Government contract: भारत सरकार अब अपने बड़े सरकारी खरीद बाजार (Public Procurement Market) का एक हिस्सा विदेशी कंपनियों के लिए खोलने जा रही है। दो सरकारी सूत्रों के मुताबिक, अमेरिका को इसका सबसे पहले फायदा मिल सकता है। सरकार ब्रिटेन के साथ हाल ही में हुए व्यापार समझौते की तर्ज पर अमेरिका को भी ठेके (Contracts) में हिस्सा लेने की अनुमति देने वाली है।
सूत्रों ने बताया कि भारत अमेरिका के साथ हो रहे व्यापार समझौते के तहत अमेरिकी कंपनियों को करीब 50 अरब डॉलर (लगभग ₹4.30 लाख करोड़) के ठेकों में हिस्सा लेने की अनुमति देगा। ये ठेके केंद्र सरकार के अधीन आने वाली एजेंसियों से जुड़े होंगे। हालांकि, राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों के ठेके अभी इसके दायरे से बाहर रखे जाएंगे।
भारत में केंद्र, राज्य और सरकारी कंपनियों द्वारा हर साल लगभग 700 से 750 अरब डॉलर की खरीद होती है। अभी इसका बड़ा हिस्सा घरेलू कंपनियों के लिए आरक्षित है, जिसमें 25% हिस्सा छोटे उद्योगों के लिए तय है। हालांकि रेलवे और रक्षा जैसे क्षेत्रों में विदेशी कंपनियों से खरीद की अनुमति पहले से है जब घरेलू विकल्प उपलब्ध न हों।
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इस महीने की शुरुआत में भारत और ब्रिटेन के बीच एक फ्री ट्रेड समझौता (FTA) हुआ था, जिसके तहत ब्रिटिश कंपनियों को भारत के कुछ सरकारी ठेकों में भाग लेने की अनुमति मिली है। ये समझौता ‘प्रतिस्परधात्मक आधार’ (reciprocal basis) पर हुआ है यानी भारत की कंपनियों को भी ब्रिटेन के सरकारी ठेकों में मौका मिलेगा।
एक सरकारी अधिकारी ने कहा, “ये एक नीतिगत बदलाव है। भारत अब धीरे-धीरे अमेरिका समेत अन्य व्यापारिक साझेदारों के लिए सरकारी खरीद के कुछ हिस्से खोलने को तैयार है। लेकिन ये प्रक्रिया चरणबद्ध और पारस्परिक आधार पर होगी।”
भारत अब तक वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइज़ेशन (WTO) के सरकारी खरीद समझौते (GPA) से इसलिए नहीं जुड़ा क्योंकि इससे घरेलू छोटे कारोबारों को नुकसान हो सकता था। अमेरिका लंबे समय से भारत की सरकारी खरीद नीति को ‘रुकावट भरी’ बता रहा है।
भारतीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल इस हफ्ते अमेरिका के दौरे पर थे, जहां उन्होंने व्यापार समझौते को आगे बढ़ाने की कोशिश की। अधिकारियों का कहना है कि जुलाई की शुरुआत तक दोनों देश एक अंतरिम समझौते पर हस्ताक्षर कर सकते हैं।
FISME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम महासंघ) के महासचिव अनिल भारद्वाज ने कहा, “सरकार ने हमें भरोसा दिया है कि 25% सरकारी खरीद अब भी छोटे उद्योगों के लिए आरक्षित रहेगी।” उन्होंने ये भी कहा, “विदेशी कंपनियों को मौका देने से भारत की कंपनियों को भी विदेशी बाजारों में अवसर मिलेंगे।” (रॉयटर्स के इनपुट के साथ)