वित्त मंत्रालय विदेशी उधार के मानदंडों में और ढिलाई बरतने पर विचार कर रहा है।
खासतौर पर विनिर्माण क्षेत्र से जुड़ी भारतीय कंपनियों के लिए नियमों में छूट देने पर विचार किया जा रहा है। कॉरपोरेट और सरकारी ऋण इंस्ट्रूमेंट्स में विदेशी संस्थागत निवेशकों को अधिक पैसा लगाने के लिए प्रेरित करने के लिए भी मंत्रालय छूट देने का मन बना रही है।
फिलहाल भारतीय ऋण बाजार में एफआईआई को 8 अरब डॉलर तक के निवेश की छूट है। इसमें से 3 अरब डॉलर तक का निवेश कारोबारी ऋण और 5 अरब डॉलर तक का निवेश सरकारी प्रतिभूतियों में की जा सकती है।
वित्त मंत्रालय ने निजी क्षेत्र के बैंकों को यह सलाह दी है कि वे घरेलू म्युचुअल फंडों में और नकदी की व्यवस्था करें ताकि अगर निवेशक फंडों को भुनाना चाहें तो इससे किसी तरह का दबाव उत्पन्न नहीं हो। वैश्विक वित्तीय संकट के कारण दुनिया भर में ऋण प्रणालियों पर असर पड़ा है और इसी को ध्यान में रखते हुए इन कदमों पर विचार किया जा रहा है।
भारत में भी पिछले कुछ समय में तरलता की कमी देखने को मिली है और यही वजह है कि पिछले 15 दिनों में सरकार ने बुनियादी क्षेत्र के लिए विदेशी उधार की नीतियों में दो दफा बदलाव किया है। भारतीय प्रतिभति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने भी पार्टीसिपेटरी नोट्स के जरिए निवेश पर लगे प्रतिबंध में छूट देने की घोषणा की है।
वहीं नकदी की कमी को दूर करने के लिए ही रिजर्व बैंक ने नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) में आधे फीसदी की कटौती की है। सीआरआर में यह कटौती 11 अक्टूबर से प्रभाव में आएगी। अगर बुनियादी क्षेत्र के अलावा दूसरी कंपनियों को भी विदेशी उधार हासिल करने में और छूट दी जाती है तो इससे रुपये पर बढ़ रहा दबाव भी कम होने की संभावना है।
फिलहाल बुनियादी क्षेत्र से इतर कंपनियां अधिकतम 5 करोड़ डॉलर तक का विदेशी उधार ले सकती हैं। सरकार उच्चतम ब्याज दरों में भी बढ़ोतरी कर सकती है ताकि कंपनियां लंबी अवधि के लिए ऋण ले सकें। मंत्रालय ने बुनियादी क्षेत्र की कंपनियों के लिए ईसीबी सीमा को 10 करोड़ डॉलर से बढ़ाकर 50 करोड़ डॉलर कर दिया था।