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तकलीफ देंगे अलग-अलग कार्बन कर, उद्योगों ने जताई चिंता

पर्यावरण को बनाए रखने के लक्ष्यों (ईएसजी) के तहत लगने वाले करों में पारद​र्शिता पर पीडब्ल्यूसी के सर्वेक्षण में उद्योगों ने जताई चिंता

Last Updated- January 09, 2024 | 10:14 PM IST
Carbon Tax

कंपनियों और उद्योग जगत में ज्यादातर लोगों को लगता है कि अलग-अलग अ​धिकार क्षेत्रों में कार्बन कर लगेंगे तो कंपनियों की आपूर्ति श्रृंखला पर असर पड़ सकता है। पर्यावरण को बनाए रखने के लक्ष्यों में कर पारदर्शिता पर पीडब्ल्यूसी के सर्वेक्षण में 67 फीसदी प्रतिभागियों ने यही राय रखी। सर्वेक्षण में विभिन्न उद्योगों के लगभग 250 आला अधिकारियों ने हिस्सा लिया।

पीडब्ल्यूसी के अध्ययन में कहा गया कि कंपनियों को यूरोपीय संघ (ईयू) के कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएम) जैसे कार्बन करों का विभिन्न क्षेत्रों में पड़ने वाला असर समझना होगा। इसमें लागत में होने वाला संभावित इजाफा, अनुपालन की जरूरतें और उपभोक्ताओं के तौर-तरीकों में आने वाला बदलाव शामिल हैं।

सीबीएएम का लक्ष्य ईयू आ रहे ऐसे उत्पादों के बनने के दौरान निकलने वाले कार्बन की उचित कीमत तय करना है, जो ऊर्जा की बहुत खपत करते हैं। लोहा, स्टील, सीमेंट, उर्वरक और एल्यूमीनियम ऐसे ही उत्पाद हैं। कार्बन कर 1 जनवरी 2026 से लागू होगा। पिछले साल 1 अक्टूबर से इसका परीक्षण शुरू हुआ है, जिस दौरान स्टील, सीमेंट, उर्वरक, एल्युमीनियम और हाइड्रोकार्बन उत्पादों समेत कार्बन का बहुत उत्सर्जन करने वाले क्षेत्रों की कंपनियों को उत्सर्जन का ब्योरा ईयू को देना है।

50 फीसदी कंपनियों ने नेट-जीरो उत्सर्जन का संकल्प लिया है और उत्पादन के दौरान कार्बन का उत्सर्जन कम करने के लिए वे सक्रियता से कदम भी उठा रही हैं। साथ ही वे पर्यावरण संबंधी लक्ष्यों के हिसाब से खुद को ढाल भी रही हैं। इनमें से 48 फीसदी का लक्ष्य 2030 तक नेट-जीरो उत्सर्जन पर पहुंचना है।

पीडब्ल्यूसी सर्वेक्षण में कहा गया है कि लंबे अरसे में लागत कम करने के लिए कंपनियों को कार्बन उत्सर्जन का पता लगाने के वास्ते डिजिटल समाधान लागू करने चाहिए और इससे संबंधन कर प्रोत्साहनों का फायदा भी उठाना चाहिए। रिपोर्ट कहती है, ‘सक्रिय रुख अपनाने पर कारोबार बदलती कार्बन कर व्यवस्थाओं से जोखिम कम कर सकते हैं और मिले मौकों का फायदा उठा सकते हैं।’

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उधर सर्वेक्षण में शामिल 59 फीसदी कंपनियां मानती हैं कि ईएसजी से जुड़े कदमों के लिए नीति निर्माताओं को प्रोत्साहन देने चाहिए। 34 फीसदी का कहना है कि पर्यावरण संबंधी कर और प्रोत्साहन की जुगलबंदी से पर्यावरण हितैषी तरीकों को बढ़ावा मिल सकता है।

पीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट कहती है, ‘ऐसी नीतियां होंगी तो कंपनियां ईएसजी के लिए निवेश करने, कर के मामले में जिम्मेदार बनने और जलवायु परिवर्तन करने को प्राथमिकता के साथ तेज कर सकती हैं। साथ ही वे सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में भी योगदान कर सकती हैं।’ भारत ने 2030 तक अपनी कुल बिजली उत्पादन क्षमता का 50 फीसदी हिस्सा गैर-जीवाश्म ईंधन से चलाने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है।

सर्वेक्षण में 75 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि उन्हें प्रकाशन योग्य कर पारदर्शिता रिपोर्ट नहीं मिलती, इसलिए कर पारदर्शिता में भी सुधार की गुंजाइश है। पीडब्ल्यूसी इंडिया के ईएसजी लीडर संबितोष मोहपात्र ने कहा कि कर पारद​र्शिता और ईएसजी सिद्धांतों के बीच संबंध अब सामने आ रहे हैं। भारतीय कारोबार अपनी पर्यावरण संबंधी रणनीतियों में कर के पहलुओं को शामिल करने की अहमियत समझ रहे हैं। सर्वेक्षण से पता चला है कि 48 फीसदी कारोबारी संस्थान अगले तीन वर्षों में कर योगदान को घो​षित कर स्वै​च्छिक कर पारदर्शिता अपनाने की योजना बना रहे हैं।

First Published - January 9, 2024 | 10:14 PM IST

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