ऐसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां जो जमा रकम स्वीकार नहीं करती हैं, उनको निर्धारित पूंजी पर्याप्तता अनुपात हासिल करने के लिए और अधिक समय मिल सकता है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) इस संबंध में ऐसे ही एक प्रस्ताव पर विचार कर रहा है। उल्लेखनीय है कि आरबीआई ने जो प्रावधान किए हैं, उसके अनुसार जमा रक म नहीं लेने वाले एनबीएफसी को अप्रैल 2009 तक 12 फीसदी का कैपिटल-टू -रिस्क ऐसेट्स (सीआरएआर) अनुपात हासिल कर लेना अनिवार्य है जबकि पहले यह अनुपात 10 फीसदी था।
सीआरएआर को अप्रैल 2010 से बढाकर 15 फीसदी तक करने का प्रस्ताव गया है। पिछले सप्ताह एनबीएफसी ने आरबीआई अधिकारियों से मुलाकात कर सीआरएआर की आवश्यक सीमा को हासिल करने के लिए अतिरिक्त समय की मांगा था।
अतिरिक्त समय मांगे जाने के पीछे इन कंपनियों का कहना था कि वे पूंजी पर्याप्तता के अनुपात को पूरा करने करने के लिए फंड जुटाने में सक्षम नहीं है और ऐसा करने के लिए उन्हें और समय दिया जाना चाहिए। इस बाबत जमा रकम नहीं लेने वाली एक कंपनी के प्रमुख ने कहा कि मौजूदा माहौल में कई ऐसी कंपनियां हैं जिन्हें चालू वित्त वर्ष में पूंजी पर्याप्तता की आवश्यक सीमा को हासिल नहीं करने का डर सता रहा है।
उन्होंने कहा कि मौजूदा वित्तीय संकट के कारण पूंजी जुटाना काफी मुश्किल लग रहा है। यही नहीं कंपनियों के प्रतिनिधियों ने आरबीआई को बताया कि वित्तीय संकट के गहराने से अगले वित्त वर्ष में कारोबारी माहौल और ज्यादा बिगड़ सकता है जिससे फंड जुटाना काफी मुश्किल काम होगा।
पिछले साल जून में आरबीआई ने जमा रकम नहीं लेने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए अधिक सीआरएआर का प्रावधान दिया था और इसी के तहत यह सीमा 12 फीसदी निर्धारित की गई थी। लेकिन अगस्त में और अधिक मुश्किलें आ जाने के बाद आरबीआई ने इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया था।