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मार्च तक खाद्य महंगाई घटने के आसार नहीं

Last Updated- December 14, 2022 | 9:37 PM IST

पिछले कुछ महीनों से खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेजी से परिवारों का बजट बिगड़ गया है। केंद्र सरकार व भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) दोनों का ही मानना है कि खरीफ की फसल बाजार में आने के साथ स्थिति में सुधार होगा।
बहरहाल विशेषज्ञों और शिक्षाविदों का कहना है कि कुछ किए जाने की तुलना में यह कहना आसान है कि खाद्य महंगाई दर में बढ़ोतरी उन जिंसों की वजह से है, जिनकी फसल अच्छी नहीं हुई है। दूसरे, अगर कुछ खरीफ फसलों का उत्पादन पिछले साल से अधिक होता है, तब भी जब तक वे उत्पाद बाजार में नहीं पहुंच जाते, स्थिति में उल्लेखनीय सुधार नहीं होगा। कुछ विशेषज्ञों का आरोप है कि हाल में पारित कृषि अधिनियम समस्याओं के लिए जिम्मेदार है। उनका तर्क है कि कृषि अधिनियम के बाद से ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है कि बड़ी मात्रा में खाद्य वस्तुओं की बिक्री मंडियों के बाहर की जाए, जिसका कोई ब्योरा न हो, वहीं कुछ इस सिद्धांत की आलोचना भी कर रहे हैं। मॉनसूनी बारिश की अवधि बढऩे से भी कीमतों में तेजी आई है।  रसोई में इस्तेमाल होने वाले जरूरी सामान के दाम बढऩे की वजह से सितंबर 2020 में खुदरा महंगाई दर बढ़कर 8 महीने के उच्चतम स्तर 7.34 प्रतिशत पर पहुंच गई है।
उपभोक्ता मूल्य आधारित (सीपीआई) महंगाई दर अगस्त में 6.76 प्रतिशत और सितंबर 2019 में 3.99 प्रतिशत थी। सितंबर 2020 में खुदरा खाद्य महंगाई  दो अंकों में 10.68 प्रतिशत पर पहुंच गई, जो अगस्त में 9.05 प्रतिशत थी।  यह बढ़ोतरी मुख्य रूप से मांस और मछलियों के दाम में 18 प्रतिशत, अंडों के दाम में 15 प्रतिशत, तेल व वसा के दाम में 13 प्रतिशत, सब्जियों के दाम में 21 प्रतिशत और दलहन के दाम में 15 प्रतिशत बढ़ोतरी के कारण हुई है। खाद्य वस्तुओं में केल फल और मोटे अनाज कम महंगे हुए हैं, जिनके दाम इस दौरान 3 से 5 प्रतिशत बढ़े हैं। कुल मिलाकर खुदरा महंगाई अक्टूबर 2019 के बाद से 4 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ी है।
सीपीआई का इसके पहले का उच्च स्तर जनवरी 2020 में 7.59 प्रतिशत था।
सितंबर 2020 में थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) आधारित महंगाई दर में 1.32 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है, जो इसके पहले महीने में 0.16 प्रतिशत थी और इसके पहले के चार महीनों में अवस्फीति थी। इसमें भी तेजी मुख्य रूप से खाद्य वस्तुओं की वजह से आई है।
मुंबई स्थित इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट आफ डेवलपमेंट रिसर्च (आईजीआईडीआर) के निदेशक महेंद्र देव ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘अगर आप उन वस्तुओं की सूची देखें, जिनकी वजह से दाम बढ़ रहे हैं, दलहन व कुछ सब्जियों को छोड़कर इनमें से ज्यादातर खरीफ की फसल से जुड़ी हैं। ऐसे में मुझे नहीं पता कि सरकार किस आधार पर दावे कर रही है कि कुछ सप्ताह में खाद्य वस्तुओं के दाम कम हो जाएंगे। मुझे लगता है कि अंडों, मांस व मछली के कारण महंगाई जारी रहेगी, जो अच्छी या बुरी खरीफ फसल पर निर्भर नहीं है।’
उन्होंने कहा कि वह उम्मीद करते हैं कि मार्च तक खाद्य महंगाई 8 प्रतिशत के ऊपर रहेगी, जिसकी वजह से कुल मिलाकर महंगाई दर भी अधिक रहेगी। देव ने कहा, ‘मुझे लगता है कि रिजर्व बैंक भी उम्मीद से थोड़ा ज्यादा आशावादी है।’
बहरहाल केंद्र सरकार ने पिछले कुछ सप्ताह में प्रमुख आवश्यक जिंसों की आपूर्ति बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं और उनमें से कुछ के परिणाम दिखने भी लगे हैं। सरकारन े 25,000 टन प्याज और 30,000 टन आलू के आयात की घोषणा की है और दलहन के आयात में ढील दी है, जिससे बढ़ती कीमतों के तूफान को रोका जा सके।
केयर रेटिंग में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘खाद्य महंगाई के मामले में मुझे भी लगता है कि यह कुछ महीनों तक अधिक बनी रह सकती है। अगर आप खुदरा बाजारों को देखें तो थोक बाजार की तुलना में दाम ज्यादा है, जिका मतलब यह है कि कारोबारी अतिरिक्त मुनाफा ले रहे हैं और आपूर्ति बढ़े बगैर स्थिति नहीं सुधरने वाली है।’
इंटरनैशनल ग्रोथ सेंटर (आईजीसी) के प्रोग्राम डायरेक्टर प्रणव सेन ने कहा कि उपनगरीय व ग्रामीण इलाकों में   खाद्य महंगाई के कारण मांग बढ़ सकती है, जिन्हें खेती से आमदनी बढ़ी है।

First Published - November 6, 2020 | 1:42 AM IST

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