विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) को बढ़ावा देने की सरकार की मुहिम जारी है। इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने एफडीआई के नियमों में कुछ ढील दी है।
आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने एफडीआई नीति में तब्दीली करते हुए इस निवेश के दायरे में आने वाले क्षेत्रों में परोक्ष रूप से होने वाले विदेशी निवेश को एफडीआई से अलग हटा दिया गया है।
नए प्रावधानों के तहत अगर कोई विदेशी कंपनी किसी भारतीय कंपनी के जरिये किसी अन्य भारतीय कंपनी में निवेश करती है तो उसको एफडीआई के तहत नहीं माना जाएगा। लेकिन उस विदेशी कंपनी के शीर्ष पद पर कोई भारतीय ही होना चाहिए।
एफडीआई की नीति में बदलाव के बारे में पूछने पर गृह मंत्री पी चिंबदरम ने कहा, ‘इस कवायद का मकसद औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग के मुताबिक एफडीआई के प्रावधानों को सरल और पारदर्शी बनाना है।’
एफडीआई के दायरे में आने वाले क्षेत्र में अगर किसी कंपनी का भारतीय कंपनी के साथ संयुक्त उपक्रम है और वह इसमें अपनी हिस्सेदारी किसी अन्य पक्ष को बेचना चाहती है तो इसके लिए अब उसे सरकार की मंजूरी लेनी होगी।
सीसीईए ने यह बदलाव भी एफडीआई प्रावधान में किया है। सीसीईए ने उन सिफारिशों को मंजूर कर लिया है जिसकी प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के समूह (जीओएम) ने सिफारिश की थी।
एफडीआई के प्रावधानों में बदलाव के मामले पर आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति की ओर से आधिकारिक रूप से यही कहा गया है कि मौजूदा आर्थिक मंदी के दौर में इन कदमों से एक सकारात्मक संदेश जाएगा और देश में विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
नये प्रावधान के तहत जो व्यवस्था की गई है, उसके मुताबिक अगर भारतीय नागरिक अपनी कंपनी की हिस्सेदारी किसी विदेशी कंपनी को बेच रहे हैं तो इसके लिए उन्हें विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) से मंजूरी हासिल करनी होगी।
आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने किए एफडीआई प्रावधानों में बदलाव
प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के समूह की सिफारिशों को माना
सीसीईए का कहना इससे विदेशी निवेश को मिलेगा बढ़ावा
मंदी में सकारात्मक संदेश जाने का भी कैबिनेट को भरोसा