अमेरिका जैसे दुनिया के आर्थिक सूरमा मंदी की मार से भले ही बेहाल हों, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की आग से भारत समेत पूरी दुनिया झुलस रही हो।
कई देशों में खाद्यान्न संकट पांव पसार चुका हो, मुल्क दर मुल्क महंगाई का ग्राफ बढ़ते-बढ़ते भारत तक पहुंच चुका हो पर देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ऐसे हालात में भी ‘सफलता की कहानी’ सुनाने से नहीं चूके।
हालांकि राजधानी में एसोचैम की सालाना बैठक में सोमवार को खुलकर बोले मनमोहन ने तमाम मसलों पर अपने पर चल रहे तीरों से बचाव की भी पुरजोर कोशिश भी की। उनका कहना था कि परेशानियों के बीच भारत ठीक उसी तर्ज पर बाकी दुनिया के देशों को पछाड़ देगा, जैसे कछुए ने कभी खरगोश को पछाड़ा था। आइए देखते हैं, हमारे प्रधानमंत्री के ‘मन’ की बात, जो उन्होंने विषय दर विषय तफसील से कही:
दुनिया में मंदी हो, हमारी बला से : हमारी अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्र पहले के मुकाबले आज अधिक मजबूत और प्रतिस्पर्ध्दी हो गए हैं, जिससे वैश्विक मंदी और अन्य चुनौतियों के बावजूद भारत तेज गति से विकास कर पा रहा है। हमें विश्वास है कि देश की अर्थव्यवस्था की विकास दर आठ से नौ प्रतिशत के बीच कायम रहेगी। हम कई खाइयों से बचे, जिनमें अन्य विकासशील देश गिर गए।
दुनिया मानती है अपना लोहा: दुनिया आज इस बात को मानती है कि वैश्वीकरण का भारत का रास्ता अधिक स्थिर और लंबा चलने वाला है।
नहीं रुकी सुधार एक्सप्रेस: पिछले 17 साल में देश और अन्य राज्यों में कई राजनीतिक दलों की सरकारें आई और गईं लेकिन आर्थिक सुधार और उदारीकरण की प्रक्रिया में कोई उलटफेर नहीं हुआ। अलग-अलग सरकारों ने प्रक्रिया को आगे बढ़ाया और आज भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ अधिक एकीकृत है।
जीतेगा वो, जिसमें है दम: अर्थव्यवस्था की विकास दर 1950 से 1980 के बीच औसतन 3.5 प्रतिशत रही, जो 1980 से 2000 के बीच 5.5 प्रतिशत थी और 2004 से अब तक नौ प्रतिशत के बीच आ गई है। इससे यह कहावत चरितार्थ होती है कि ” स्लो एंड स्टेडी विन्स द रेस। भारतीय कछुआ कई एशियाई खरगोशों को पीछे छोड़ देगा।
ताल से ताल मिलाना है जरूरी: भारत जैसे आकार वाला कोई भी देश वैश्वीकरण की प्रक्रिया से अलग-थलग नहीं पड़ सकता लेकिन यह जिम्मेदारी सरकार की है कि इस प्रक्रिया को आसान बनाया जाए और लाभ हासिल किया जाए। सरकार को लोगों और अर्थव्यवस्था की क्षमताओं का विकास करने में मदद करनी होगी।
हमने कर दिखाया यह चमत्कार: सरकार ने लोगों और अर्थव्यवस्था की क्षमताओं में सुधार पर विशेष ध्यान दिया है। हमने शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश बढ़ाया है। हमने बुनियादी ढांचा क्षेत्र को सार्वजनिक-निजी भागीदारी के लिए खोला है।
कीमतें बढ़ाना जरूरी: विकास की प्रक्रिया को जारी रखने के लिए हमें और अधिक कड़ी राजकोषीय नीतियां अपनानी होंगी। चाहे वह तेल हो या पानी, का आर्थिक मूल्य निर्धारण विकास की प्रक्रिया को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। कुछ समय तक समाज के गरीब तबके को कीमतों में बढ़ोतरी के प्रभाव से बचाए रखा जा सकता है। और हमने ऐसा किया भी है।
अवसर ही चुनौती है: सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वैश्वीकरण के फायदे हासिल किए जाएं, इसकी चुनौतियों से निपटा जाए और खुद को इसके खतरों से सुरक्षित रहा जाए। वैश्वीकरण चुनौती और अवसर दोनों ही है।
गरीबों पर भी नजर: उदारीकरण के साथ-साथ समाज के कमजोर एवं वंचित तबके के लोगों का संरक्षण किया जाना चाहिए। ताकि उनका क्षमता विकास हो सके और उन्हें विकास का फायदा समान रूप से हासिल हो सके।
मानसून ही मारेगा महंगाई को : सामान्य मानसून का पूरा प्रभाव सामने आने पर सरकारी नीतियों का परिणाम नजर आएगा। हमारा प्रयास है कि विकास की प्रक्रिया को बाधित किए बिना महंगाई पर काबू किया जा सके।
‘तेल की आग से कब तक बचाएंगे’
पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी के मसले पर वाम दलों सहित विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के विरोध के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सोमवार को कहा कि सरकार कच्चे तेल के दामों में भारी बढ़ोतरी से उपभोक्ता को पूरी तरह बेअसर रखने की हालत में नहीं है। प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘हम सब्सिडी बिल और बढ़ने नहीं दे सकते। न ही कच्चे तेल और कमोडिटी की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रही कीमतों के असर से उपभोक्ताओं को पूरी तरह मुक्त रखने की गुंजाइश हमारे पास है।’
इस मुद्दे पर व्यापक राजनीतिक आम सहमति कायम करने की अपील करते हुए सिंह ने कहा कि ‘सरकार गरीब लोगों को एक हद तक इस असर से मुक्त रख सकती है।’ पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत बढ़ाने के मुद्दे पर सरकार के भीतर भी मतभेद हैं।
निजी क्षेत्र विकास में अहम भूमिका निभाएगा। हमारा प्रयास होगा कि सरकार उनकी मदद करे।
विदेश व्यापार की जीडीपी में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी है। यह अमेरिका और जापान से अधिक है।
धनी देशों को डब्ल्यूटीओ में विकासात्मक पहलू को भूलना नहीं चाहिए। ताली दोनों हाथों से बजती है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खाद्यान्न के मूल्यों में बढ़ोतरी से वैश्वीकरण की प्रक्रिया के लिए खतरा पैदा होगा।
पर्यावरण एवं सामाजिक चिंताओं के नाम पर विकासशील देशों पर नया बोझ डाल दिया जाता है।
मुझे यकीन है कि विश्व स्तर पर भारत शीर्ष पर बना रहेगा, जोकि विश्व में विकास का इंजन होगा।