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पुराने सीपीआई, जीडीपी आंकड़ों के बदलाव में लग सकता है लंबा वक्त

Last Updated- December 12, 2022 | 5:16 AM IST

कोविड-19 की दूसरी और खतरनाक लहर ने 2021-22 में उपभोक्ता व्यय सर्वे कराने की सरकार की योजना को पटरी से उतार दिया है। इसकी वजह से  देश के प्रमुख वृहद आर्थिक संकेतकों के आधार में बदलाव में और देरी होने की संभावना है। इससे आंकड़ों की गुणवत्ता को लेकर चिंता बढ़ रही है।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आधार वर्षों क्रमश: 2011-12 और 2012 में बदलाव 2017-18 में होने वाले उपभोक्ता व्यय सर्वे के परिणामों पर निर्भर था, जिसे सरकार ने कुछ समय टालने का फैसला किया। अर्थशास्त्रियों ने बहुत पुराने पड़ चुके सीपीआई और जीडीपी आंकड़ों को लेकर कई बार गंभीर सवाल उठाए हैं।
सीपीआई या आईआईपी के लिए आंकड़ों के संग्रह के विपरीत सर्वे फोन पर नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह विस्तृत प्रकृति का होता है। महामारी को देखते हुए फील्ड सर्वे कराने की चुनौतियों के अलावा एक और चिंता इस बात को लेकर भी है कि मौजूदा साल सामान्य आर्थिक साल नहीं है और ऐसी स्थिति लगातार दूसरे साल है।
पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री प्रणव सेन, जो इस समय भारतीय सांख्यिकी की गुणवत्ता में सुधार पर बनी समिति के अध्यक्ष हैं, ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि सीपीआई और जीडीपी बहुत गंभीर रूप से पुराने पड़ गए हैं और इसमें बदलाव की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इसकी वजह से सहायक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं  और कॉर्पोरेट आंकड़ों पर निर्भरता बढऩे से जीडीपी के आंकड़े प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘दरअसर हमें अर्थव्यवस्था की असल हालत क्या है, यह पता नहीं है। उपभोक्ता व्यय के बगैर हम इसमें बदलाव नहीं कर सकते।’
सेन ने कहा कि वृहद आंकड़ों में ज्यादातर कॉर्पोरेट के आंकड़े होते हैं। सेन ने कहा, ‘जीडीपी के साथ समस्या यह है कि ज्यादातर आंकड़े कॉर्पोरेट्स के मिल रहे हैं। इसके अलावा जीडीपी में 40 प्रतिशत हिस्सा सीपीआई का होता है, जिसके स्थिर मूल्य के अनुमान बेकार हो गए हैं।’ सेन ने कहा कि सर्वे के लिए दो प्रायोगिक परियोजनाओं की जरूरत होगी, क्योंकि इसका तरीका बदल गया है। सेन ने कहा, ‘उपभोक्ता बॉस्केट एक दशक से ज्यादा पुराना है और इसके अधिभार में उल्लेखनीय बदलाव होना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि यह बदलाव 2017-18 के आसपास होना चाहिए था और यही वजह है कि उपभोक्ता व्यय सर्वे कराया जाना था।
राष्ट्रीय खातों का पूरा व्यय पक्ष उपभोक्ता व्यय सर्वे पर निर्भर होता है। व्यय पक्ष के आंकड़ों से ट्रेड, निजी निवेश, सरकार का व्यय और मांग का पता चलता है। वहीं राष्ट्रीय खाते का उत्पादन पक्ष विभिन्न इंटरप्राइज सर्वे पर निर्भर होता है।
एनएसएस उपभोक्ता व्यय सर्वे (सीईएस) में परिवार की खपत का स्तर और जीवन स्तर से संबंधित तरीकों का मापन होता है। सीईएस से शहरी और ग्रामीण आबादी में विभिन्न जिंसों पर होने वाले व्यय के बजट का पता चलता है, जिसका इस्तेमाल आधिकारिक उपभोक्ता मूल्य संकेतक (सीपीआई) का खाका तैयार करने में होता है। राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के पूर्व चेयरमैन पीसी मोहनन ने कहा कि वृहद संकेतक पुराने पड़ चुके हैं और नीतियां पुराने आंकड़ों या अनुमानों के आधार पर बन रही हैं।
मोहनन ने कहा, ‘जीडीपी से ज्यादा सीपीआई में बदलाव की जरूरत है क्योंकि लोगों की खपत का तरीका बदला है। लेकिन मुझे किसी नए सर्वे की संभावना नजर नहीं आ रही है। इस समय लोग परेशान हैं और वे सर्वेयर को पसंद नहीं करेंगे।’
आधार वर्ष में 5 साल में बदलाव की प्रक्रिया की सिफारिश की गई है, जिससे व्यय के तरीके में ढांचागत बदलाव अद्यतन होता रहे। बहरहाल यह सामान्य आर्थिक वर्ष होना चाहिए। पहले सरकार ने आधार वर्ष 2011-12 से 2017-18 करने का फैसला किया था। अब अगर 2021-22 या 2022-23 में सर्वे होता है तो आधार वर्ष में बदलाव 2025-26 के बाद ही हो पाएगा, और यह बदलाव 15 साल से ज्यादा समय के बाद होगा। इसके पहले जीडीपी का आधार वर्ष 2004-05 से 2011-12 किया गया था। 2008 का यूएन सिस्टम आफ नैशनल एकाउंट्स के दिशानिर्देश में आधार में हर 5 साल बदलाव की सिफारिश की गई है।

First Published - May 2, 2021 | 11:15 PM IST

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