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नीति आयोग के प्रमुख ने की सीमा शुल्क नियमों में सुधार की वकालत

NITI Aayog: नीति आयोग के प्रमुख ने भारत के सीमा शुल्क नियमों में सुधार की वकालत की, वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के साथ तालमेल बिठाने का आग्रह किया

Last Updated- May 17, 2024 | 11:32 PM IST
NITI’s Vision 2047 for $30 trn economy may be ready by Dec

नीति आयोग के मुख्य कार्याधिकारी और पूर्व वाणिज्य सचिव बीवीआर सुब्रमण्यम ने शुक्रवार को भारत की शुल्क नीति में सुधारों की अपील की। उन्होंने शुल्क कम करने के साथ प्रक्रियाओं को आसान बनाने की वकालत की है, जिससे कि इसे अर्थपूर्ण तरीके से वैश्विक मूल्य श्रृंखला (जीवीसी) में शामिल किया जा सके।

भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के सालाना कारोबारी सम्मेलन में उन्होंने कहा, ‘भारत किसी भी महत्त्वपूर्ण तरीके से वैश्विक मूल्य श्रृंखला का हिस्सा नहीं है। जीवीसी में शामिल होने का मतलब तमाम चीजों में बुनियादी बदलाव है।

इसका मतलब कम शुल्क और कम प्रक्रियाएं हैं। चीजें सुचारु रूप से और बाधारहित तरीके से सीमाओं के पार पहुंचनी चाहिए। हम पिछली स्थिति देखें तो हम अपने प्रदर्शन से खुश होंगे। लेकिन अगर हम दाएं-बाएं देखें तो पाएंगे कि अभी प्रदर्शन बहुत बेहतर किया जा सकता है।’

सुब्रमण्यम ने वाहनों के पुर्जों का उदाहरण दिया, जिनकी वैश्विक मूल्य श्रृंखला में हिस्सेदारी महज 2 फीसदी है। यह उन सुधारों में शामिल है, जो विकसित होने की आकांक्षा और मध्य आय वर्ग वाला देश बनने की यात्रा में वक्त की जरूरत है। उन्होंने कहा कि नीति आयोग इनमें से कई सुधारों पर काम कर रहा है।

नीति आयोग विजन 2047 दस्तावेज के लिए नोडल एजेंसी है। विजन 2047 एक समग्र रिपोर्ट है, जिसे 10 क्षेत्रों के सचिवों के समूह से मिली जानकारों के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें मौजूदा और भविष्य की जरूरतों को शामिल किया गया है, जिनकी अगले 23 साल में जरूरत है।

इसकी कवायद कैबिनेट सचिव ने दिसंबर 2021 में शुरू की थी। उसके बाद ग्रामीण व कृषि, बुनियादी ढांचा, संसाधन, सामाजिक दृष्टिकोण, लोककल्याण, वित्त और अर्थव्यवस्था, वाणिज्य एवं उद्योग, तकनीक, प्रशासन,सुरक्षा और विदेश मामलों पर क्षेत्रवार 10 समूहों का गठन किया गया।

सुब्रमण्यम ने 2023 में नीति आयोग द्वारा निर्यात तैयारी सूचकांक की शुरुआत किए जाने के दौरान भी सुधार की जरूरत के संकेत दिए थे। उन्होंने कहा था, ‘भारत के कुल निर्यात का बड़ा हिस्सा उन उत्पादों का है, जिनकी वैश्विक कारोबार में हिस्सेदारी करीब 30 फीसदी है।

इसका मतलब यह है कि भारत गलत क्षेत्र में है। हम ऐसी चीजों का निर्यात नहीं करते, जिसका व्यापक तौर वैश्विक निर्यात होता है। इसका मतलब यह है कि हमारे ऊपर बढ़ने की संभावना बहुत सीमित है, क्योंकि कारोबार में शामिल 70 फीसदी वस्तुओं में हमारी मौजूदगी ही नहीं है।’

मुख्य कार्याधिकारी ने कहा कि गैर शुल्क बाधाएं जैसे यूरोप के सीबीएएम को विकासशील देशों की राह में व्यवधान के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘अगर आप किसी खास इलाके में उत्पाद बेचना चाहते हैं तो आपको उस जगह के मानक पूरे करने होंगे। मुझे नहीं लगता कि इन व्यवधानों से व्यापार घटेगा, क्योंकि वे नियम विदेशी के साथ स्थानीय लोगों पर बराबर से लागू होते हैं।’

उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि अब यह महसूस करने का दौर है कि एनटीबी व्यवधान नहीं हैं। श्रम, पर्यावरण व अन्य मसले समाज का हिस्सा हैं और अगर समाज वास्तव में कोई शर्त रखता है तो उद्योग को उससे तालमेल बिठाना होगा।

यह एकमात्र तरीका है, जिससे हम प्रतिस्पर्धी बन सकते हैं।’ सुब्रमण्यम ने कहा कि मानकों में खामी का मसला ही नहीं आएगा, अगर भारत के मानक वैश्विक मानकों के अनुरूप होंगे और आगे चलकर वाहनों के उत्सर्जन, इलेक्ट्रॉनिक वाहन आदि के अपने मानक भी तय किए जा सकते हैं।

First Published - May 17, 2024 | 11:27 PM IST

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