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रेटिंग एजेंसियों के रुख से वित्त मंत्रालय के आ​र्थिक सलाहकार हैरान, जलवायु परिवर्तन पर विकसित देशों को घेरा

आर्थिक सलाहकारों ने 'रीएग्जामिनिंग नैरेटिव्स: अ कलेक्शन ऑफ एसेज' में ये विचार व्यक्त किए हैं। इसमें CEA वी अनंत नागेश्वरन और उनके साथ काम करने वाले लोग शामिल हैं।

Last Updated- December 21, 2023 | 9:59 PM IST
भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर अगले वित्त वर्ष 7 फीसदी!, Indian economy likely to expand at around 7% in FY25, says FinMin

भारतीय अर्थव्यवस्था ने  पिछले 15 वर्षों में शानदार प्रगति की है और यह अब दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यस्था बन गई है। मगर इस शानदार प्रदर्शन के बावजूद वैश्विक रेटिंग एजेंसियों ने भारत की अर्थव्यस्था को निम्नतम निवेश श्रेणी में रखा है।

रेटिंग एजेंसियों के इस रुख से वित्त मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार सहमत नहीं हैं और एक तरह से उन्होंने नाराजगी भी  जताई है। इन आर्थिक सलाहकारों का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को कम रेटिंग दिए जाने की वजह यह है कि स्टैंडर्ड ऐंड पूअर्स, फिच रेटिंग्स और मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस जैसी एजेंसियां गुणात्मक मानकों पर कुछ अधिक ही निर्भर रहती हैं।

आर्थिक सलाहकारों ने जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए आवश्यक धन आवंटित करने में विकसित देशों के भेदभाव पूर्ण व्यवहार पर भी नाराजगी जताई है। सलाहकारों ने कहा कि कार्बन उत्सर्जन कम करने में भी विकसित देश भारत जैसे विकासशील देशों के साथ अपेक्षित सहयोग नहीं कर रहे हैं।

आर्थिक सलाहकारों ने  ‘रीएग्जामिनिंग नैरेटिव्स: अ कलेक्शन ऑफ एसेज’ में ये विचार व्यक्त किए हैं।   मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन और उनके साथ काम करने वाले लोगों ने ये सामग्री तैयार की है।

सलाहकारों के अनुसार शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच सरल नहीं होने के कारण असमानता दूर करने में सबसे बड़ी बाधा आ रही है। हालांकि, उन्होंने कहा कि सरकार ने यह अंतर दूर करने के लिए कई उपाय किए हैं।

गुरुवार को प्रकाशित इन लेखों में भारत के विदेश व्यापार में संरचनात्मक बदलावों की चर्चा की गई है। इनमें कहा गया है कि विदेश व्यापार में सेवा क्षेत्र की भूमिका बढ़ रही है जिससे निर्यात की आय और कीमतों में उतार चढाव कम हुए हैं ।

वित्त मंत्रालय के सलाहकारों ने कहा, ‘पिछले 15 वर्षों के दौरान भारत की रेटिंग बीबीबी- पर स्थिर रही है। दूसरी तरफ इसी अवधि के दौरान भारत 2008 में दुनिया की 12वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से छलांग लगाकर 2023 में 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। इस अवधि के दौरान प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में  भारत दूसरी सबसे तेज वृद्धि दर के साथ आगे बढ़ता रहा है।’

अर्थशास्त्रियों ने इस पर हैरानी जताई कि व्यापक आर्थिक हालत में  इतना बड़ा सुधार रेटिंग एजेंसियों के लिए मायने नहीं रख रहा है। उन्होंने कहा कि धारणा, अतार्किक मूल्यांकन, कुछ सीमित लोगों के विचार और अनुपयुक्त विधियों द्वारा शोध सहित अपारदर्शी गुणात्मक कारकों से वास्तविक तस्वीर सामने नहीं आ पाती है।

अर्थशास्त्रियों ने कहा कि इससे विकाशील देशों के लिए पूंजी तक पहुंच मुश्किल हो जाती है और उनके लिए सस्ती रकम उपलब्ध नहीं हो पाती है।

उन्होंने क्रेडिट रेटिंग या साख के निर्धारण के लिए एक वैकल्पिक रास्ता सुझाया है। उन्होंने कहा कि जिस देश ने ऋण भुगतान में कभी चूक नहीं की है, उसके मामले में यह मान लेना चाहिए कि संबंधित देश ऋण अदायगी में पूरी मुस्तैदी दिखाएगा।

आर्थिक सलाहकारों ने कहा कि अगर इस मानक को अपनाया जाय तो यह ऋण भुगतान में विभिन्न तरह की चूक से निपटने में   एक पुख्ता आधार मुहैया कर सकता है। इससे यह पता लगाया जा सकता है कि कोई देश ऋण भुगतान को लेकर कितना संजीदा है।

हालांकि अर्थशास्त्रियों ने कहा कि इसके लिए ऋणों से जुड़े आंकड़े जैसे पुनर्गठन, भुगतान में चूक आदि एकत्रित करने होंगे जिसमें शुरू में काफी कठिनाई आ सकती है। उन्होंने कहा कि मगर इतना तो निश्चित है कि इससे क्रेडिट रेटिंग की विश्वशनीय बढ़ेगी और सबका भला होगा।

आर्थिक सलाहकारों ने कहा कि गुणात्मक सूचनाएं तभी अमल में लाई जानी चाहिए जब अन्य विधियां कारगर साबित नहीं रह जाएं।

नागेश्वरन और उनकी टीम ने आरोप लगाया की विकसित देश जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म जैसे एकतरफा तरीके अपना रहे हैं। उन्होंने कहा कि इनसे विकासशील देशों को हर तरफ से नुकसान खेलना होगा।

First Published - December 21, 2023 | 9:59 PM IST

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