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विदेश में इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास करेगा भारत

Last Updated- December 05, 2022 | 7:16 PM IST

तेल कमी को पूरा करने के लिए भारत, तेल उत्पादक देशों के इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास की योजना बना रहा है, जिनके पास प्राकृतिक तेल भंडार हैं।


समुद्रपार के उन देशों के पोर्टों का विकास, वहां पहुंचने के लिए रेल सुविधा और सड़कों का निर्माण किया जाएगा।दरअसल इस मामले में भारत, चीन से पहले ही पिट चुका है। चीन ने तेल ब्लाकों से समृध्द अफ्रीका और पश्चिम एशिया के देशों में व्यापार हथिया लिया है। अब भारत उसी रणनीति पर चलने की योजना बना रहा है।


पेट्रोलियम सचिव एम एस श्रीनिवासन ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘हम तेल के मामले में समृध्द देशों के इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए निवेश करेंगे।’सरकार की कंपनी तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) और स्टील किंग के नाम से विख्यात भारत मूल के उद्योगपति एलएन मित्तल की कंपनी के साथ बने संयुक्त उपक्रम ओएनजीसी-मित्तल एनर्जी (ओएमईएल) ने नाइजीरिया में इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं पर 5 अरब डॉलर के निवेश की योजना बनाई है। 


नाइजीरिया में उत्खनन के लिए कंपनी को आयल ब्लाक्स मिले हैं।ओएनजीसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘अगर इस तरह के संयुक्त निवेश होते हैं तो कीमतों के बढ़ने की हालत को देखते हुए इस तरह का तेल व्यापार बहुत ही फायदेमंद रहेगा।’ इंडियन आयल कार्पोरेशन जैसी कंपनियों का मुख्य काम कच्चे तेल का शोधन है वे केवल समुद्रपार की रिफाइनरीज में हिस्सेदारी नहीं चाहती हैं, बल्कि वे तेल ब्लाकों के पूरे समूह पर नजर बनाए हुए हैं।


केंद्रीय कैबिनेट ने पिछले महीने के आखिर में म्यांमार के सिटवे पोर्ट और कलंडन वाटरवे के विकास के लिए 535.91 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी थी। भारत सरकार, भारत-म्यामार सीमा पर म्यांमार के सेटपिटपिन नई सड़क के निर्माण के लिए निवेश की योजना बना रही है। तेल मंत्रालय से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, ‘म्यांमार में गैस के विशाल भंडार हैं। हम उसका दोहन करने की योजना बना रहे हैं। इसके लिए इस तरह की योजनाओं में निवेश बहुत जरूरी है।’


भारतीय कंपनियां, ओएनजीसी विदेश, जो ओएनजीसी के विदेश में निवेश के मामलों को देखती है और जीएआईएल इंडिया की म्यांमार के दो गैस ब्लाक में हिस्सेदारी है।कंपनियों ने भारत में गैस की कमी को पूरा करने के लिए वहां से गैस लाने की योजना बनाई थी, लेकिन म्यांमार ने अधिक कीमतें दिए जाने पर उसे चीन को बेंच दिया।
 
भारत सरकार तेल के मामले में धनी देशों अंगोला और नामीबिया में भी निवेश की वकालत कर रही है। अंगोला, अफ्रीका का तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है और वह आर्गेनाइजेशन आफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज (ओपेक) का सदस्य भी है।


भारत ने अंगोला और नामीबिया में पेट्रोलियम संस्थान और पॉवर प्लांट स्थापित करने, रेलवे में सुधार करने का वचन दिया है। इसके बदले अंगोला ने ओवीएल के  तीन समुद्री ब्लॉकों के लिए बोली लगाने के लिए वचन दिया है। ओवीएल अपने दम पर तेल ब्लाकों के लिए 1 अरब डॉलर के निवेश की योजना बना रहा है।


रूस में गैस का दूसरा सबसे बड़ा भंडार है। उसकी भी इच्छा है कि अन्वेषण लाइसेंस के बदले भारत वहां इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में निवेश करे। भारत में काम कर रहे एक रूसी अधिकारी ने कहा, ‘यह एक सामान्य फीलिंग है। हम चाहते हैं कि अपने हाइड्रोकार्बन संसाधनों का इस्तेमाल इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए करें।’


भारत सरकार के एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘हम हर ऐसे क्षेत्रों पर नजर बनाए हुए हैं जहां तेल के भंडार हैं। उसमें नाइजीरिया, सूडान, म्यांमार, पूरा अफ्रीका, लैटिन अमेरिका शामिल हैं। हम चीन का मुकाबला कर लेंगे।’ तेल संसाधनों में धनी देश, खासकर अफ्रीका की इच्छा है कि तेल का उत्पादन किया जाए लेकिन उनके देश का विकास भी होना चाहिए।


हाल ही में हुए इंडो-अफ्रीका समिट के दौरान जांबिया के वाणिज्य उद्योग एवं व्यापार मंत्री फेलिक्स मुटाटी ने कहा था, ‘हम चाहते हैं कि विदेशी कंपनियां विनिर्माण संयंत्रों की स्थापना करें। इसके साथ ही वे मूलभूत सुविधाओं का भी विकास करें। अफ्रीका के लोग यह देखना नहीं चाहते कि उनके देश के खनिज संसाधन दूसरे देशों में चला जाए और उनके देश का विकास भी न हो।’


भारत अपने कच्चे तेल की कुल आवश्यकताओं का करीब 78 प्रतिशत आयात करता है। देश में गैस की उपलब्धता, कुल मांग की आधी है। पिछले महीने एक बातचीत के दौरान ओएनजीसी के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक आरएस शर्मा ने बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहा था, ‘तेल के लिए हम उन देशों में भी जाएंगे, जिन्हें खतरनाक कहा जाता है। हम तेल का कारोबार कर रहें हैं और इसके विकास के लिए हम हर कदम उठाएंगे।’


ओएनजीसी वेनेजुएला और रूस में तेल और गैस क्षेत्रों की तलाश में लगा है। इन देशों ने हाल ही में अपने देश के तेल फील्डों का राष्ट्रीयकरण कर दिया है। कंपनी ओपेक सदस्य देश नाइजीरिया सहित अफ्रीका के अन्य अशांत इलाकों में भी कारोबार की संभावनाएं तलाश रही है।


समिट के दौरान मुटाटी ने कहा कि अगर आप अफ्रीकी देशों के प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो चीन के इंफ्रास्ट्रक्चर विकास की रणनीति से सीख ले सकते हैं।


इन देशों में होगा विकास कार्य


नाइजीरिया : रेलवे, सड़कें, पोर्ट
अंगोला : बिजली घर, रेलवे, पेट्रोलियम संस्थान
नामीबिया : खनन तकनीक, रेलवे
म्यांमार : पोर्ट, जलमार्ग, सड़कें
सूडान : तेल और गैस पाइपलाइन
रूस : पाइपलाइन, खनन तकनीक

First Published - April 7, 2008 | 10:55 PM IST

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