सरकार का सार्वजनिक कर्ज पोर्टफोलियो स्थिर है और बाह्य उधारी पर कम निर्भरता व ज्यादातर डेट इश्यू पर तय ब्याज दर के कारण ब्याज दर को लेकर काफी कम जोखिम है। आर्थिक समीक्षा में ये बातें कही गई है। समीक्षा में कहा गया है, इसके अलावा आधिकारिक स्रोतों से ली गई ज्यादातर बाह्य उधारी लंबी अवधि की हैं और ये रियायती प्रकृति की है। अल्पावधि वाले कम बॉन्ड जारी होने के कारण रोलओवर का जोखिम भी कम है, साथ ही परिपक्वता से जुड़ा प्रोफाइल भी दीर्घ अवधि का है। बकाया कर्ज की औसत परिपक्वता का भारांक मार्च 2021 के आखिर में बढ़कर 11.31 वर्ष हो गया, जो मार्च 2010 में 9.7 वर्ष था। इसकी वजह यह है कि पांच साल से कम अवधि में परिपक्व होने वाली प्रतिभूतियों का अनुपात हाल के वर्षों मेंं लगातार घटा है।
समीक्षा में कहा गया है कि औसत परिपक्वता अवधि ज्यादा होने से रोलओवर का जोखिम घटता है। इस दर्शन को ध्यान में रखते हुए सरकार ने बजट घोषणा के मौके पर भारतीय रिजर्व बैंक को लंबी तारीख वाली प्रतिभूतियां जारी की जबकि केंद्रीय बैंक की बैलेंस शीट में कम अवधि वाला बॉन्ड था। सरकार ने आरबीआई से 1.14 लाख करोड़ रुपये की प्रतिभूतियां खरीदीं और इसके बदले 1.17 लाख करोड़ रुपये की प्रतिभूतियां जारी कीं।
आरबीआई से खरीदी गई प्रतिभूतियां 2022 से 2025 के बीच परिपक्व होंगी, जिसमें स्पेशल ऑयल बिल्स शामिल हैं। आरबीआई को जारी जारी प्रतिभूतियां 2028 से 2035 के बीच परिपक्व होंगी, ऐसे में रीडम्पशन का दबाव छह साल बढ़कर 11 साल हो गया, जो जारी किए गए बॉन्ड पर निर्भर करेगा। यह लेनदेन नकदी के लिहाज से तटस्थ हो गया। आरबीआई ने एक बयान मेंं ये बातें कही।
आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है, सरकार के सार्वजनिक कर्ज का स्वामित्व मोटे तौर पर संस्थागत क्षेत्रों मसलन बैकोंं, बीमा कंपनियों, प्रॉविडेंट फंडोंं आदि के पास है। सरकारी प्रतिभूतियों के सबसे बड़े खरीदार वाणिज्यिक बैकों की हिस्सेदारी मार्च 2021 में एक साल पहले के मुकाबले घटकर 37.77 फीसदी रह गई।
आरबीआई की हिस्सेदारी मार्च 2021 में बढ़कर 16.2 फीसदी हो गई, जो मार्च 2020 के आखिर में 15.1 फीसदी थी।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है, तारीख वाली प्रतिभूतियां नियोजित ढंग से जारी की गई और कर्ज प्रबंधन के तहत कर्ज की लागत कम रखने के मकसद को ध्यान में रखा गया, साथ ही जोखिम का उचित स्तर आदि का अनुमान भी लगाया गया। इन सभी चीजोंं ने सार्वजनिक कर्ज के पोर्टफोलियो को स्थिर रखा। इसमें कहा गया है, खुदरा प्रत्यक्ष योजना लागू किए जाने से सरकार के निवेशक का आधार विशाखित होगा और अलग-अलग निवेशकों की श्रेणियोंं की तरफ से सरकारी प्रतिभूतियों की स्थिर मांग देखने को मिलेगी।
मार्च 2021 के आखिर में केंद्र सरकार की कुल बकाया देनदारी 117.04 लाख करोड़ रुपये थी। कुल देनदारी में सार्वजनिक कर्ज की हिस्सेदारी 89.9 फीसदी थी जबकि पब्लिक अकाउंट की देनदारी (जिसमें राष्ट्रीय बचत योजना फंड, स्टेट प्रॉविडेंट फंड, रिजर्व फंड व जमाएं व अन्य खाते शामिल हैं) बाकी 10.1 फीसदी रही। जीडीपी के अनुपात के लिहाज से सरकार की कुल उधारी पिछले दशक में अपेक्षाकृत स्थिर थी, लेकिन कोविड महामारी के कारण 2020-21 में तेजी से बढ़ी, जिसने जीडीपी को भी नीचे खींचा।
समीक्षा में कहा गया है, डेट-जीडीपी अनुपात हालांकि आगामी वर्षों में निचले स्तर की ओर जाने की संभावना है।