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चाहिए था कम… और पैकेज दे दिया इतना

Last Updated- December 05, 2022 | 4:30 PM IST

छोटे और गरीब किसानों के जिन कर्जों को व्यावसायिक, कोऑपरेटिव और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों से माफ करने को कहा गया है, वह वित्त मंत्री द्वारा बजट में घोषित 60 हजार करोड़ की राशि के आधे से भी कम है।


यह तकरीबन 23 हजार करोड़ के आसपास बैठती है। वैसे बैंकों का सभी किसानों पर कुल कर्ज 10 हजार के लगभग है। जबकि माफी के दायरे में आने वाले किसानों पर जो कर्ज है उनमें बैंकों का हिस्सा 6 हजार से भी कम है।


यह तथ्य भारतीय रिजर्व बैंक की भारत में बैंकों की प्रगति और रूझान नामक रिपोर्ट में उभरकर सामने आया है। बैंकों के जो 10 हजार करोड़ रुपए किसानों के पास बकाया है उनमें से भी लगभग 3,000 करोड़ रुपए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पास बकाया हैं, जबकि करीब 25,000 करोड़ रुपए विभिन्न कोऑपरेटिव बैंकों को दिए जाने हैं।


इनमें से करीब 60 फीसदी या यूं कहें कि 23,000 करोड़ रुपए छोटे या निम् तबके के किसानों का बैंक के पास बकाया है। ये वे किसान हैं जिनके पास दो हेक्टेयर से कम की भूमि है।


इससे पता चलता है कि बड़े और छोटे किसानों का जितना बकाया है वह उतनी ही राशि है जिसका खुलासा वर्ष 2003 में एनएसएस ग्रामीण ऋण सर्वे की ओर से किया गया था।


भले ही कई सारे विश्लेषकों ने आशंका जताई थी कि सरकार की ओर से यह कर्ज माफ किए जाने से बैंकिंग क्षेत्र भविष्य में किसानों को ऋण देने से परहेज करेंगे, लेकिन कम से कम दो वजहों से अब यह कहा जा सकता है कि अगले दो वर्षों में ऐसा होने की उम्मीद कम ही है।


इसके पीछे पहली वजह यह है कि सरकार के स्वामित्व वाले बैंकों को प्राथमिकता के आधार पर किसानों को ऋण मुहैया कराना है। उन्हें जितना लक्ष्य दिया गया है, उसे पूरा करना बैंकों के लिए जरूरी है।


यही वजह है कि 1990 में जब दंडवते देवी लाल कर्ज को माफ किया गया था तो भी ऐसी ही आशंका व्यक्त की गई थी, पर उसके बावजूद किसानों को दिए जाने वाले ऋण में कोई कमी देखने को नहीं मिली।


 दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ऋण चुकता करने के मामले में किसानों का पिछला रिकार्ड ठीक-ठाक रहा है।


2006 के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार किसान तातकालिक ऋण तो चुकता करते ही हैं, साथ ही वे पुराने ऋण को चुकाने में भी आगे रहते हैं। इन वजहों को देखते हुए यह कहने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि बैंकों के लिए किसानों को ऋण देना कोई घाटे का सौदा नहीं है।


किसानों को कम दर पर ऋण दिए जाने के नाते भी उनके लिए सबसे पहले यही जरूरी जान पड़ता है कि वे इस ऋण का भुगतान समय पर करें।

First Published - March 10, 2008 | 10:22 PM IST

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