फरवरी में खुदरा महंगाई तीन महीने के उच्चतम स्तर 5.03 प्रतिशत पर पहुंच गई। पेट्रोल-डीजल के बढ़े दाम और खाद्य पदार्थों की कीमतों में आई तेजी के बीच खुदरा महंगाई में उछाल आई। जनवरी में खुदरा महंगाई दर 4.06 प्रतिशत रही थी। इन आंकड़ों को देखते हुए आने वाले समय में ईंधन पर कर में कमी की मांग जोर पकड़ सकती है।
हालांकि ऐसा लग सकता है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित ईंधन की कीमतें फरवरी में जनवरी के मुकाबले कम बढ़ी है। लेकिन आंकड़ों का अध्ययन करें तो मामला कुछ और ही दिखता है। ईंधन खंड में पेट्रोल की महंगाई फरवरी में बढ़कर 20.57 प्रतिशत हो गई जो जनवरी में 12.53 प्रतिशत थी। दूसरी तरफ डीजल की कीमतों में तेजी 12.79 प्रतिशत से बढ़कर 20.57 प्रतिशत हो गई। कुल मिलाकर बिजली जैसे खंडों में महंगाई दर कम होने से कुल मिलाकर ईंधन की कीमतों में कमी दर्ज की गई। वास्तव में डीजल के दाम बढऩे से दूसरे खंडों पर भी असर हुआ।
इंडिया रेटिंग्स में मुख्य अर्थशास्त्री सुनील कुमार सिन्हा ने कहा कि कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के बीच ईंधन की खुदरा कीमतें बढ़ गईं, जिसका सीधा असर परिवहन सेवाओं पर हुआ। इस अवधि के दौरान खाद्य महंगाई 3.11 प्रतिशत से बढ़कर 3.87 प्रतिशत हो गई।
ब्रिकवर्क रेटिंग्स के मुख्य आर्थिक सलाहकार गोविंद राव का कहना है कि आने वाले दिनों में बाजार में अत्यधिक नकदी की उपलब्धता और ईंधन के दाम में तेजी से महंगाई का जोखिम और बढ़ सकता है।
राव ने कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में मौद्रिक नीति समिति नीतिगत दरें अपरिवर्तित रख सकती है मगर आरबीआई आवश्यकता से अधिक नकदी खींचने के लिए कुछ उपाय जरूर कर सकता है। एमपीसी की अगली बैठक अगले महीने के पहले सप्ताह में होगी।
फरवरी में हुई समीक्षा मेंं एमपीसी ने सुझाव दिया था कि केंद्र और राज्य सरकारों को पेट्रोलियम उत्पादों पर कर कम करना चाहिए ताकि ग्राहकों को कुछ राहत मिल सके।