facebookmetapixel
Test Post कैश हुआ आउट ऑफ फैशन! अक्टूबर में UPI से हुआ अब तक का सबसे बड़ा लेनदेनChhattisgarh Liquor Scam: पूर्व CM भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य को ED ने किया गिरफ्तारFD में निवेश का प्लान? इन 12 बैंकों में मिल रहा 8.5% तक ब्याज; जानिए जुलाई 2025 के नए TDS नियमबाबा रामदेव की कंपनी ने बाजार में मचाई हलचल, 7 दिन में 17% चढ़ा शेयर; मिल रहे हैं 2 फ्री शेयरIndian Hotels share: Q1 में 19% बढ़ा मुनाफा, शेयर 2% चढ़ा; निवेश को लेकर ब्रोकरेज की क्या है राय?Reliance ने होम अप्लायंसेस कंपनी Kelvinator को खरीदा, सौदे की रकम का खुलासा नहींITR Filing 2025: ऑनलाइन ITR-2 फॉर्म जारी, प्री-फिल्ड डेटा के साथ उपलब्ध; जानें कौन कर सकता है फाइलWipro Share Price: Q1 रिजल्ट से बाजार खुश, लेकिन ब्रोकरेज सतर्क; क्या Wipro में निवेश सही रहेगा?Air India Plane Crash: कैप्टन ने ही बंद की फ्यूल सप्लाई? वॉयस रिकॉर्डिंग से हुआ खुलासाPharma Stock एक महीने में 34% चढ़ा, ब्रोकरेज बोले- बेचकर निकल जाएं, आ सकती है बड़ी गिरावट

शिवकाशी की गायब होती चमक-धमक

Last Updated- December 12, 2022 | 1:27 AM IST

देश में पटाखों के लिए मशहूर तमिलनाडु के शिवकाशी शहर में प्रवेश करते ही सल्फर, पोटैशियम नाइट्रेट, एल्युमीनियम और कार्बन की खुशबू का एहसास होने लगता है। देश में दीवाली हो या फिर ओणम, जब भी आप इन त्योहारों पर पटाखे चलाते हैं या आतिशबाजी करते हैं तो इसकी पूरी संभावना होती है कि ये शिवकाशी में ही बने होंगे। 
देश में जितनी मात्रा में पटाखे का उत्पादन होता है उनमें दक्षिण भारत के इस शहर की हिस्सेदारी करीब 90 प्रतिशत तक होती है। हालांकि  कोविड-19 महामारी ने इस शहर के पटाखा एवं आतिशबाजी उद्योग पर गहरी चोट की है। कोविड महामारी से पहले करीब 3 लाख लोग इस उद्योग से सीधे तौर पर जुड़े थे और करीब 5 लाख अप्रत्यक्ष रूप से इसका हिस्सा थे। चेन्नई से लगभग 540 किलोमीटर दूर शिवकाशी पटाखे के लिए विख्यात है और यहां दियासलाई भी तैयार होती है मगर इन दिनों पूरे शहर में सन्नाटा पसरा है। श्री बालाजी फायरवक्र्स के बालाजी टी के कहते हैं, ‘पिछले एक वर्ष के दौरान शहर में कम से कम 200 पटाखा इकाइयां बंद हो चुकी हैं। जो इकाइयां काम कर रही हैं उनमें भी मात्र 20-30 प्रतिशत क्षमता के साथ काम हो रहा है।’

तमिलनाडु फायरवक्र्स अमोर्सेस मैन्युफैक्चरर्स एसोसिाएशन के आंकड़ों के अनुसार शिवकाशी में इस समय करीब 1,070 पटाखा उत्पादन इकाइयां हैं। इस एसोसिएशन का दावा है कि कोविड से पहले वर्ष 2019-20 में इस उद्योग का कारोबार 3,000 करोड़ रुपये हुआ करता था। 
ऐसा नहीं है कि केवल कोविड महामारी से देश के त्योहारों पर असर हुआ है और लोगों के उत्साह पर पानी फिरा है। वैसे प्रदूषण भी बराबर जिम्मेदार है। राष्टï्रीय हरित न्याधिकरण (एनजीटी) ने खराब वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) वाली जगहों पर आतिशबाजी पर रोक लगा दी है। एनजीटी के इस प्रतिबंध के दायरे में देश के 122 शहर आ जाते हैं। 

एक छोटी सी जगह में 45 वर्ष की मरीसवाड़ी दो अन्य लोगों के साथ गन पाउडर में कागज लपेट रही हैं। सुरक्षा नियमों का पालन करने के लिए प्रत्येक इकाई एक दूसरे से कम से कम 12-15 मीटर दूर पर परिचालन कर रही है। त्योहारी मौसम फिर दस्तक देने वाला है और मरीसवाड़ी और उनके कामगारों के लिए यह वर्ष ‘करो या मरो’ जैसा है। वह कहती हैं, ‘आप कोई भी भारतीय त्योहार क्यों नहीं मनाते हों उस पर शिवकाशी की छाप जरूर होती है।’
पटाखा उद्योग को हो रहे नुकसान पर सोनी फायरवक्र्स के निदेशक पी गणेशन विस्मित हैं। गणेशन कहते हैं, ‘पिछले वर्ष पटाखा उद्योग का आकार 30 प्रतिशत तक कम हो गया था और इस बार यह और 20 प्रतिशत कम हो गया है। इस वर्ष हम केवल 50 प्रतिशत बिक्री (1,500 करोड़ रुपये) की उम्मीद कर रहे हैं। हालांकि यह भी तब संभव हो पाएगा जब सरकार प्रतिबंधित 120 शहरों में पटाखे चालने की अनुमति देती है।’

एक दूसरे संगठन इंडियन फायरवक्र्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अनुमानों के अनुसार जिन 122 शहरों पर एनजीटी के प्रतिबंध की आंच है वे शिवकाशी की सालाना बिक्री में करीब 400 से 500 करोड़ रुपये योगदान देते हैं। लॉकडाउन और इससे उत्पादन पर हुए असर से यहां पटाखा उद्योग में काम करने वाले लोग पहले से ही संघर्ष कर रहे हैं। यहां कई इकाइयां बंद हो चुकी हैं और लोगों की नौकरियां चली गई हैं। अब इन लोगों की नजरें इस पर बात पर टिकी हैं कि त्योहार सीमित स्तर पर मनाए जाएंगे या पहले की तरह पूरा उत्साह दिखेगा। 
एक पटाखा उत्वादन इकाई में काम करने वाली मुत्तुलक्ष्मी कहती हैं, ‘हमें रोजगार की जरूरत है। मैं पटाखा उद्योग में पिछले कई वर्षों से काम कर रही हूं लेकिन अब कारखाने काफी कम क्षमता के साथ काम कर रहे हैं। हमें डर है कि बिक्री नहीं बढ़ेगी तो रोजगार और छिनेंगे।’ 

मुद्रण इकाइयां बंद होने से पटाखा उद्योग की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। पटाखा तैयार करने में इस्तेमाल होने वाले कागज की मांग कम होने से आस-पास की मुद्रण इकाइयां तेजी से सिमट रही हैं। शिवकाशी में बड़ी संख्या में छापेखाने हैं और इस मोर्चे पर भी शहर ने अपनी खास पहचान बनाई है लेकिन अब यह उपलब्धि भी खामोश पड़ती दिख रही है। इस वर्ष दीवाली सामान्य रूप से मनाई जाएगी इसकी गुंजाइश लगातार कम होती जा रही है। सर्वोच्च न्यायालय खराब वायु गुणवत्ता वाले शहरों में पटाखों पर लगी रोक हटाने की याचिका खारिज कर चुका है। 
शिवकाशी पूर्व में बुलेट क्रैकर्स नाम से अपनी दुकान में बैठे मुत्तुकृष्ण राजा कहते हैं, ‘महामारी से पहले हम जितना कारोबार करते थे वह अब आधे से भी कम हो गया है। अब आप ही देखें, 80 प्रतिशत तक छूट देने के बावजूद कोई खरीदार नहीं आ रहा है।’ पटाखों में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल की कीमतें भी बढ़ रही हैं। विनिर्माताओं के अनुसार एल्युमीनियम की कीमतें करीब 30 प्रतिशत तक बढ़ गई हैं, जबकि कागज एवं इसके उत्पाद भी 40-60 प्रतिशत तक महंगे हो गए हैं। सल्फर का दाम भी 100 प्रतिशत तक बढ़ गया है। बालाजी कहते हैं, ‘कच्चे माल की औसत कीमत 40-50 प्रतिशत तक बढ़ गई है। इससे हमारी लागत 45 प्रतिशत तक बढ़ गई है। इसके बावजूद हम महामारी से पूर्व की तुलना में 40 प्रतिशत कम कीमतों पर पटाखों की बिक्री करने पर विवश हैं।’

सोनी फायरवक्र्स मैन्युफैक्चरर्स इकाई के प्रबंधक 60 वर्षीय गुणशेखरन पिछले 40 वर्षों से अपनी जीवन नैया खींचने के लिए इस उद्योग पर आश्रित रहे हैं। वह कहते हैं, ‘अब हम केवल हरित पटाखे बना रहे हैं। कच्चे माल के दाम कई गुना बढ़ गए हैं। हमारे लगभग सभी कारीगर टीके लगवा चुके हैं लेकिन तब भी कोविड से पूर्व की तुलना में हम अब केवल 30 प्रतिशत तक आपूर्ति ही कर पा रहे हैं।’
पटाखा उत्पादक, इस उद्योग में काम करने वाले लोग और खुदरा कारोबारी केंद्र एवं राज्य सरकार से हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं। एनजीटी के प्रतिबंध के खिलाफ वे कानूनी रास्ता अपना रहे हैं। अब उनकी सारी उम्मीदें दीवाली पर टिकी हैं। गणेशन कहते हैं, ‘ओणम और गणेश चतुर्थी पर होने वाला कारोबार पहले ही खराब हो चुका है। अब दीवाली पर हालात नहीं सुधरे तो शिवकाशी में अंधेरा छा जाएगा।’

First Published - August 31, 2021 | 12:36 AM IST

संबंधित पोस्ट