वाई2के समस्या और 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट की ही तरह कोविड-19 के कारण वैश्विक स्तर पर तमाम तकनीकी कार्य को भारत आउटसोर्स किए जाने के आसार दिख रहे हैं। कोविड वैश्विक महामारी के दौर में घर से काम करने की प्रवृत्ति को व्यापक तौर पर स्वीकार्यता मिल रही है जिससे आउटसोर्सिंग को बढ़ावा मिल रहा है।
गोल्डमैन सैक्स की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, पहले भी बड़े संकट के दौर में आउटसोर्सिंग में काफी तेजी आई थी। खासकर विदेश से तकनीकी कार्यों को भारत के लिए आउटसोर्स करने का चलन बढ़ा था। भारत में प्रौद्योगिकी डेवलपरों की पारिश्रमिक अन्य विकसित देशों के मुकाबले कम होने और इंजीनियरिंग स्नातकों की हर साल बढ़ती संख्या से भी आउटसोर्सिंग को बढ़ावा मिला।
वित्त वर्ष 2017 से वित्त वर्ष 2019 के दौरान भारत में डिजिटल प्रौद्योगिकी से कुशल आईटी कर्मचारियों की संख्या 37 फीसदी की सीएजीआर के साथ बढ़कर 6 लाख से अधिक हो गई। इससे भारत को डिजिटल प्रौद्योगिकी का एक प्रमुख केंद्र बनने में मदद मिली और इसका सबसे अधिक फायदा कहीं से भी काम करने के नियमों से हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हमारा मानना है कि भारतीय आईटी कंपनियों में मौजूद डिजिटल तौर पर प्रशिक्षित ये कर्मचारी समग्र राजस्व वृद्धि को रफ्तार देंगे। डिजिटल-एट-स्केल सॉल्यूशन के लिए जरूरतों के बीच उनकी प्रासंगिकता बढऩे का यह एक प्रमुख कारण है।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि आउटसोर्सिंग की पहली दो लहरों के दौरान उद्योग को श्रम एवं लागत कुशलता मॉडल से मदद मिली थी लेकिन ऐसा लगता है कि उद्योग अब मूल्य आधारित मॉडल को अपना रहा है। इसके तहत बेहतरीन डिजिटल सॉल्यूशन की पेशकश के लिए परामर्श आधारित दृष्टिकोण पर जोर दिया जा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ हालिया सौदों में समाधान प्रदाता अपने ग्राहकों के लिए पूरी आईटी गतिविधियों का प्रबंधन करने की जिम्मेदारी उठाई है जो बड़े प्रबंधित सेवा अनुबंधों का हिस्सा है। इसके जरिये कंपनी अपने विशेष समाधानों की बिक्री कर रही हैं जो उसके परिपक्व नजरिये का उदाहरण है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उपरोक्त दोनों दृष्टिकोण के लिए निर्धारित कीमत और परिणाम आधारित अनुबंधों की आवश्यकता है।
वैश्विक ब्रोकरेज फर्म का माानना है कि शीर्ष 5 भारतीय आईटी सेवा प्रदाताओं की वृद्धि वित्त वर्ष 2022 में औसतन करीब 12.6 फीसदी हो सकती है जबकि पहले के 9.7 फीसदी के अनुमान से अधिक है।