मंदी की मार और मुश्किलों से भरे दिनों में नया वित्त वर्ष शुरू हो रहा है, जल्द ही नई सरकार भी चुनी जानी है, तो नई उम्मीदें होनी लाजिमी हैं।
लेकिन आर्थिक मोर्चे पर कुछ चोट खा चुकी अर्थव्यवस्था के लिए नए वर्ष में वाकई कोई खुशखबरी है या नहीं, इस पर कुछ भी कह पाना मुश्किल है। हालांकि वित्त वर्ष 2008-09 में काफी जोर शोर और बड़े-बड़े दावों के साथ सरकार और देश ने कदम रखा था, लेकिन उसकी तस्वीर काफी धुंधली और बेढंगी रही।
दो अंकों में आर्थिक विकास की उम्मीद बुरी तरह चकनाचूर हुई, मंदी के लपेटे में शेयर बाजार को भी जोर की पटकी लगी। आर्थिक जानकारों की नजर और आंकड़ों की ओट से देखें, तो बुधवार से शुरू हो रहे नए वित्त वर्ष में भी उम्मीदें ज्यादा परवान नहीं चढ़ रही हैं।
नए वर्ष में जीडीपी में विकास दर को घुन लगना तय है। सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक 2008-09 के दौरान 7 फीसदी विकास दर के कयास लगा रहे हैं, लेकिन ज्यादातर अर्थशास्त्रियों के मुताबिक यह दर 6 फीसदी के आसपास ही रहेगी। नए वित्त वर्ष में तो यह आंकड़ा 4 फीसदी के आसपास रहने की ही आशंका है, बाकी नई सरकार के नीतिगत फैसलों पर निर्भर करेगा।
सबसे बुनियादी पहलू यानी महंगाई 2009-10 में ज्यादा परेशान कर सकती है। अगस्त 2008 के के दूसरे हफ्ते में 12.91 फीसदी तक पहुंची मुद्रास्फीति की दर पिछले हफ्ते जारी आंकड़ों में 0.27 फीसदी तक गिर चुकी है। लेकिन अगर इन आंकड़ों को देखकर आपको लगता है कि 2009-10 आपकी जेब को सुकून देगा, तो आपकी उम्मीद बेमानी है।
क्रिसिल में अर्थशास्त्री धर्म कीर्ति जोशी के मुताबिक मुद्रास्फीति की दर पूरे वित्त वर्ष के दौरान 2 फीसदी के आसपास रहेगी, लेकिन रोजमर्रा के इस्तेमाल की वस्तुएं सस्ती होने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुमान भी इसी आंकड़े के इर्दगिर्द घूम रहे हैं।
अर्थशास्त्री कमल नयन काबरा के मुताबिक तो सरकार खुद ही महंगाई बढ़ाना चाहती है। वह कहते हैं, ‘खुद ही सुन लीजिए, डिफ्लेशन का जिक्र आते ही सरकार आपको यह कहकर ढाढस बंधा रही है कि थोक मूल्य सूचकांक और उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें अभी ज्यादा हैं, इसलिए चिंता मत कीजिए। मतलब साफ है, मंदी में भी महंगाई कम होने की कोई उम्मीद नहीं है।’
हां, दोहरी चोट जरूर हो सकती है। काबरा के मुताबिक अगले 12 महीनों के दौरान बेरोजगारी बड़ी परेशानी बनेगी। वह अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहते हैं कि अगले साल भर के दरम्यान तकरीबन 150 करोड़ लोगों को वेतन में कटौती की मार सहनी पड़ेगी और बेरोजगारों की फौज में 1.8 करोड़ से 2 करोड़ लोग बढ़ जाएंगे।
सरकार ने राहत के जो उपाय किए हैं, नई सरकार को उनका खामियाजा भी भुगतना पड़ेगा। जोशी ने कहा, ‘राजकोषीय घाटा बढ़ना लाजिमी है क्योंकि मंदी और राहत की दोहरी मार खजाने को सहनी पड़ रही है। मेरे अनुमान में यह घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 6 फीसदी रहेगा।’ कर संग्रह और निर्यात में भी कमी के संकेत अभी से मिलने लगे हैं।
वित्त वर्ष 2009-10
आर्थिक लिहाज से ज्यादा मुश्किल भरा रहेगा नया वित्त वर्ष
मुद्रास्फीति की दर 2 फीसदी, लेकिन दमघोटू ही रहेगी महंगाई
जीडीपी में विकास के सरकारी कयास भी रह जाएंगे धरे, घटेगी विकास दर
राजकोषीय घाटे की हालत और खस्ता, रह सकता है जीडीपी का 6 फीसदी
भारत में बेरोजगारों की तादाद में हो सकता है और भी इजाफा