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…पर ईंधन की मांग तो घटेगी

Last Updated- December 07, 2022 | 4:41 AM IST

तेल मार्केटिंग कंपनियों का मानना है कि पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी से न सिर्फ उनके नुकसान की कुछ भरपाई हो सकेगी बल्कि, देश में इनकी बढ़ती हुई मांग भी कुछ हद तक कम होगी।


अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में लगी आग के मद्देनजर पिछले हफ्ते पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों में जोरदार बढ़ोतरी की गई थी। देश में पेट्रोलियम उत्पादों के सबसे बड़े विक्रेता इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘कीमतों में खासी बढ़ोतरी की वजह से आने वाले एक दो महीनों में पेट्रोल और डीजल की मांग में कमी होने की संभावना है।’

इस साल अप्रैल महीने में देश में कुल 9.5 लाख टन पेट्रोल और 45 लाख टन डीजल की खपत हुई थी। पेट्रोलियम मंत्रालय के अधिकारियों का अनुमान है कि पेट्रोल की खपत में महीने दर महीने होने वाली बढ़ोतरी इस बार तीन फीसदी से कुछ कम पर बनी रह सकती है। वहीं डीजल की मांग में पांच फीसदी की बजाय चार फीसदी की बढ़त होने की संभावना है।

देश की दूसरी सबसे बड़ी तेल विक्रेता कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) का भी कुछ ऐसा ही अनुमान है। कंपनी के एक अधिकारी ने बताया, ‘डीजल की मांग में भी आने वाले समय में कमी आने की उम्मीद है। दरअसल डीजल की बढ़ी हुई कीमतों की मार ट्रांसपोर्टेशन के जरिए उपभोक्ताओं पर ही पड़ती है।’

गौरतलब है कि पेट्रोल की तुलना में डीजल की मांग चार गुना अधिक होती है। दोनों की पेट्रोलियम उत्पादों पर सरकार की ओर से सब्सिडी दी जाती है। डीजल का इस्तेमाल मुख्य रूप से ट्रांसपोर्ट सेक्टर करता है और साथ ही बड़े पैमाने पर माल की ढुलाई के लिए ट्रकों में इसका इस्तेमाल किया जाता है।

डीजल पर मिलने वाली अधिक सब्सिडी की वजह से ही 2006-07 में जहां इसकी मांग 9.6 लाख टन थी, 2007-08 में यह बढ़कर 29 लाख टन हो गई। विश्व बाजार में ईंधन की ऊंची कीमतों और देश में इसे सब्सिडी की दर पर बेचने से तेल मार्केटिंग कंपनियों को राजस्व में खासा नुकसान हो रहा था।  

First Published - June 9, 2008 | 10:25 PM IST

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