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शीघ्र आ सकते हैं एकीकृत गतिविधि आधारित एमएफआई नियम

Last Updated- December 10, 2022 | 2:11 AM IST

असम का सूक्ष्म वित्त संस्थाओं (धन उधारी) का विनियमन विधेयक, 2020 आने से कारोबार के लिए संस्था-संदेहपरक एकसमान आचार संहिता में तेजी आ सकती है। बैंक भी भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से इस बात पर स्पष्टीकरण लेने की प्रक्रिया में हैं कि क्या असम का विधेयक उनके ऊपर भी लागू होगा।
पिछले बुधवार को पारित इस विधेयक का उद्देश्य कर्जदार की प्रोफाइल के आधार पर ऋण की मात्रा का विनियमन है और असम में परिचालन करने के लिए पंजीकरण को अनिवार्य बनाना है। ऋणदाताओं को भय है कि उन पर राज्य सरकार और केंद्रीय बैंक दोनों का विनियमन और निगरानी होगी जिसमें टकराव की स्थिति बनेगी। संयोग से रिजर्व बैंक ने विधेयक के पारित होने से पहले ही राज्य सरकार को अपनी चिंताओं से अवगत कर दिया था।
माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशंस नेटवर्क (एमएफआईएन) के चेयरपर्सन मनोज कुमार नांबियार कहते हैं, ‘यह दोहरे विनियमन और प्राधिकारियों के टकराव का उत्तम उदाहरण है जैसा कि हमने 10 वर्ष पहले आंध्र प्रदेश में देखा था।’ एमएफआईएन उद्योग के लिए एक स्व नियमित संगठन है।
यह परिस्थिति कुछ उसी तरह की बन रही है जैसा कि शहरी सहकारी बैंकों के मामले में देखा गया था जहां बैंकों पर सहकारी के रजिस्ट्रार और रिजर्व बैंक दोनों का नियंत्रण था। इस समस्या का समाधान पिछले वर्ष जून में किया गया था। राष्ट्रपति के आदेश से सात दशक पुराने 1949 के बैंकिंग विनियमन अधिनियम में संशोधन कर सहकारी बैंकों को रिजर्व बैंक के विनियमन ढांचे में लाया गया।
2019 में आई बाढ़ ने असम में भारी तबाही मचाई थी जिसके बाद एमएफआई ऋणों तेजी से इजाफा हो रहा है। अब इस विधेयक के कारण राज्य में तनाव की स्थिति है। उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया है कि मामले को रिजर्व बैंक के पास भेज दिया गया है। फिलहाल, केवल गैर-बैंकिंग वित्त कंपनी-एमएफआई (एनबीएफसी-एमएफआई) के तौर पर पंजीकृत संस्थाएं ही गैर बैंकिंग वित्त कंपनी सूक्ष्म वित्त संस्थाएं (आरबीआई) दिशानिर्देश (2011) नियमों से शासित होते हैं। ये नियम बैंकों पर लागू नहीं होते जिसमें इस खंड में सक्रिय लघु वित्त बैंक (एसएफबी) और गैर एमएफआई एनबीएफसी भी शामिल हैं।
इस मामले से अवगत एक व्यक्ति ने कहा, ‘एमएफआई क्षेत्र के लिए गतिविधि आधारित नियम लाने और इसे संस्था-संदेहपरक बनाने पर काम चल रहा है।’ उसने कहा, ‘असम द्वारा इस विधेयक को पेश किए जाने के साथ ही संशोधित दिशानिर्देश शीघ्र जारी किया जा सकता है।’
नवंबर 2020 में रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एम राजेश्वर राव ने एमएफआई के विनियमन की जरूरत बात कही थी।
उन्होंने इसे गतिविधि आधारित करने की बात कही थी। नियामक की सख्ती इस क्षेत्र के छोटे से हिस्से पर लागू है। ऐसा इसलिए है कि इस कारोबार में एमएफआई की हिस्सेदारी केवल एक तिहाई है और बाकी हिस्से पर बैंक और लघु वित्त बैंक काबिज हैं।
राव ने पिछले वर्ष नवंबर में एनबीएफसी पर एसोचैम के ई-शिखर बैठक में कहा, ‘अंतत: सूक्ष्म वित्त के नियमन का मूल उद्देश्य ग्राहक और ग्राहक की सुरक्षा है।’ केंद्रीय बैंक को भी विभिन्न संस्थानों में एमएफआई ऋणों के लिए उधारी दरों को एकजुट करने की उम्मीद है।
स्पंदन स्पूर्ति फाइनैंशियल की संस्थापक और प्रबंध निदेशक पद्मजा रेड्डी कहती हैं, ‘फंडों की लागत में प्रत्येक 100 आधार अंकों की कटौती करने पर एनबीएफसी-एमएफआई के स्प्रेड में मुश्किल से 2.75 फीसदी की कमी आती है।’ इससे इन ऋणदाताओं की प्रतिस्र्धा क्षमता प्रभावित होती है। एनबीएफसी-एमएफआई के लिए फंडों की लागत से 10 फीसदी के मार्क-अप की अनुमति है। जबकि बाकी ऋणदाताओं (बैंकों और एनबीएफसी) के लिए भाव संबंधी कोई दिशानिर्देश नहीं है। संशोधित नियमों में यह नियामकीय भेदभाव समाप्त हो सकता है।  
इस बीच बैंक रिजर्व बैंक से इस पर स्पष्टता मांगने की प्रक्रिया में हैं कि क्या असम का एमएफआई विधेयक उन पर भी लागू होगा। धन उधारी पर नियमन राज्य का विषय है और बैंक रिजर्व बैंक की निगरानी के दायरे में आते हैं। इन्हें विशेष तौर पर राज्यों के धन उधारी नियमनों से बाहर रखा गया है।
एक लघु वित्त बैंक के मुख्य कार्याधिकारी ने कहा, ‘इसी कारण से लघु वित्त बैंक सहित बैंकों को विधेयक का हिस्सा नहीं बनाया जाना चाहिए।’ हालांकि विधेयक में केवल एमएफआई संस्थाओं का जिक्र है और इसमें विशेष तौर ऋणदाता संस्थाओं के दायरे का उल्लेख नहीं किया गया है। इसके कारण ऋणदाताओं में संशय की स्थिति बन रही है।

First Published - January 4, 2021 | 11:17 PM IST

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