दक्षिण पश्चिमी मॉनसून के दूसरे चरण में पहुंचने के साथ असमान बारिश को लेकर खरीफ की फसलों के उत्पादन पर प्रतिकूल असर की चिंता की जाने लगी है। साथ ही तिलहन और दलहन की खाद्य महंगाई दर को लेकर चिंता बढ़ी है।
यह डर और ज्यादा बढ़ा है क्योंकि मॉनसून अब अंतिम चरण में है और प्रमुख इलाकों से बारिश की वापसी शुरू होने को महज एक महीने बचे हैं।
बार्कलेज पीएलसी के भारत के प्रमुख अर्थशास्त्री राहुल बाजोरिया के हवाले से समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग ने बताया कि उतार चढ़ाव और सामान्य से कम मॉनसूनी बारिश की वजह से महंगाई और मध्यावधि हिसाब से ग्रामीण इलाकों में आर्थिक वृद्धि को लेकर चुनौतियां बढ़ी हैं। बाजोरिया ने कहा कि देश इस समय 8 प्रतिशत कम मॉनसूनी बारिश की समस्या से जूझ रहा है, जिससे भविष्य की बुआई और कटाई सत्र पर पड़ेगा और इससे उपभोक्ता मूल्य पर दबाव बढ़ेगा व कृषि क्षेत्र सिकुड़ेगा।
महंगाई दर मई और जून महीने में रिजर्व बैंक की 2 प्रतिशत से 6 प्रतिशत की सीमा को पार कर गई। वहीं केंद्रीय बैंक महंगाई से अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए लंबे समय से समावेशी रुख बनाए हुए है। केंद्रीय बैंक का मानना है कि इस वित्त वर्ष में मार्च 22 तक महंगाई दर 5.7 प्रतिशत रह सकती है और महंगाई का मौजूदा दौर अस्थाई है।
क्रिसिल रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जलाशयों का स्तर नीचे है और दो राज्यों में फसलों को लेकर दबाव है, लेकिन बहुत ज्यादा चिंताजनक स्थिति नहीं है। क्रिसिल का कहना है, ‘बुआई का काम सही चल रहा है। ऐसे में हमारा अनुमान है कि इस वित्त वर्ष में कृषि क्षेत्र में वित्त वर्ष 21 के 3.6 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि के आधार होने पर भी 3 प्रतिशत की वृद्धि होगी।’
महंगाई के बारे में क्रिसिल का कहना है कि सरकार ने पहले ही महंगाई पर काबू पाने के लिए कदम उठाए हैं और खाद्य तेल व दलहन के आयात पर शुलल्क कम किया है। वहीं घरेलू बुआई के आंकड़े भी दाम सही रहने के संकेत दे रहे हैं।