सुनील वाच्छानी यह बताने में बिल्कुल भी नहीं हिचकते कि उनका क्या अरमान है। डिक्सन टेक्नोलॉजिज के कार्यकारी चेयरमैन का लक्ष्य कंपनी को अगले पांच साल में फॉक्सकॉन, पेगाट्रॉन, जैबिल और फ्लेक्स जैसी बड़ी कंपनियों के टक्कर की इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण सेवा (ईएमएस) कंपनी बनाना है, जो शीर्ष 10 वैश्विक कंपनियों में गिनी जाए। अगले 10 साल में वह शीर्ष 5 में पहुंचना चाहते हैं। पिछले साल कंपनी 21वें पायदान पर थी।
वाच्छानी इसके लिए सरकार की उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना का सहारा ले रहे हैं। डिक्सन 14 प्रमुख पीएलआई योजनाओं में से 5 में किसी न किसी तरीके से जुड़ी है। इनमें मोबाइल डिवाइस, दूरसंचार उपकरण एवं एलईडी और रेफ्रिजरेटर के कलपुर्जे शामिल हैं। हाल में वह आईटी हार्डवेयर के लिए पीएलआई योजना 2.0 के लिए भी पात्र हो चुकी है। वाच्छानी ने कहा, ‘फिलहाल हमारा करीब 40 फीसदी राजस्व पीएलआई श्रेणियों से आता है।’
वाच्छानी ने 2023 में श्याओमी, इंटेल, मोटोरोला और जियो जैसी अग्रणी वैश्विक कंपनियों से कई ठेके हासिल किए। हाल में डिक्सन ने चीन की प्रमुख कंपनी लेनोवो के साथ करार किया है। वाचानी पीएलआई योजना के प्रचार के सबसे बड़े उदारहण बन गए हैं. जो बताते हैं कि यह योजना किस तरह भारत में विनिर्माण की तस्वीर बदल सकती है। मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया अभियान की बुनियाद कहलाने वाली इस योजना के लिए यह साल मिलाजुला रहा।
इस योजना का प्रदर्शन मोबाइल डिवाइस (ऐपल व सैमसंग के कारण), इलेक्ट्रॉनिक्स, खाद्य प्रसंस्करण और फार्मा जैसे क्षेत्रों में शानदार रहा मगर आईटी उत्पाद, पीवी मॉड्यूल, उन्नत रसायन बैटरी, स्पेशिएलिटी स्टील और कपड़ा जैसे क्षेत्रों में उसे संघर्ष करना पड़ा। किंतु चुनौतियां बनी हुई हैं। वितरण एवं निवेश की रफ्तार सुस्त पड़ चुकी है। सरकार का ध्यान भी निर्यात को बढ़ावा देने के बजाय आयात का विकल्प तैयार करने पर आ गया है, जिससे मामला पेचीदा हो गया है।
2020 में शुरू पीएलआई योजना के तहत आरंभ में 1.97 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था मगर मार्च 2023 तक महज 2,874 करोड़ रुपये जारी किए गए। वित्त वर्ष 2023 के लिए 4,821 करोड़ रुपये के संशोधित बजट अनुमान से यह काफी कम रहा। उम्मीद थी कि योजना के चौथे साल यानी वित्त वर्ष 2024 में सबसे ज्यादा वितरण होगा मगर वैश्विक महामारी के कारण कई योजनाएं शुरू ही नहीं हो सकीं या उन्हें आगे बढ़ा दिया गया। चालू वित्त वर्ष में 13,000 करोड़ रुपये के वितरण का अनुमान था।
पात्र कंपनियां रफ्तार नहीं बढ़ाएंगी तो वहां तक पहुंचना आसान नहीं होगा। अक्टूबर 2023 में सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र के लिए 1,000 करोड़ रुपये के वितरण को मंजूरी दी थी। विशेषज्ञों का कहना है कि कंपनियां सुस्त रहीं तो अगले वित्त वर्ष तक 20 फीसदी रकम ही बांटी जा सकेगी। 80 फीसदी से अधिक आवंटन मोबाइल, फार्मा और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए है, जो पहले ही वृद्धि कर रहे हैं।
कपड़ा, उन्नत रासायनिक बैटरी, स्पेशिएलिटी स्टील जैसे क्षेत्रों के लिए आवंटन कम है। उदाहरण के लिए वित्त वर्ष 2024 में पीएलआई के लिए कुल आवंटन 8,083 करोड़ रुपये है जिसमें 99 फीसदी रकम 10 क्षेत्रों के लिए है। सबसे अधिक यानी करीब 55 फीसदी रकम मोबाइल डिवाइस एवं इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिए है।
कपड़ा क्षेत्र के लिए आवंटन 5 करोड़ रुपये है और उन्नत रसायनिक बैटरी के लिए केवल 1 करोड़ रुपये रखे गए हैं क्योंकि मार्च 2024 से पहले इसका कारखाना लगने की उम्मीद नहीं है।
स्पेशिएलिटी स्टील क्षेत्र के फिलहाल कोई आवंटन नहीं हुआ है क्योंकि 27 कंपनियों के साथ समझौते पर दस्तखत ही मार्च 2023 में किए गए हैं। चालू वित्त वर्ष में वाहन क्षेत्र के लिए 605 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ था, लेकिन अब तक एक पाई भी जारी नहीं की गई है।
पीएलआई के तहत कुल पूंजीगत व्यय में एसीसी बैटरीज और स्पेशिएलिटी स्टील को 34 फीसदी योगदान करना है मगर कुल प्रोत्साहन में उनका हिस्सा महज 14 फीसदी है। कई स्टील कंपनियां उत्पाद सूची में विस्तार होने तक बड़ा निवेश नहीं करने से हिचकती आई हैं।
हालांकि निवेश में मोबाइल, कंज्यूमर ड्यूरेबल और खाद्य प्रसंस्करण को महज 8.9 फीसदी योगदान करना है मगर प्रोत्साहन की 30 फीसदी रकम उन्हीं के हिस्से आनी है। ऐसे में इन क्षेत्रों की रफ्तार तेज होती दिख रही है।
सरकारी अधिकारियों को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2024 से 2026 के बीच वितरण तेज हो सकता है। उनका कहना है कि स्पेशिएलिटी स्टील, वाहन और उन्नत रसायनिक बैटरी जैसे क्षेत्रों में काफी निवेश पूरा होने वाला है। उनका आकलन है कि वित्त वर्ष 2023 में पीएलआई योजना के जरिये वास्तविक निवेश 62,500 करोड़ रुपये है जो 14 क्षेत्रों के कुल निवेश लक्ष्य का 17 फीसदी है। इसलिए काफी कुछ करना अभी बाकी है।
देखने वाली बात यह है कि अगले तीन साल में क्रिसिल का अनुमानित 181,400 करोड़ रुपये का अतिरिक्त पूंजीगत व्यय कहां तक संभव हो पाता है। यह पीएलआई योजना के निवेश लक्ष्य का लगभग आधा है।
इस बीच अन्य चुनौतियों ने भी वितरण अटकाया है। इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) के लिए देश में मूल्यवर्द्धन की परिभाषा पर सहमति न होने के कारण भी वाहन पीएलआई कंपनियों पर असर पड़ा है। इसके अलावा ईवी एवं कपड़ा जैसे क्षेत्रों में स्थानीयकरण के पैमानों ने भी कंपनियों की चिंता बढ़ाई है।
सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार ईवी क्षेत्र में अब तक दो कंपनियां- महिंद्रा ऐंड महिंद्रा और टाटा मोटर्स- ही आवंटन की पात्र हैं। कई दोपहिया कंपनियों पर स्थानीयकरण के पैमानों का उल्लंघन करने तथा फेम-2 के तहत सब्सिडी हासिल करने का आरोप है। इन कंपनियों से सब्सिडी की रकम वापस मांगी जा रही है।
श्रम बहुल कपड़ा क्षेत्र में अत्यधिक निवेश की जरूरतों और न्यूनतम कारोबार के पैमानों के कारण कंपनियों की दिलचस्पी नहीं दिख रही है। इस बीच मोबाइल क्षेत्र में सैमसंग ट्रांसफर प्राइसिंग पर सरकार से बात कर रही है, जिस कारण लगातार तीसरे साल प्रोत्साहन हासिल करने में देर हो रही है।
दुनिया भर में भारतीय चैंपियन तैयार करने की सरकार की आकांक्षा अभी पूरी नहीं हुई है। मोबाइल फोन बनाने वाली तीन भारतीय कंपनियां- लावा, माइक्रोमैक्स और ऑप्टीमस- आवश्यक निवेश एवं उत्पादन मूल्य संबंधी मानदंडों पर खरी नहीं उतर पाई हैं।