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विपक्षी राज्यों को नहीं भाए प्रस्ताव

Last Updated- December 15, 2022 | 2:51 AM IST

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) मुआवजे में कमी की भरपाई के लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित दोनों विकल्पों को पश्चिम बंगाल, पंजाब, छत्तीसगढ़ और केरल सहित विपक्ष शासित राज्यों ने खारिज कर दिया। इन राज्यों के प्रमुख अब सोमवार को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये बैठक कर आगे की योजना तैयार करेंगे। आगे की रणनीति के तहत केंद्र-राज्य विवाद निपटान तंत्र को संचालित करने पर भी चर्चा की जा सकती है।
वित्त मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा मुआवजे में कमी की भरपाई के लिए उधारी के दो विकल्पों का खाका साझा किए जाने के एक दिन बाद ही राज्यों ने यह कदम उठाया है।
पहले विकल्प में भारतीय रिजर्व बैंक की विशेष सुविधा के जरिये 97,000 करोड़ रुपये की उधारी लेना है और दूसरे विकल्प में कोविड के कारण हुए नुकसान के लिए बाजार से 2.35 लाख करोड़ रुपये का कर्ज जुटाने का प्रस्ताव दिया गया है। पहले विकल्प में ब्याज का भुगतान मुआवजा उपकर संग्रह से किया जाएगा और राजकोषीय विस्तार को अतिरिक्त 0.5 फीसदी बढ़ाया जाएगा। दूसरे विकल्प में ब्याज का भुगतान राज्यों को करना होगा और अतिरिक्त राजकोषीय विस्तार की गुंजाइश नहीं होगी।
केरल के वित्त मंत्री थॉमस आइजक ने कहा कि उनके राज्य ने दोनों विकल्प खारिज कर दिए हैं। उन्होंने कहा, ‘दोनों ही विकल्प अजीब हैं। पहले विकल्प में मुझे मुआवजे में कोविड और गैर-कोविड का विभेद स्वीकार नहीं है। अटॉर्नी जनरल ने भी अपनी राय में इसका उल्लेख नहीं किया है। दूसरे विकल्प के मामले में ब्याज मद का भुगतान उपकर संग्रह से क्यों नहीं किया जा सकता।’
उन्होंने कहा कि राजकोषीय घाटे की सीमा का आवंटन गलत है क्योंकि विभिन्न राज्यों की मुआवजे की जरूरत अलग-अलग है। आइजक ने कहा, ‘आप केरल, तेलंगाना या पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए एकसमान राजकोषीय घाटे की सीमा कैसे तय कर सकते हैं? पूर्वोत्तर के राज्य हाल तक अधिशेष में थे और संभव है कि उन्हें अब इसकी मामूली जरूरत हो।’ उन्होंने कहा कि केंद्र द्वारा उधारी जुटाया जाना इसका समाधान है।
पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत बादल ने कहा कि पंजाब सहित कांग्रेस एवं विपक्षी दलों द्वारा शासित सभी राज्यों ने दोनों विकल्पों को खारिज कर दिया है। सभी राज्य इस मसले पर व्यापक परामर्श करेंगे। उन्होंने कहा कि दोनों ही विकल्प राज्यों आकर्षक नहीं लग रहे हैं। दूसरे विकल्प में राजकोषीय घाटे की सीमा नहीं बढ़ाई गई है और ब्याज भुगतान का बोझ राज्यों पर डालने की बात कही गई है। केंद्र सरकार अपने वायदे से पीछे हट रही है।
पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने कहा, ‘दैवीय आपदा के नाम पर राज्यों पर भारी कर्ज बोझ डाला जा रहा है। इससे राज्यों की वित्तीय स्थिति खराब होगी और संघीय ढांचे को नुकसान होगा।’
राज्यों ने यह तर्क भी खारिज कर दिया कि केंद्र द्वारा अतिरिक्त उधारी लिए जाने से सरकारी प्रतिभूतियों पर प्रतिफल बढ़ जाएगा और देश की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
अमित मित्रा ने कहा, ‘यह भी तर्क दिया जा रहा है कि राज्यों के उधार लेने से बॉन्ड पर प्रतिफल प्रभावित नहीं होगा। मैंने पहली बार यह सुना है। जरा सोचिए क्या होगा जब देश के सभी राज्य बाजार उधार लेने जाएंगे। बॉन्ड के प्रतिफल राज्यों एवं केंद्र के संयुक्त राजकोषीय घाटे से प्रभावित होते हैं। केंद्र एक खतरनाक एवं आधारहीन बात कह रहा है।’  
उन्होंने कहा कि पिछली बार जीएसटी परिषद की बैठक में लगभग 90 प्रतिशत राज्यों का मानना था कि केंद्र को बाजार से उधार लेकर जीएसटी में कमी की भरपाई करनी चाहिए। पश्चिम बंगाल का जीएसटी संग्रह 15,000 करोड़ रुपये कम रहा है।
बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने पहले विकल्प के तहत विशेष प्रावधान के जरिये केवल 97,000 करोड़ रुपये उधार लेने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इससे एफआरबीएम सीमा 0.5 प्रतिशत बढऩे के साथ ही ब्याज भुगतान में भी कुछ राहत मिलेगी।
उन्होंने कहा, ‘केंद्र का कहना है कि वह पूरी रकम को लेकर प्रतिबद्ध है और शेष रकम दो वर्षों के लिए टाली जा रही है। ब्याज के कुछ हिस्से के भुगतान का भी विकल्प है। राज्य उधार ले सकते हैं। मुझे लगता है कि यह विकल्प राज्यों के लिए सबसे बेहतर होगा। हालांकि इस पर अभी और चर्चा होगी।’
छत्तीसगढ़ के वित्त मंत्री टी एस सिंह देव ने कहा कि केंद्र राज्यों को उधार लेने के विवश कर रही है। उन्होंने कहा कि केंद्र को 31 राज्यों के बदले उधार लेना चाहिए और केंद्रशासित राज्यों को अलग से ऐसा करना चाहिए। दिल्ली के वित्त मंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि परिषद में उधारी के संबंध में दिए गए विकल्प संघीय ढांचे के साथ सबसे बड़ा विश्वासघात है।

First Published - August 30, 2020 | 10:31 PM IST

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