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गैर खाद्य सामान पर ग्रामीणों का खर्च बढ़ा, 11 साल बाद जारी HCES सर्वे में शहरी भारतीयों के लिए क्या?

आंकड़ों से पता चलता है कि मौजूदा भाव पर ग्रामीण इलाकों में एमपीसीई 2022-23 में बढ़कर 3,773 रुपये प्रति माह हो गया है, जो 2011-12 में 1,430 रुपये प्रति माह था।

Last Updated- February 25, 2024 | 10:25 PM IST
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सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (मोस्पी) द्वारा जारी ताजा घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) के मुताबिक 2022-23 में पहली बार भारत के ग्रामीण इलाकों में गैर खाद्य वस्तुओं पर औसत खर्च बढ़कर 50 प्रतिशत से ऊपर चला गया है। साथ ही इसी अनुपात में कुल व्यय में खाद्य वस्तुओं पर किया जाने वाला खर्च कम हुआ है।

सर्वे के परिणाम 11 साल के बाद जारी किए गए हैं, जिससे पता चलता है कि प्रति व्यक्ति मासिक व्यय (एमपीसीई) में ग्रामीण इलाकों में खाद्य वस्तुओं पर खर्च 2022-23 में घटकर 46.38 प्रतिशत रह गया है, जो 2011-12 में 52.9 प्रतिशत था।

वहीं शहरी इलाकों में 2022-23 में खर्च का यह अनुपात और घटकर 39.17 प्रतिशत रह गया है, जो 2011-12 में 42.62 प्रतिशत था।

इसके विपरीत एमपीसीई के प्रतिशत में गैर खाद्य वस्तुओं पर खर्च 2022-23 में बढ़कर 53.62 प्रतिशत हो गया है, जो 2011-12 में 47.1 प्रतिशत था। शहरी इलाकों में यह अनुपात और बढ़कर 60.83 प्रतिशत हो गया है, जो 2011-12 में 57.38 प्रतिशत था।

ग्रामीण इलाकों में मोटे अनाज पर व्यय 2022-23 में घटकर एमपीसीई का 4.89 प्रतिशत रह गया है, जो 2011-12 में 10.69 प्रतिशत था। संभवतः केंद्र सरकार द्वारा गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ्त अनाज दिए जाने के कारण ऐसा हुआ है।

अन्य वस्तुओं में सब्जियों, दालों, खाद्य तेलों, चीनी और नमक पर खर्च भी कम हुआ है, जबकि दूध और दूध उत्पादों, अंडे, मछली और मांस, ताजे फल, बेवरिज और प्रसंस्कृत खाद्य पर खर्च बढ़ा है।

गैर खाद्य वस्तुओं में पान, तंबाकू और नशीले पदार्थों, टायलेट में इस्तेमाल होने वाली चीजों, घर में इस्तेमाल होने वाली चीजों, दवाओं, मनोरंजन, किराये, आने जाने पर खर्च, ग्राहक सेवा और टिकाऊ वस्तुओं पर व्यय बढ़ा है और ईंधन प बिजली, शिक्षा, कपड़े, बिस्तर और जूते चप्पल पर खर्च घटा है।

शहरी इलाकों में मोटे अनाज, दलहन, चीनी और नमक, अंडे, मछली, मांस और खाद्य तेल पर खर्च कम हुआ है, जबकि दूध एवं दुग्ध उत्पादों, मेवा, बेवरिज और प्रसंस्कृत खाद्यों पर खर्च बढ़ा है।

गैर खाद्य वस्तुओं में पान, तंबाकू और नशीले पदार्थों, टॉयलेट में इस्तेमाल होने वाले व अन्य घरेलू इस्तेमाल की वस्तुओं, दवाओं (अस्पताल में भर्ती छोड़कर), आवाजाही, किराये, व टिकाऊ वस्तुओं पर खर्च बढ़ा है, जबकि ईंधन और बिजली, शिक्षा, मेडिकल (अस्पताल में भर्ती), मनोरंजन, कपड़ों और बिस्तरों, फुटवीयर पर खर्च कम हुआ है।

आंकड़ों से पता चलता है कि मौजूदा भाव पर ग्रामीण इलाकों में एमपीसीई 2022-23 में बढ़कर 3,773 रुपये प्रति माह हो गया है, जो 2011-12 में 1,430 रुपये प्रति माह था। इसमें 164 प्रतिशत वृद्धि हुई है। शहरी इलाकों में एमपीसीई146 प्रतिशत बढ़कर 6,459 रुपये हो गया है, जो पहले 2,630 रुपये था।

राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (एनएसी) के कार्यकारी चेयरमैन रहे पीसी मोहनन ने कहा कि ग्रामीण खपत में तेज बढ़ोतरी की वजह ताजा सर्वे का बदला तरीका हो सकता है, जिससे खपत के बेहतर आंकड़े पाने में मदद मिली है।

First Published - February 25, 2024 | 10:25 PM IST

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