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सरकारी खजाने पर खाद्य सब्सिडी का दबाव

Last Updated- December 14, 2022 | 8:34 PM IST

उर्वरक सब्सिडी बढ़ाने के बाद सरकार को खाद्य सब्सिडी व्यय पर फिर से विचार करना पड़ सकता है क्योंकि चालू वित्त वर्ष के पहले सात महीनों में 91 फीसदी राशि आवंटित की जा चुकी है। इससे सरकार पर ऐसे समय खर्च का दबाव बढ़ सकता है जब राजस्व का परिदृश्य कमजोर बना हुआ है और आगे अधिक पूंजीगत व्यय होने जा रहा है।
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत मुफ्त खाद्यान्न वितरण योजना 30 नवंबर को समाप्त हो गई  है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इस योजना का एक बड़ा हिस्सा राजकोषीय पैकेज में शामिल नहीं था। इस योजना के विस्तार की भी चर्चाएं चल रही थीं, लेकिन वित्तीय वजहों से अभी तक कोई फैसला नहीं लिया गया है।
महालेखा नियंत्रक के आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में खाद्य सब्सिडी के लिए 1.15 लाख करोड़ रुपये का बजट रखा गया है, जिसमें से अक्टूबर के अंत तक 1.05 लाख करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। खाद्य सब्सिडी पर खर्च अक्टूबर में मासिक आधार पर 27 फीसदी बढ़ा है, जबकि सितंबर में मासिक बढ़ोतरी 16 फीसदी रही थी। पिछले साल कुल अक्टूबर तक कुल खाद्य सब्सिडी आवंटन का करीब 70 फीसदी हिस्सा अक्टूबर तक खर्च हुआ था।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘अगर केंद्र सरकार अपनी पूरी सब्सिडी और भारतीय खाद्य निगम एवं अन्य एजेंसियों के बकाये का पूरा भुगतान करती है तो उसे वित्त वर्ष 2020-21 में 5.70 लाख करोड़ रुपये मुहैया कराने होंगे।’ सरकार ने जून में मुफ्त खाद्यान्न वितरण योजना की अवधि नवंबर तक बढ़ाई थी, जिससे योजना पर खुल खर्च बढ़कर 1.5 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया। किसी भी सामान्य वर्ष में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) पर वास्तविक खाद्य सब्सिडी करीब 1.80 लाख करोड़ रुपये होती है। इसमें एफसीआई को सब्सिडी और राज्यों की विकेंद्रित खरीद शामिल है। हालांकि इस साल मुफ्त अनाज वितरण पर खर्च की वजह से सब्सिडी 1.5 लाख करोड़ रुपये बढ़ जाएगी।
इस तरह सरकार का कुल खाद्य सब्सिडी खर्च वर्ष 2020-21 में तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक रहने का अनुमान है। इसमें एनएफएसए और गरीब कल्याण योजना की सब्सिडी शामिल है। इसके अलावा इसे राज्यों की तरफ से विकेंद्रित खरीद के लंबित भुगतान के लिए कम से कम 20,000 करोड़ रुपये का प्रावधान करना पड़ सकता है।
इक्रा रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा, ‘कुल 1.5 लाख करोड़ रुपये के मुफ्त खाद्यान्न वितरण कार्यक्रम में से केवल 30,000 करोड़ रुपये राजकोषीय पैकेज में शामिल किए गए। इसलिए यह साफ नहीं है कि शेष रकम कहां से आएगी। यह देखना होगा कि क्या यह एफसीआई को एनएसएसएफ (राष्ट्रीय लघु बचत कोष) ऋण के रूप में आएगी या सरकार अपना उधारी कार्यक्रम बढ़ाएगी। यह भ्रम मौजूद है।’
नायर ने कहा, ‘हमारा राजकोषीय घाटे का अनुमान जीडीपी का 7.7 फीसदी है। यह किसी भी तरह पूरी खाद्य सब्सिडी को शामिल नहीं कर सकता। यहां 1.2 लाख करोड़ रुपये का बजट कम है, जिसके वित्त पोषण का स्रोत स्पष्ट नहीं है।’ केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि मुफ्त खाद्यान्न योजना को नवंबर से आगे नहीं बढ़ाया जाएगा, इसलिए खर्च का दबाव कम होगा। लेकिन सरकार को चालू वित्त वर्ष में खाद्य सब्सिडी के लिए अतिरिक्त प्रावधान करने होंगे या इसे अगले वित्त वर्ष में ले जाना होगा। पिछले कुछ वर्षों में एनएसएसएफ ऋण सरकार के खर्च के वित्त पोषण के लिए एक आम विकल्प रहा है क्योंकि वह कोशिश करती है कि राजकोषीय घाटे को नियंत्रित रखा जाए। कोविड से पहले ही भारतीय खाद्य निगम पर 31 मार्च, 2020 को राष्ट्रीय लघु बचत कोष (एनएसएसएफ) के करीब 2.54 लाख करोड़ रुपये बकाया थे।

First Published - December 3, 2020 | 11:43 PM IST

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