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ठंडे बस्ते में डाला गया उपभोक्ता खर्च सर्वेक्षण होगा सार्वजनिक!

Last Updated- December 14, 2022 | 8:30 PM IST

मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय को पत्र लिखकर 2017-18 के उपभोक्ता खर्च सर्वेक्षण के आंकड़े सार्वजनिक करने का अनुरोध किया है। इस रिपोर्ट को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था। वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार मुख्य आर्थिक सलाहकार ने राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के चेयरमैन विमल कुमार रॉय को पत्र लिखकर उपभोक्ता खर्च सर्वेक्षण रिपोर्ट के आंकड़े मांगे हैं जिनका उपयोग वह 2020-21 की आर्थिक समीक्षा में करना चाहते हैं। आर्थिक समीक्षा अगले साल संसद के बजट सत्र में पेश की जाएगी।
 
मामले के जानकार एक अधिकारी ने कहा, ‘अभी तक सरकार ने उपभोक्ता खर्च सर्वेक्षण रिपोर्ट को जारी करने का निर्णय नहीं लिया है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के चेयरमैन को मुख्य आर्थिक सलाहकार के कार्यालय से इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का अनुरोध मिला है क्योंकि वे इसे आर्थिक समीक्षा में विश्लेषण के लिए उपयोग करना चाहते हैं।’ सांख्यिकी कार्यालय के सदस्यों को मुख्य आर्थिक सलाहकार के अनुरोध के बारे में हाल ही में आयोजित सांख्यिकी निकाय की बैठक में सूचित किया गया है और इस पर निर्णय लेने को कहा गया था। हालांकि अभी इस बारे में कोई बैठक नहीं हुई है।
 
इस बारे में जानकारी के लिए रॉय और सुब्रमण्यन को ईमेल किया गया लेकिन उनका जवाब नहीं आया। रिपोर्ट के नतीजों को नवंबर 2019 में बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा प्रकाशित किया गया था। रिपोर्ट में बताया गया था कि चार दशक में पहली बार 2017-18 में उपभोक्ता के खर्च में कमी आई है और ऐसा ग्रामीण मांग में नरमी की वजह से है। सर्वेक्षण के अनुसार 2017-18 में ग्रामीण इलाकों में प्रति व्यक्ति मासिक खर्च में 8.8 फीसदी और शहरी इलाकों में 2 फीसदी की कमी आई है। कुछ विश्लेषकों ने इसकी व्याख्या देश में गरीबी बढऩे का मामला बताया, वहीं कुछ सरकार द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समूह की राय थी कि खाद्य पदार्थों की खपत में कमी की वजह जनवितरण प्रणाली के जरिये खपत बढऩा है और गैर-खाद्य पदार्थों पर खर्च में कमी स्वास्थ्य सेवाओं आदि के नि:शुल्क होने की वजह से आई है।  
 
सरकार इस आंकड़े का उपयोग देश में गरीबी और असमानता का आकलन करने के लिए करती है, वहीं सकल घरेलू उत्पाद के आधार वर्ष में बदलाव के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है। जिस दिन बिजनेस स्टैंडर्ड ने यह रिपोर्ट प्रकाशित की थी उसी दिन सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा था कि आंकड़ों की गुणवत्ता मसले की वजह से सर्वेक्षण को रद्द करने का निर्णय किया गया है। सांख्यिकी कार्यालय स्वायत्त निकाय है और बयान जारी करने से पहले उससे सलाह नहीं ली गई थी।
 
ऐसा पहली बार हुआ था जब सरकार ने राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा किए गए सर्वेक्षण को रद्द किया था। 2019-20 की आर्थिक समीक्षा में सुब्रमणयन ने भारत में भोजन की थाली की लागत का अनुमान लगाने का प्रयास किया था, जिसे थालीनॉमिक्स शीर्षक दिया गया था।2017-18 के सर्वेक्षण को ठंडे बस्ते में डालने के बाद राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने जनवरी 2020 में 2020-21 और 2021-22 के लिए नए तरीके से सर्वेक्षण कराने का निर्णय लिया।  हालांकि कोरोना महामारी की वजह से सर्वेक्षण का नया दौर पूरा नहीं हो पाया। इसके परिणामस्वरूप 2021-22 के लिए होने वाले सर्वेक्षण में भी देरी हो सकती है। इसकी वजह से देश में लंबे समय से गरीबी पर कोई अनुमानित आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, इस बारे में उपलब्ध आंकड़ा 2011-12 का है, जब उपभोक्ता खर्च के सर्वेक्षण की रिपोर्ट सार्वजनिक की गई थी।
 
तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने 2011-12 के लिए नया सर्वेक्षण कराने का निर्णय लिया था क्योंकि उसका मानना था कि 2009-10 के आंकड़े जीडीपी के आधार वर्ष को बदलने के लिए उपयुक्त नहीं होंगे। 2017-18 की रिपोर्ट को जारी करने के लिए 19 जून, 2019 को विशेषज्ञ समिति ने मंजूरी दी थी, जिसे प्रतिकूल आंकड़ों की वजह से बाद में रोक लिया गया था। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के चेयरमैन ने दिसंबर में एक साक्षात्कार में बताया था कि सरकार द्वारा इस रिपोर्ट को खारिज किए जाने के बाद इसे रोका गया था।

First Published - December 6, 2020 | 9:26 PM IST

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