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किस करवट बैठेगी महंगाई, देखता है मूल्य सूचकांक

Last Updated- December 05, 2022 | 11:01 PM IST

मूल्य सूचकांक वस्तुओं और सेवाओं की एक नियत श्रेणी और किसी खास समयांतराल में औसत मूल्य गतिशीलता का मापक या संकेतक होता है।


इस खास श्रेणी में आनेवाली उपभोक्ता, थोक या उत्पादक मूल्य आदि में हो रहे परिवर्तन के आधार पर इनके मूल्य सूचकांक का निर्धारण किया जाता है। मूल्य सूचकांक में आर्थिक, क्षेत्रीय या क्षेत्र विशिष्ट गतिविधियों के कारण परिवर्तन होता है।


आज भारत में उपभोक्ता और थोक स्तरों पर मूल्यों की गतिशीलता मापने के लिए अलग-अलग सूचकांक है। राष्ट्रीय स्तर पर मूल्य सूचकांकों की मुख्यत: चार श्रेणियां मौजूद है। ये हैं- औद्योगिक कर्मियों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई-आईडब्ल्यू), कृषि या ग्रामीण मजदूरों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई-एएल या आरएल), शहरी अकुशल कर्मियों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई- यूएनएमई)। ये सारे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक हैं।


इसके अतिरिक्त जो चौथा मुख्य मूल्य सूचकांक है, वह है- थोक मूल्य सूचकांक।मूल्य सूचकांक द्वारा मुद्रास्फीति या महंगाई दर के आकलन का सीधा असर सरकार की नीतियों पर पड़ता है। उदाहरण के लिए अगर महंगाई दर बढ़ती है तो सरकार नियंत्रित जिंसों को- जैसे गेहूं, चावल आदि बाजार में उतार देती है, जिससे मांग और आपूर्ति संतुलित हो सके।


इसके अलावा भारतीय रिजर्व बैंक महंगाई बढ़ने पर ब्याज दरें बढ़ाता है, नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में बढ़ोतरी करता है, जिससे बाजार में धन के प्रवाह को कम किया जा सके। कुल मिलाकर परिस्थितियों के मुताबिक मांग और आपूर्ति के संतुलन को बरकरार रखने के लिए कदम उठाए जाते हैं।


थोक मूल्य सूचकांक


थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) संख्या अर्थव्यवस्था में थोक मूल्यों की गतिविधियों का मापक है। कुछ ऐसे भी राज्य हैं जिनके उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) और थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) अलग-अलग होते हैं।


राज्यों के द्वारा जब थोक मूल्य सूचकांक का निर्धारण किया जाता है तो उसमें राज्य स्तर पर हो रहे लेनदेन को शामिल किया जाता है। वर्तमान में जो डब्ल्यूपीआई हैं, वे हैं-
असम (आधार वर्ष 1993-94), बिहार (1991-92), हरियाणा (1980-81), कर्नाटक (1981-82), पंजाब (1979-82), उत्तरप्रदेश (1970-71) और पश्चिम बंगाल (1980-81)।


इसमें ज्यादातर राज्यों के सूचकांकों में  कृषि जिंस लेनदेन और हस्तांतरण को ही शामिल किया जाता है, जिनका कारोबार स्थानीय स्तर पर होता है।


थोक मूल्य सूचकांक की गणना का परिचय


एक बार अगर थोक मूल्य की संकल्पना को परिभाषित कर दिया जाए और आधार वर्ष का निर्धारण हो जाए तो उसके बाद सामग्रियों का निर्धारण, सामग्रियों के भार का आवंटन, श्रेणी या उप-श्रेणी स्तर आदि के जरिए इसे पूरा किया जाता है। इसके साथ ही आधार मूल्य एकत्र करना, वर्तमान मूल्य, सामग्री की विशिष्टता का निर्धारण, मूल्य आंकडा स्रोत और आंकडा संग्रह की प्रक्रिया का निष्पादन किया जाता है। इन चरणों के बारे में हम निम्नलिखित तरीके से विस्तार से चर्चा करेंगे-


थोक मूल्य सूचकांक की संकल्पना


थोक मूल्य सूचकांक को हर विभाग अलग-अलग तरीके से इस्तेमाल करता है। कृषि और गैर-कृषि जिंस कारोबार के लिए कोई एक तरह की परिभाषा नही है और इसलिए जमे हुए बाजार से भी हम इसके आंकड़े लेकर पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हो सकते हैं।


कृषि जिंस


व्यावहारिक तौर पर देखें तो मुख्य तौर पर तीन तरह के थोक बाजार होते हैं- प्राथमिक, द्वितीयक और कृ षि क्षेत्रों में प्रयुक्त होने वाले टर्मिनल। इन सारे थोक बाजारों में मूल्य की गतिशीलता और मूल्य के स्तरों में परिवर्तनीयता होती है। टर्मिनल बाजार में मूल्य की गतिशीलता से ही खुदरा दामों का निर्धारण किया जाता है। इन सारे विकल्पों में कृषि जिंसों के थोक लेनदेन के आधार पर ही थोक मूल्य का निर्धारण किया जाता है लेकिन प्राथमिक बाजार को आधार बनाया जाता है।


कृषि मंत्रालय थोक मूल्य को इस तरह परिभाषित करता है- थोक मूल्य वह दर है जिसमें खरीदारी के लेनदेन, जिसका इस्तेमाल आगे की खरीद के लिए किया जाता है, प्रभावित हो । बहुत सारी थोक मूल्य सूचकांक संग्रह करने वाली एजेंसियां कृषि मंत्रालय की इस परिभाषा को आधार मानती है।


वैसे आकस्मिक दरों, करों और शुल्कों के संदर्भ में ये मानदंड बदलते रहते हैं। आंध्रप्रदेश में भारीय शुल्क, बैग की कीमत और बिक्री कर के आधार पर आकस्मिक शुल्क तय किए जाते हैं। गुजरात में थोक मूल्य के  अंतर्गत ही पैकिंग शुल्क और करों को शामिल कर लिया जाता है। पंजाब और तमिलनाडु में आकस्मिक लागतों को थोक मूल्य सूचकांक के तौर पर शामिल किया जाता है। हरियाणा में कृषि जिंस कारोबार के अंतर्गत आढ़त, भार और लॉरी चार्ज आदि को सम्मिलित किया जाता है।


गैर-कृषि जिंस


गैर-कृषि जिंस के तहत निर्माण वस्तुएं आती हैं लेकिन इसके साथ एक दिक्कत यह है कि गैर-कृषि जिंस का कोई स्थापित स्रोत बाजार में उपलब्ध नही होता है। ऐसा भी देखा जाता है कि कभी-कभी थोक विक्रेता को इन गैर कृ षि जिंसों के बीच मार्जिन के लिए काफी अरसे तक इंतजार करना पड़ता है।

First Published - April 22, 2008 | 10:55 PM IST

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