इस वर्ष सितंबर में समाप्त हुई दूसरी तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में 7 से 7.4 फीसदी की विकास दर रहने की संभावना है।
देश के पांच प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को यह जानकारी दी। पिछले वर्ष की समान तिमाही में यह विकास दर 9.3 फीसदी की रही थी। हालांकि सरकार शुक्रवार को तिमाही के नतीजे जारी करेगी।
अर्थशास्त्रियों ने कहा कि जारी नतीजों पर औद्योगिक मंदी का असर पड़ेगा। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार जुलाई से सितंबर 2008 के बीच औद्योगिक उत्पादन में महज 4.9 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई जबकि पिछले वर्ष की समान तिमाही में यही दर 9.5 फीसदी की थी।
देश के सकल घरेलू उत्पाद में उद्योग क्षेत्र की हिस्सेदारी 26 फीसदी की है। कमोडिटी की बढ़ती कीमतों (कृषि उत्पाद, धातु और कच्चा तेल) से पीछा छुड़ाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक हाल तक प्रमुख दरों को बढ़ाती रहा है ताकि बाजार में नकदी के प्रवाह को नियंत्रण में रखा जा सके।
इसके साथ ही पेट्रोल, डीजल और घरेलू गैसों को कम कीमत पर बेचने की वजह से सरकारी तेल कंपनियों के पास भी नकदी की किल्लत हो गई थी।
रेटिंग और सलाहकार एजेंसी क्रिसिल लिमिटेड के अर्थशास्त्री डी के जोशी ने बताया, ‘दूसरी तिमाही में उद्योग क्षेत्र में जबरदस्त गिरावट देखी गई। पिछले वर्ष उद्योग क्षेत्र में विकास दर 10 फीसदी की थी जो घटकर करीब आधी रह गई है।’
ज्यादातर अर्थशास्त्रियों का मानना है कि तिमाही के नतीजों को बेहतर बनाने में कृषि और सेवा क्षेत्र का योगदान सबसे अधिक रहेगा। देश के कुल उत्पादन में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी 50 फीसदी से भी अधिक है और उम्मीद है कि दूसरी तिमाही में इस क्षेत्र में विकास 9 फीसदी से भी अधिक रहेगी। वहीं रिकॉर्ड उपभोक्ताओं को जोड़कर टेलीकॉम क्षेत्र ने भी बढ़िया प्रदर्शन किया है।