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ईंधन खुदरा कारोबार में पेट्रोल पंपों का बढ़ेगा दायरा

Last Updated- December 12, 2022 | 1:32 AM IST

पेट्रोलियम मंत्रालय ने पेट्रोल-डीजल जैसे वाहन ईंधन बेचने के लिए ज्यादा कंपनियों को अनुमति दी है जिसकी वजह से जल्द ही पेट्रोल डीजल के नए खुदरा आउटलेट (पेट्रोल पंप) ब्रांडों को देखने का मौका मिलेगा। ईंधन को बाजार में लाने की मंजूरी देने के लिए दिशानिर्देशों में छूट के तहत सात नए अधिकार दिए गए थे जिनमें 2019 में संशोधन किया गया। गाडिय़ों की बिक्री और आवाजाही में बढ़ोतरी की वजह से ये कंपनियां पेट्रोल-डीजल की बढ़ती मांग का अनुमान लगाते हुए दांव लगा रही हैं। निश्चित तौर पर इन्हें इलेक्ट्रिक वाहनों से चुनौती मिलने की आशंका है और अगर इस लिहाज से पूर्ण बदलाव होता है तब भविष्य में मांग वृद्धि में कमी आ सकती है। लेकिन अभी यह काफी दूर की बात है।
आवेदन के वक्त 250 करोड़ रुपये की न्यूनतम हैसियत (नेटवर्थ) वाली कंपनियों के लिए प्रवेश में बाधाओं को कम करते हुए ये नई मंजूरी दी गई थी। खुदरा और थोक दोनों तरह की आपूर्ति के लिए न्यूनतम नेटवर्थ 500 करोड़ रुपये थी। साल 2019 के नियमों के मुताबिक पेट्रोल-डीजल खुदरा बिक्री की मंजूरी पाने के लिए किसी कंपनी को कम से कम 100 पेट्रोल पंप लगाने होते हैं और मंजूरी मिलने के पांच साल के भीतर इनमें से 5 फीसदी सुदूर इलाकों में होने चाहिए। साल 2002 में बनाए गए पहले के नियमों के तहत कंपनियों को वाहन ईंधन के खुदरा क्षेत्र में अनुमति पाने से पहले घरेलू तेल एवं गैस क्षेत्र में कम से कम 2,000 करोड़ रुपये का निवेश करना पड़ता था। इससे सिर्फ  रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) और नायरा एनर्जी (तब एस्सार ऑयल) जैसी कंपनियों के लिए रास्ते खुल गए जिन्होंने कच्चा तेल रिफाइनरियों में भारी निवेश किया था।

लेकिन इस कारोबार में उनके प्रवेश के साथ ही एक और बात यह हुई कि केंद्र ने सरकारी स्वामित्व वाली तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) को पेट्रोल और डीजल के लिए सब्सिडी देना शुरू कर दिया। जब कच्चे तेल के दाम बढऩे से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि हुई तब आरआईएल और एस्सार ऑयल द्वारा बेचे जाने वाले पेट्रोल-डीजल ग्राहकों के लिए काफी महंगे साबित हुए जिसकी वजह से उनके पास तेल विपणन कंपनियों से सब्सिडी वाली दर पर पेट्रोल-डीजल खरीदने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। इस बार स्थिति अलग है क्योंकि ईंधन की मूल्य निर्धारण प्रणाली को उदार बनाया गया है  और कीमतें अब बाजार से जुड़ी हुई हैं। रिकॉर्ड ऊंची कीमतों के बावजूद खुदरा कारोबार के लिए पूर्वानुमान मजबूत बना हुआ है।
कोटक सिक्योरिटीज के शोध विश्लेषक (तेल एवं गैस क्षेत्र) और उपाध्यक्ष सुमित पोखरना ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘पेट्रोल और डीजल से चलने वाले वाहनों की मांग तुरंत खत्म नहीं होने वाली है। इन नई कंपनियों की नजर भारत में पेट्रोल-डीजल की मांग के एक हिस्से पर जरूर हो सकती है।’

सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सायम) के मुताबिक पिछले साल की समान अवधि की तुलना में अप्रैल-मार्च 2021 में यात्री वाहनों की बिक्री में 2.24 फीसदी की गिरावट आई, वहीं इसी अवधि में वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री 20.77 फीसदी तक घट गई। इस अवधि में कुल मिलाकर वाहनों के निर्यात में 13.05 फीसदी की कमी आई।
यह गिरावट काफी हद तक कोविड-19 महामारी के कारण आई आर्थिक मंदी की वजह से थी। लॉकडाउन के कारण कारखानों पर प्रतिबंध से भी वाहन तैयार करने में भी बाधा आई। नतीजतन, पेट्रोल और डीजल की मांग वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान 2017-18 के स्तर से नीचे चली गई। अब वाहन ईंधन और वाहन बिक्री दोनों में महामारी के बाद 2021-22 में सुधार होने की उम्मीद है। इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के एक वरिष्ठ विश्लेषक भानु पाटनी ने कहा, ‘कम्प्रेस्ड नैचुरल गैस (सीएनजी), ऑटो लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) और इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे विकल्पों के आने और डीजल-पेट्रोल की ऊंची कीमतों के बावजूद अगले तीन से पांच साल में मांग बढ़ती रहेगी हालांकि वृद्धि प्रतिशत में धीरे-धीरे गिरावट आ सकती है।’ इसका मतलब यह भी होगा कि सड़क पर चलने वाहनों के एक बड़े हिस्से की निर्भरता पेट्रोल और डीजल पर लगातार बनी रहेगी।

पोखरना का कहना है, ‘इलेक्ट्रिक वाहन के इस्तेमाल में वृद्धि के साथ ही पेट्रोल-डीजल जैसे ईंधन की मांग में यूरोप और अमेरिका जैसे देशों में भारी गिरावट देखने को मिलेगी। कंपनियां वैकल्पिक बाजारों की तलाश में हैं लेकिन भारत में बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिक वाहन तुरंत बाजार पर नहीं छा सकेंगे। इसके लिए उचित बुनियादी ढांचे की जरूरत है जिसमें चार्जिंग स्टेशनों का नेटवर्क भी शामिल है। हालांकि इससे लंबे समय में जीवाश्म ईंधन या आंतरिक दहन इंजन (आईसीई) का उपयोग करने की उम्मीद बढ़ती है।’
इस मौके पर चेन्नई की कंपनी आईएमसी (जिसे कभी इंडियन मोलासेस कंपनी कहा जाता था) या नई कंपनी ऑनसाइट एनर्जी, एम के एग्रोटेक के साथ-साथ मानस एग्रो इंडस्ट्रीज ऐंड इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसी कंपनियों की भी नजर है। हालांकि इन कंपनियों का ईंधन खुदरा बिक्री में कोई अनुभव नहीं है लेकिन भारत में तेल एवं गैस वैल्यू चेन में इनकी कुल भागीदारी है।

आईएमसी ने भारत में तेल एवं गैस का पता लगाने और उत्पादन करने के लिए बोली के दूसरे चरण के दौरान एक खोजी गई छोटी क्षेत्र परियोजना के लिए प्रतिस्पर्धा की थी। हालांकि आईएमसी परियोजना हासिल नहीं कर सकी लेकिन यह देश में कई बंदरगाहों के लिए तरल भंडारण सेवाओं की पेशकश करती है।
कंपनी पेट्रोलियम उत्पादों, तरलीकृत गैसों, पेट्रोकेमिकल्स, एसिड और वनस्पति तेलों के भंडारण के लिए भी जानी जाती है। असम सरकार के स्वामित्व वाली असम गैस कंपनी एक गैस परिवहन कंपनी है और इसे भी वाहन ईंधन की खुदरा बिक्री के लिए मंजूरी मिली है। असम के तिनसुकिया, डिब्रूगढ़, शिवसागर, चराइदेव, जोरहाट, गोलाघाट और कछार जिलों में यह सिटी गैस वितरण कंपनी सक्रिय है। एक तरल वाहन ईंधन खुदरा बिक्री का लाइसेंस इसके उत्पादों में और बढ़ोतरी करेगा।

एम के एग्रोटेक विविध कारोबार वाले समूह का हिस्सा है जिसमें सूरजमुखी के तेल जैसे कृषि उत्पादों से लेकर रियल एस्टेट, कच्चे तेल और गैस निकालने जैसे कामों पर जोर दिया जाता है। मानस एग्रो इंडस्ट्रीज ऐंड इन्फ्रास्ट्रक्चर का एलपीजी या रसोई गैस का अपना ब्रांड है और इसने इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल की आपूर्ति के लिए एस्सार पेट्रोलियम (अब नायरा एनर्जी) के साथ भी करार किया है। मई 2020 में बनी कंपनी ऑनसाइट एनर्जी, शुल्क लेकर या अनुबंध के आधार पर तेल एवं गैस क्षेत्र सेवा गतिविधियों में सक्रिय है। अन्य दो मंजूरियां आरआईएल और उसकी सहयोगी कंपनी रिलायंस बीपी मोबिलिटी (आरएमएल) को मिली है। हालांकि समूह पहले से ही वाहन ईंधन के खुदरा व्यापार में है लेकिन इसके पेट्रोलियम से लेकर रसायनों के कारोबार के पुनर्गठन के कारण मंजूरी की जरूरत थी।

First Published - August 27, 2021 | 12:24 AM IST

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