सरकार रूस व यूक्रेन के बीच चल रहे टकराव का विभिन्न क्षेत्रों पर पडऩे वाले असर का आकलन कर रही है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि इसके लिए उद्योग संगठनों के साथ परामर्श हो रहा है, जिससे आ रही समस्याओं को समझा जा सके।
अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘हम उन क्षेत्रों का विश्लेषण कर रहे हैं, जिन पर असर होगा। हमने इस पर पहले ही दो बैठकें की हैं। इस टकराव का अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर होगा। वहीं दूसरी ओर रूस और यूक्रेन द्वारा आपूर्ति किए जाने वाले तैयार सामान का विकल्प तलाशने के हिसाब से कुछ उद्योगों के लिए अवसरों का सृजन होगा। असर के आकलन के लिए हमने उद्योग के साथ एक दौर की बातचीत की है। हमने उनसे आंकड़ों का विश्लेषण करने और फिर संपर्क करने को कहा है।’
रुपये-रूबल कारोबार की अनुमति पर सरकारी अधिकारी ने कहा कि यह केवल वक्त की बात है। उन्होंने कहा, ‘इससे ईरान विवाद के वक्त भी मदद मिली थी। ऐसा किया जाना तार्किक है।’
उद्योग के एक अधिकारी ने कहा कि जहां तक तैयार सामान की बात है, भारत के निर्यातक रूस की जगह यूरोपीय देशों को आपूर्ति का लाभ उठा सकते हैं। 2020 में रूस ने यूरोप को 500 अरब डॉलर से ज्यादा के वस्तुओं की आपूर्ति की थी। अधिकारी ने कहा, ‘हम देख रहे हैं कि रूस किन किन वस्तुओं की आपूर्ति यूरोप को करता था और क्या उसकी आपूर्ति हम (भारत) कर सकते हैं। इनमें पेट्रोलियम उत्पाद, लौह एवं स्टील, इंजीनियरिंग, प्लास्टिक, रबर, कागज के उत्पाद के साथ साथ कार्बनिक व अकार्बनिक रसायन शामिल है, जिनकी आपूर्ति से हम लाभ उठा सकते हैं।’
उपरोक्त उल्लिखित अधिकारी ने कहा, ‘हमें लौह एवं स्टील, और पेट्रोलियम उत्पादों के यूरोप से ऑर्डर मिलने शुरू हो गए हैं। यूक्रेन के पुनर्निर्माण में भी वक्त लगेगा और भारत उसका लाभ उठा सकता है। (आगे चलकर) हम उम्मीद करते हैं कि यूरोप से ज्यादा ऑर्डर मिलेंगे।’ यूरोप भी भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। भारत के कुल निर्यात में इसकी हिस्सेदारी पांचवा हिस्सा है। चालू वित्त वर्ष की पहली 3 तिमाही में भारत ने यूरोप को 60.3 अरब डॉलर का निर्यात किया है।
एक और प्रतिनिधि ने कहा कि उद्योग ने पहले ही सरकार को अपनी प्रमुख चिंताओं से अवगत करा दिया है, जिसमें ज्यादा महंगाई के साथ टकराव के कारण निर्यातों पर पडऩे वाला असर शामिल है।
अधिकारी ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा, ‘पहली चिंता कच्चे तेल के बढ़ते दाम का महंगाई पर पडऩे वाले असर को लेकर है। सरकार ने साफ किया है कि अर्थव्यवस्था इस समय लचीली है और भारतीय रिजर्व बैंक इस मामले से अवगत है व इसका ध्यान रखेगा। सरकार की अन्य चिंता यह है कि निर्यात किस तरह से प्रभावित हो रहा है। सरकारी अधिकारियों ने कहा है कि जैसी स्थिति पैदा होगी, उस तरह के कदम उठाए जाएंगे।’
दो देशों के बीच चल रहे युद्ध से रूस और यूक्रेन को होने वाले निर्यात पर असर पड़ रहा है क्योंकि वैश्विक शिपिंग लाइनों ने रूस आने जाने वाली शिपमेंट रद्द कर दी है। मालभाड़़ा बढ़ रहा है और पोर्ट बंद हैं। निर्यातकों को डर है कि उनका भुगतान अटक जाएगा, क्योंकि पश्चिमी देशों ने तमाम रूसी बैंकों के सोसायटी फॉर वल्र्डवाइड इंटरबैंक फाइनैंशियल टेलीकम्युनिकेशन (स्विफ्ट) तक पहुंच को प्रतिबंधित कर दिया है।
सरकार अपने विदेश स्थित कूटनीतिक मिशन के नेटवर्क से संपर्क साध रही है, जिससे कि अनाज के निर्यातक भारतीय गेहूं और मक्के का निर्यात कर सकें क्योंकि कुछ समय तक इन दो देशों को आपूर्ति बाधित रहेगी। रूस विश्व का सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक है और साथ ही वह चीन व भारत के बाद सबसे बड़ा उत्पादक भी है। वहीं यूक्रेन भी 5 शीर्ष गेहूं निर्यातकों में शामिल है।
इसी तरह से भारत वैकल्पिक बाजार विकसित करने पर विचार कर रहा है, जिसमें इराक, सऊदी अरब, अमेरिका, जापान और ट्यूनीशिया के बाजार शामिल है। इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि चाय के निर्यात में आई कमी की भरपाई इन देशों में निर्यात कर पूरी की जा सकेगी। उद्योग से जुड़े एक और अधिकारी ने कहा हंगरी, पोलैंड, रोमानिया और स्लोवाकिया स्थित कंपनियों ने भारत सरकार द्वारा चलाए गए वापसी अभियान का समर्थन किया है।
टाटा कंसल्टिंग सर्विसेज, विप्रो, आर्सेलरमित्तल, सन फार्मास्यूटिकल्स, अपोलो टायर्स, सीके बिड़ला समूह, डॉ रेड्डीज लैबोरेटरीज, टेक महिंद्रा, एलऐंडटी और बर्जर पेंट्स की पूर्वी यूरोप में मौजूदगी है, जिन्होंने रूस-यूक्रेन संघर्ष के बीच भारत द्वारा ऑपरेशन गंगा अभियान के तहत भारत द्वारा प्रदान की जा रही मानवीय सहायता में सहयोग के लिए तमाम लॉजिस्टिक सुविधाएं मुहैया कराईं।