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राजकोषीय समेकन के मौजूदा खाके पर रोक संभव

Last Updated- December 12, 2022 | 10:26 AM IST

अब यह स्पष्ट हो चुका है कि केंद्र सरकार के वित्तीय घाटे का लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सकता, जो इस वित्त वर्ष में जीडीपी का 3.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। यह अनुमानित आंकड़े के दोगुने तक पहुंच सकता है। अर्थशास्त्रियों व उद्योग जगत ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से अनुरोध किया है कि दो साल के लिए वित्तीय समेकन से राहत दी जानी चाहिए।  अगर सरकार यह स्वीकार कर लेती है तो एनके सिंह समिति की सिफारिशें, जिसके आधार पर कुछ बदलाव के साथ राजकोषीय समेकन का खाका तैयार किया गया था, लागू नहीं हो सकेंगी। सरकार वित्तीय समेकन के नए खाके के साथ आ सकती है। 
 
कोरोनावायरस महामारी के कारण पैदा हुई परिस्थितियों और वित्त वर्ष की पहली छमाही में अर्थव्यवस्था के संकुचन के कारण 2020-21 का बजट अनुमान हासिल होना संभव नहीं है। इन परिस्थितियों में सरकार को 3 पैकेजों की घोषणा करनी पड़ी है। केंद्र सरकार का दावा है कि भारतीय रिजर्व बैंक के साथ मिलकर उसने कदम उठाए हैं और 3 प्रोत्साहन पैकेजों के माध्यम से 29.87 लाख करोड़ रुपये का पैकेज दिया है। यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 15 प्रतिशत है। बहरहाल स्वतंतत्र विशेषज्ञों ने कहा कि पहले पैकेज की राजकोषीय लागत महज 1.5 लाख करोड़ रुपये और तीसरे पैकेज की लागत 1.9 लाख करोड़ रुपये थी, जो कुल 3.4 लाख करोड़ रुपये होता है। दूसरा पैकेज बहुत बड़ा नहीं था, जिसका खजाने पर सीधा बोझ 43,000 करोड़ रुपये से अधिक नहीं है। 
 
केंद्र का राजकोषीय घाटा 7 महीने में ही पूरे वित्त वर्ष के लिए बजट अनुमान (बीई) की तुलना में 120 प्रतिशत पर पहुंच गया। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की दूसरी तिमाही के राष्ट्रीय खाते के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष की पहली छमाही में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 10.71 प्रतिशत पर पहुंच गया।  सरकार ने बाजार उधारी बजट में अनुमानित 7.8 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 12 लाख करोड़ रुपये कर दी है। साथ ही कई बार यह दावा किया है कि भविष्य में पैकेजों की घोषणा के बावजूद इसमें बढ़ोतरी नहीं होगी।  अगर 12 लाख करोड़ रुपये सिर्फ राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण में होता है तो इससे घाटे में कमी हो सकती है। 
 
अगर भारतीय रिजर्व बैंक के इस वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था में 7.5 प्रतिशत संकुचन के अनुमान को लें और 2.5 प्रतिशत चूककर्ताओं को भी इसमें शामिल कर लें तो वित्त वर्ष 21 में नॉमिनल आर्थिक संकुचन 5 प्रतिशत आता है। 2019-20 में नॉमिन वृद्धि 204.42 लाख करोड़ रुपये थी और इसमें अगर 5 प्रतिशत संकुचन निकाल तें तो वित्त वर्ष 21 में अर्थव्यवस्था का आकार 194.21 लाख करोड़ रुपये होता है। 12 लाख करोड़ रुपये राजकोषीय घाटे का मतलब होता है कि यह वित्त वर्ष 21 में जीडीपी का 6.17 प्रतिशत होगा। 
 
बहरहाल तमाम अर्थशास्त्री मानते हैं कि राजकोषीय घाटा इससे कहीं बहुत ज्यादा होगा। उदाहरण के लिए केयर रेटिंग के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस का कहना है कि वित्त वर्ष 21 में घाटा करीब 9 प्रतिशत होगा। सबनवीस ने कहा कि अगर सरकार अपव्यय में कटौती करती है, जैसा कि अभी वह कवायद कर रही है, यह घाटा जीडीपी के 8 प्रतिशत के आसपास आ सकता है, लेकिन यह इससे कम नहीं रहेगा।  इक्रा में मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि चालू वित्त वर्ष में घाटा 14.5 लाख करोड़ रुपये या जीडीपी का 7.7 प्रतिशत रहेगा। 
 
इंडिया रेटिंग में प्रधान अर्थशास्त्री सुनील कुमार सिन्हा ने को उम्मीद है कि चालू वित्त वर्ष में घाटा जीडीपी के 7 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। घाटा पहले ही बजट अनुमान से आगे निकल चुका है और कुल लिाकर यह अक्टूबर में ही 19.7 प्रतिशत ज्यादा हो गया।  बहरहाल 2020-21 के बजट के दौरान संसद में मध्यावधि राजकोषीय नीति और रणनीतिक ब्योरा पेश किया गया था, उसके मुताबिक अगले साल राजकोषीय घाटा 3.3 प्रतिशत और 2022-23 में 3.1 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। 
 
इंडिया रेटिंग में मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र पंत ने कहा कि बजट में राजकोषीय समेकन का जो खाका रखा गया है, उसपर अगले दो साल तक लौटना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि कुछ क्षेत्रों को सरकार को आगे और छूट देनी पड़ सकती है।  नायर ने कहा कि भारत के लिए जीडीपी का 3 प्रतिशत राजकोषीय घाटा हाथ में न आने वाला है। किसी भी हाल में यह टिकाऊ रूप से हासिल नही किया जा सकता, न इसकी जरूरत है। उन्होंने कहा कि इसका एक ही तरीका है कि लंबे समय तक पूंजीगत व्यय टाला जाता रहे। 
 
उन्होंने कहा, ‘यह उचित वक्त हो सकता है कि  राजस्व घाटे पर ध्यान केंद्रित किया जाए और यह अगले 4-5 साल तक जीडीपी के 2 प्रतिशत पर रखने का लक्ष्य बनाया जाए। अगर इस आधार पर विनिवेश के मुताबिक पूंजीगत व्यय जीडीपी के 2 प्रतिशत पर स्थिर रहता है तो इसका मतलब यह है कि राजकोषीय घाटा मध्यावधि के हिसाब से जीडीपी के 4 प्रतिशत पर रहेगा।’ राजस्व घाटा मौजूदा व्यय और राजस्व प्राप्तियों के अंतर को कहते हैं।  बजट में चालू वित्त वर्ष के दौरान राजस्व घाटा जीडीपी का 2.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। कुल मिलाकर यह 6.09 लाख करोड़ रुपये पहुंच ने का अनुमान था। बहरहाल वित्त वर्ष के पहले 7 महीने में ही यह 7.72 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो बजट में अनुमानित राजस्व घाटे से 26.7 प्रतिशत ज्यादा है। 
 
बजट के साथ पेश राजकोषीय समेकन संबंधी पत्र में कहा गया था कि अगले वित्त वर्ष में राजस्व घाटा 2.3प्रतिशत और वित्त वर्ष 23 में 1.9 प्रतिशत रहेगा। सबनवीस का अनुमान है कि  अगले वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 5 से 6 प्रतिशत रहेगा और कहा कि राजकोषीय समेकन को अगले 2 साल के लिए टाला जाना चाहिए। 

First Published - December 25, 2020 | 9:52 PM IST

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