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महिलाओं को रोजगार देने में पिछड़ा भारत

Last Updated- December 11, 2022 | 5:22 PM IST

19वीं सदी में भारत की पहली महिला स्नातक चंद्रमुखी बसु और कादंबिनी बोस को अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के लिए काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। विश्वविद्यालय ने नियमित प्रवेश देने से मना कर दिया था। एक पूर्वग्रही प्रोफेसर ने गलत तरीके से एक महत्त्वपूर्ण विषय में फेल कर दिया और परीक्षा में सफल होने के बावजूद सफल विद्यार्थियों की सूची से बाहर कर दिया।
आज के समय में भारतीय महिला स्नातक उन दो अग्रदूतों की तरह कई कठिनाइयों का सामना करती है जब वह रोजगार की तलाश में निकलती हैं। सरकारी सामयिक श्रम बल सर्वे (2020-21) के अनुसार – 10 में से 3 महिला स्नातकों  को ही रोजगार मिल पाता है। महिलाओं की तुलना में रोजगार पाने में सफल स्नातक पुरुषों की संख्या 10 में से 7 है। हाल में यह अंतराल और बढ़ गया है।
महिलाओं की कम कार्यबल भागीदारी का शिक्षा के अलावा आय प्रभाव भी एक कारण है। मैरीलैंड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ईशा चटर्जी, सोनाल्डे देसाई और रीव वेनमान के 2018 मे किए गए एक अध्ययन के अनुसार, यदि महिला के काम किए बिना ही परिवार की पर्याप्त आर्थिक आय है तो महिला के कार्यबल से बाहर रहने की पूरी संभावना है।
अध्ययन में कहा गया है कि यह संस्कृति घर में रहने को बढ़ावा देती है और कई नौकरियों की अलग-अलग प्रकृति महिलाओं को शिक्षा के बाद भी काम करने से रोकती है।
महिलाओं को नौकरी ना मिलने का कारण उनमें शैक्षिक स्तर की कमी नहीं है बल्कि जानबूझकर महिलाओं को कार्यबल से बाहर रखा जाता है। जैसा कि महिलाओं की श्रम बल भागीदारी की दर बताती है।
राज्य के आंकड़ों के विश्लेषण में बहुत ज्यादा अंतर दिखता है। सिक्किम में कार्यबल जनसंख्या अनुपात पुरुषों के लिए 77.4 फीसदी और महिलाओं के लिए 67.1 फीसदी है।  भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश और लक्षद्वीप द्वीप समूह  में यह अंतर बहुत ज्यादा है। उत्तर प्रदेश में केवल 14.5 फीसदी महिला स्नातक नौकरी करती हैं ।
कोरोनावायरस महामारी के कारण पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक नौकरी का नुकसान हुआ।  महिलाओं को अधिक रोजगार देने वाले क्षेत्रों में आर्थिक संकट आना भी इसका एक कारण रहा है। लेकिन शिक्षित और बेरोजगार महिलाओं पर भारत के आंकड़े एक प्रवृत्ति को दिखाते हैं। जो महामारी से पहले होती है और सामान्य रूप से महिलाओं के रोजगार के निराशाजनक दृष्टिकोण को उजागर करती है।
बिज़नेस स्टैंडर्ड ने रोजगार में शामिल स्नातकों और बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के अवसर से वंचित रहे व्यक्तियों के बीच पाया कि स्नातकों की तुलना में गैर-साक्षर लोग अधिक रोजगार युक्त है।
विश्व बैंक के डेटा के अनुसार, भारत में 15 वर्ष और उससे अधिक उम्र की 18.4 फीसदी  महिलाएं रोजगार पाती है जबकि बांग्लादेश में यह अनुपात 32.1 फीसदी है।
दूसरी तरह कहें तो आज के समय में चंद्रमुखी बसु और कादंबिनी बोस के पास पूर्वी सीमा पर रोजगार के बेहतर अवसर हो सकते थे।

First Published - July 23, 2022 | 1:55 AM IST

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