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मनरेगा में मांग बढऩे पर सवाल

Last Updated- December 11, 2022 | 9:30 PM IST

आर्थिक समीक्षा में पहले लॉकडाउन के तुरंत बाद मनरेगा में काम की मांग बढऩे को लेकर सवाल उठाए गए हैं और कहा गया है कि क्या सचमुच ऐसा था कि शहरों से गांवों की ओर पलायन के कारण ऐसा हुआ, जैसा कि अब तक माना जा रहा है। राज्य स्तर के आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर समीक्षा में कहा गया है कि वित्त वर्ष 22 में मनरेगा में काम की मांग के हाल की स्थिति से पता चलता है कि विस्थापन वाले राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, ओडिशा, बिहार में 2021 में ज्यादातर महीनों में मनरेगा के तहत काम की मांग 2020 के समान महीनों की तुलना में कम रही है।
वहीं इसके विपरीत पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में, जहां विस्थापित मजदूर आते हैं, 2021 के ज्यादातर महीनों में 2020 की तुलना में मनरेगा के तहत काम की मांग ज्यादा रही है। कई अन्य राज्य भी हैं, जो इस तरह के श्रेणीकरण में उचित नहीं बैठते हैं। समीक्षा में कहा गया है, ‘ऐसे में मनरेगा के तहत रोजगार और विस्थापित श्रमिकों की आवाजाही में पिछले 2 साल के दौरान कोई उचित संबंध नहीं निकाला जा सकता है और इस दिशा में आगे और शोध की जरूरत है।’
मौसमी हिसाब से मनरेगा में काम की मांग अभी भी 2019 के महामारी के पूर्व के स्तर की तुलना में अधिक बनी हुई है।
बहरहाल कृषि के बारे में समीक्षा में कहा गया है कि भारत के कृषि क्षेत्र में अंतर्निहित दृढ़ता के बावजूद इस सेक्टर में मौसमी उत्पादन और अनियमित रूप से झटकों के कारण खासकर खराब होने वाले जिंसों की कीमतों में उतार-चढ़ाव रहा है।
जिंस के मुताबिक उत्पादन पर मौसम के असर के बारे में विश्लेषण में खराब होने वाले 3 मुख्य कृषि उत्पादों प्याज, टमाटर और आलू का उल्लेख करते हुए समीक्षा में कहा गया है कि इनकी कीमत में फरवरी-अप्रैल में बढ़ोतरी हुई, उसके बाद जुलाई-अगस्त और सितंबर-नवंबर में बढ़ोतरी हुई है।
इसमें कम उत्पादन वाले महीनों में उत्पादन को प्रोत्साहन देने की रणनीति की वकालत की गई है, जिसमें टमाटर जैसी फसलों के अतिरिक्त उत्पादन के बाद प्रसंस्करण में निवेश करना और प्याज के लिए प्रसंस्करण व भंडारण की सुविधा विकसित किया जाना शामिल है। दिलचस्प है कि समीक्षा में कृषि उत्पादों की आयात नीति को बेहतर बनाने की वकालत करते हुए कहा गया है कि आवश्यक जिंसों के दाम में बढ़ोतरी पर आयात शुल्क में बार बार बदलाव करने से घरेलू उत्पादकों को गलत संकेत जाता है और इससे अनिश्चितता की स्थिति पैदा होती है। समीक्षा में कहा है, ‘लंबे समय के हिसाब से स्थिर तरीका अपनाना जरूरी है।’
समीक्षा में कहा गया है, ‘कृषि एवं संबंधित क्षेत्रों का प्रदर्शन कोविड-19 के झटकों से अप्रभावित रहा है। बहरहाल जैसा कि हाल के स्थिति आकलन सर्वे (एसएएस) रिपोर्ट में दिखाया गया है कि भूधारिता में बिखराव की वजह से पशुधन, मत्स्य पालन और मजदूरी जैसे काम उल्लेखनीय रूप से कृषक परिवारों के लिए अहम हो गए हैं।’हालांकि सामाजिक बुनियादी ढांचे के अन्य पहलुओं के बारे में समीक्षा में कहा गया है कि सामाजिक सेवा में सरकार के खर्च में 2020-21 की तुलना में 2021-22 में 9.8 प्रतिशत की वृद्धि से स्कूल संबंधी बुनियादी ढांचे में सुधार हुआ है और विद्यार्थियों व अध्यापकों के अनुपात में बढ़ोतरी हुई है। स्वास्थ्य के बारे में इसमें कहा गया है कि हाल के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 से पता चलता है कि कुल प्रजनन दर (टीएफआर) 2019-21 में घटकर 2 प्रतिशत रह गया है, जो 2015-16 में 2.2 प्रतिशत था।

First Published - January 31, 2022 | 11:01 PM IST

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