भारत के शेयर बाजार में विदेशी मुद्रा का प्रवाह बढ़ रहा है और भारतीय रिजर्व बैंक उसे अपने पास समायोजित कर रहा है। इससे मुद्रा भंडार बढ़ रहा है और रुपये की मजबूती पर लगाम लग रही है।
इस हस्तक्षेप के दो परिणाम हो रहे हैं। इससे रुपये में मजबूती नहीं आ रही है और बैंकिंग व्यवस्था में नकदी का प्रवाह बढ़ रहा है, जिससे सरकार को रिकॉर्ड 12 लाख करोड़ रुपये बाजार से उधारी लेने में मदद मिल रही है।
अब तक यह रणनीति सही रही है। लेकिन अब ज्यादा नकदी और सस्ती दरों से भविष्य में कुछ ढांचागत समस्याएं आ सकती हैं, जिसे लेकर विशेषज्ञों ने चेतावनी देनी शुरू कर दी है।
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास भी यह समझ रहे हैं। बहरहाल उन्होंने समय से पहले नकदी कम किए जाने की संभावना से इनकार किया है क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था में तेज सुधार पर विपरीत असर पड़ेगा।
ऐसे में यह पूरी संभावना है कि कुछ और वक्त तक रुपये को कमजोर बने रहने दिया जाएग, भले ही इस क्षेत्र की मुद्राओं में मजबूती आ रही है।
ब्लूमबर्ग के मुताबिक इस क्षेत्र की ज्यादातर मुद्राएं मजबूूत हो रही हैं लेकिन रुपये में इस साल 3 प्रतिशत गिरावट आई है। मैकलई फाइनैंशियल के वाइस प्रेसीडेंट ऋतेश भंसाली ने कहा, ‘रिजर्व बैंक के गवर्नर का ध्यान वृद्धि पर है। रुपये को थोड़ा कमजोर रखना आत्मनिर्भर भारत की रणनीति का हिस्सा है। लेकिन वक्त आने पर रिजर्व बैंक रुपये को मजबूत होने देगा।’
ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक इस साल सकल आधार पर इक्विटी में प्रवाह 19 अरब डॉलर रहा है और इसके अलावा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और विलय एवं अधिग्रहण से और 30 अरब डॉलर का प्रवाह हुआ है। वहीं इस दौरान इस कैलेंडर वर्ष में विदेशी भंडार 122 अरब डॉलर से बढ़कर 579 अरब डॉलर हो गया है।
इससे संकेत मिलते हैं कि केंद्रीय बैंक ने सभी प्रवाहों को अवशोषित कर लिया है और मुद्रा में मजबूती को रोका है और जब भी धन बाहर गया है तो गिरावट रोकने के बजाय रुपये को कमजोर होने दिया है। इसकी अच्छी वजह हो सकती है।
बैंक आफ अमेरिका सिक्योरिटीज के मुख्य अर्थशास्त्री इंद्रनील सेनगुप्ता ने कहा, ‘अगर अर्थव्यवस्था कमजोर हो तो मजबूत रुपये से मदद नहीं मिलती है।’
इसकी सीमा है कि एक देश कितना भंडार खरीद सकता है। भारत के मामले में यह सीमा 550 अरब डॉलर हो सकती है, लेकिन केंद्रीय बैंक भंडार को लगातार बढ़ा रहा है और व्यवस्था में नकदी डाल रहा है। आने वाले दिनों में भी यह रणनीति जारी रखे जाने की संभावना है।
सेनगुप्ता ने कहा, ‘हम लगातार उम्मीद कर रहे हैं कि रिजर्व बैंक डॉलर कमजोर होने पर एफएक्स की खरीद करेगा और भारत के रुपये के मजबूत होने पर इसे कमजोर करेगा। इसे सुरक्षा देने की संभावना ऐसे समय में बहुत कम है, जब वैश्विक अनिश्चितता बहुत ज्यादा है।’
रुपये की वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (आरईईआर), जिससे उसके 36 कारोबारी साझेदारों को देखते हुए मुद्रा की मजबूती मापी जाती है, का मूल्यांकन कुछ ज्यादा किया गया है। अक्टूबर के रिजर्व बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि अक्टूबर में आरईईआर 118.13 था, जो एक साल पहले के 117.29 की तुलना में मजबूत है। ऐसे में आरईईआर के आधार पर भी रुपये की मजबूती देश के हित में नहीं है।
जहां तक अतिरिक्त नकदी का सवाल है, डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा ने हाल की पॉलिसी संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि यह मौद्रिक नीति का हिस्सा है, यह वृद्धि को बहाल करने के हिसाब से समावेशी है।
केंद्रीय बैंक के संज्ञान में है कि अतिरिक्त नकदी होने से महंगाई बढ़ेगी और कम दरों से नकदी का असमान वितरण होगा। पात्रा ने कहा, ‘हम बाजार की प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते।’
मंगलवार को रुपया 73.63 प्रति डॉलर पर बंद हुआ, जबकि इसके पहले 73.55 पर बंद हुआ था। केंद्रीय बैंक के रुपये के कमजोर रखने के रुख पर विचार करते हुए मुद्रा डीलरों का कहना है कि अगर रुपये में मजबूती आती है तो यह 72.50 से 72.80 के इतर नहीं रहेगा, इसका कोई मतलब नहीं कि कितना प्रवाह होता है।