीच कीमत का अंतर 153 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत रह गया है।  सूत्रों ने कहा कि पिछले 2-3 साल के दौरान करीब 20 प्रतिशत रकबा बासमती चावल से गैर बासमती चावल की बुआई क्षेत्र में बदला है। कीमतों में अंतर कम होने के कारण मुख्य उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा और हिमालय के निचले इलाके में बासमती का रकबा घटा है।  
चंद्रशेखरन ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘इसके अलावा निर्यात में गिरावट की एक बड़ी वजह अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद से ईरान से खरीद एकदम रुक जाना है, जिससे सालाना करीब 12 लाख टन निर्यात कम हो रहा है।’ 

उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ में भारत से बासमती चावल की बिक्री, जो हर साल करीब 5 लाख टन होती है, गिरकर 1.5 से 2 लाख टन रह गई है। उच्च स्तर के फंगीसाइड्स से जुड़ी समस्याओं के कारण ऐसा हुआ है।
साथ ही पूसा-1121 (जो सबसे आम बासमती चावल की किस्मों में से एक है, जिसका उत्पादन भारत में होता है) को ईयू से शुल्क छूट की सुविधा नहीं मिल सकी, जिससे निर्यात पर असर पड़ा। इस बाजार पर भारत के बासमती कारोबार के वैश्विक प्रतिस्पर्धी पाकिस्तान का कब्जा हो रहा है।

First Published - April 10, 2022 | 10:37 PM IST

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