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केंद्र सरकार की श्रम संहिता से राज्यों का तालमेल गड़बड़

केंद्र सरकार ने सभी 4 संहिताओं के लिए मसौदा नियम प्रकाशित कर दिए हैं। राज्यों को इस पर कानून बनाना है क्योंकि श्रम समवर्ती सूची में आता है।

Last Updated- December 28, 2023 | 10:40 PM IST
State rules against basic ethos, spirit of labour codes, finds Study

नई श्रम संहिता के मुताबिक विभिन्न राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा बनाए गए कानून में बहुत ज्यादा अंतर है और यह नई संहिता की मूल धारणाओं व सिद्धांतों के विपरीत हैं। एक सरकारी एजेंसी के अध्ययन में यह सामने आया है।

2019 और 2020 में केंद्रीय श्रम कानूनों को एक में मिलाने, उन्हें तार्किक व सरल बनाने का काम किया गया। उन्हें सरल कर 4 श्रम संहिताओं में शामिल किया गया, जो वेतन, सामाजिक सुरक्षा, औद्योगिक संबंध और कामगारों की सुरक्षा से जुड़ी हैं।

केंद्र सरकार ने सभी 4 संहिताओं के लिए मसौदा नियम प्रकाशित कर दिए हैं। राज्यों को इस पर कानून बनाना है क्योंकि श्रम समवर्ती सूची में आता है।

केंद्र का इरादा इस संहिता को तभी लागू करने का है, जब सभी राज्य देश में नए कानूनी ढांचे को निर्बाध रूप से लागू करने को सहमत हों। वीवी गिरि नैशनल लेबर इंस्टीट्यूट के अध्ययन में कहा गया है कि राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों (यूटी) ने इन संहिताओं के तहत बने कानून में कुछ अहम पहलुओं को छोड़ दिया है और इन नियमों में इतना अंतर है कि उसे कम करके उनमें एकरूपता लाने की जरूरत ur ।

इसमें कहा गया है, ‘इन नियमों के एक वस्तुनिष्ठ विश्लेषण में संकेत दिया गया है कि तमाम पहलुओं के हिसाब से न केवल केंद्र व राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों के नियम में अंतर है, बल्कि राज्य के नियमों में भी अंतर है। कुछ राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के नियम पहली नजर में केंद्र की संहिताओं के मूल सिद्धांतों और और भावना के खिलाफ जाते हैं और इससे इस संहिता को लाने का मकसद नाकाम हो सकता है।’

अध्ययन नोट में कहा गया है, ‘इन सभी पहलुओं पर ध्यान देने और संबंधित सरकरों को फिर से विचार करने की जरूरत है।’

अध्ययन के मुताबिक 24 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने सभी 4 संहिताओं के तहत नियम बनाए हैं।

पश्चिम बंगाल, मेघालय, नगालैंड, लक्षद्वीप और दादर और नागर हवेली को अभी इन किसी भी संहिता पर कानून बनाना है।

श्रम अर्थशास्त्री केआर श्याम सुंदर ने कहा, ‘अस्पष्ट रूप से बनाए गए नए श्रम कानून इस बीमारी की जड़ हैं। अगर नई श्रम संहिता को सटीक और उचित तरीके से तैयार कि होते तो राज्यों के पास इसकी व्याख्या की कम गुंजाइश होती। इसके अलावा राज्य स्तर पर नियम बनाने में मतभेदों के कारण हाल के वर्षों में त्रिपक्षीय सलाहकार निकायों का उचित इस्तेमाल नहीं किया गया है।’

इंडियन स्टाफिंग फेडरेशन के अध्यक्ष लोहित भाटिया ने कहा कि हालांकि परामर्श की प्रक्रिया सुस्त है, लेकिन उम्मीद है कि इसकी वजह से इन संहिताओं को अगले साल आम चुनावों के बाद लागू करने में देरी नहीं होगी।

First Published - December 28, 2023 | 10:40 PM IST

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