वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने पद संभालने के बाद अपने पहले फैसले में ही योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया को इनकार कर दिया।
उन्होंने बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए वायबिलिटी गैप फंडिंग (वीजीएफ) की ऊपरी सीमा बढ़ाने के योजना आयोग के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। वीजीएफ दरअसल वह योजना है, जिसके तहत सरकार ठहरी हुई व्यावसायिक परियोजनाओं को पटरी पर लाने के लिए रकम मुहैया कराती है।
बुनियादी ढांचा क्षेत्र के लिए इसकी अधिकतम सीमा फिलहाल 40 फीसदी है। लेकिन इसे बढ़ाने की पेशकश योजना आयोग ने की थी क्योंकि मंदी की वजह से कई सड़क परियोजनाओं में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी कम रहने की आशंका है।
इनमें से कई परियोजनाओं को निजी क्षेत्र की कंपनियां व्यावसायिक नजर से कमजोर मान रही हैं। ऐसे में अगर वीजीएफ की सीमा बढ़ा दी जाती है, तो ऐसी परियोजनाओं की रफ्तार बढ़ जाएगी क्योंकि निजी डेवलपर को ज्यादा रकम मिलने लगेगी, जिसकी वजह से उनकी दिलचस्पी भी बढ़ेगी।
योजना आयोग की मंशा इसमें निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की भागीदारी के जरिये सरकारी निवेश बढ़ाने की है, ताकि आर्थिक गतिविधियों में किसी तरह का धीमापन न आने पाए। गौरतलब है कि निजी क्षेत्र की ओर से निवेश अगले वित्त वर्ष में बेहद कम हो जाने का अंदेशा खड़ा हो गया है।
वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक आयोग ने वीजीएफ की सीमा बढ़ाने का प्रस्ताव पिछले महीने पेश किया था। वित्त मंत्रालय को यह प्रस्ताव ज्यादा पसंद नहीं आया और न ही इसकी जरूरत महसूस हुई।
दरअसल इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंस कंपनी लिमिटेड (आईआईएफसीएल) इन परियोजनाओं के लिए रकम मुहैया कराने के नाम पर कर मुक्त बांड्स के जरिये 10,000 करोड़ रुपये पहले ही उगाह लिए हैं। उसे जरूरत पड़ने पर 30,000 करोड़ रुपये और जुटाने के लिए भी हरी झंडी मिली है।
वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘हमने योजना आयोग को बता दिया है कि वीजीएफ में किसी तरह के बदलाव की अभी कोई जरूरत नहीं है। अगर जरूरत पड़ेगी, तो बाद में इसे देखा जाएगा।’
प्रणव ने वित्त मंत्री बनने के बाद लिया पहला फैसला पहले फैसले में ही उन्होंने किया इनकार बुनियादी ढांचा क्षेत्र के लिए रकम मुहैया कराने पर सवाल रकम की ऊपरी सीमा बढ़ाने के मसले पर योजना आयोग को दिया टका सा जवाब